यहां साल में सिर्फ एक बार शिवरात्रि पर आते हैं देव कमरूनाग, भक्तों को देते हैं आशीवार्द (Video)

Edited By Ekta, Updated: 08 Mar, 2019 11:55 AM

देव कमरूनाग को मंडी जनपद का अराध्य देव माना गया है। मंडी जिला में देव कमरूनाग के प्रति इतनी अटूट आस्था है कि इनके आगमन के बाद ही यहां का शिवरात्रि महोत्सव शुरू होता है। दरअसल इन दिनों छोटी काशी मंडी अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के चलते भक्तिमयी...

मंडी (नीरज): देव कमरूनाग को मंडी जनपद का अराध्य देव माना गया है। मंडी जिला में देव कमरूनाग के प्रति इतनी अटूट आस्था है कि इनके आगमन के बाद ही यहां का शिवरात्रि महोत्सव शुरू होता है। दरअसल इन दिनों छोटी काशी मंडी अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि महोत्सव के चलते भक्तिमयी हुई पड़ी है। 200 के करीब देवी-देवता इन दिनों यहां पर ठहरे हुए हैं। देव आस्था के इस भव्य महाकुंभ एक देव ऐसे भी हैं जिनके दर्शनों के लिए कतारें लगी हुई हैं। बात हो रही है मंडी जनपद के अराध्य देव कमरूनाग की। इन्हें बड़ा देव भी कहा जाता है। देव कमरूनाग का मूल मंदिर मंडी जिला के रोहांडा की ऊंची चोटी पर मौजूद है, जहां पर हर किसी का पहुंच पाना संभव नहीं होता। ऐसे में देव कमरूनाग की छड़ी को वर्ष में एक बार सिर्फ शिवरात्रि के मौके पर मंडी लाया जाता है और भक्तों इनके दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता है। 
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माना जाता है कि देव कमरूनाग के दरबार से कोई भक्त खाली हाथ नहीं जाता। देव कमरूनाग के इतिहास की अगर बात करें तो इनका वर्णन महाभारत में राजा रत्न यक्ष के रूप में मिलता है। रत्न यक्ष भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। यह काफी बलशाली थे और विष्णु के अनन्य भक्त थे। जब महाभारत का युद्ध हुआ तो इन्हें किसी ने भी युद्ध के लिए आमंत्रित नहीं किया। ऐसे में रत्न यक्ष ने निर्णय लिया कि वह स्वयं युद्ध में जाएंगे और जो हार रहा होगा उसका साथ देंगे। लेकिन यह युद्धक्षेत्र तक पहुंचते उससे पहले ही भगवान विष्णु ने गुरूदक्षिणा के रूप में उनका शीष मांग लिया।
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ऐसे में रत्न यक्ष ने निर्णय लिया कि वह स्वयं युद्ध में जाएंगे और जो हार रहा होगा उसका साथ देंगे। लेकिन यह युद्धक्षेत्र तक पहुंचते उससे पहले ही भगवान विष्णु ने गुरूदक्षिणा के रूप में उनका शीष मांग लिया। रत्न यक्ष ने अपना शीश देकर युद्ध देखने की इच्छा जताई। इनके शीश को एक डंडे पर टांग दिया गया। लेकिन इनका शीश भी इतना शक्तिशाली था कि वह जिस तरफ घुमता उस पक्ष का पलड़ा भारी हो जाता। ऐसे में भगवान श्रीकृष्ण ने इनके शीश को पत्थर से बांधकर पांडवों की तरफ कर दिया। पांडवों ने भी रत्न यक्ष को पूजा और जीत मिलने पर राज्याभिषेक इन्हीं के हाथों करवाने की बात कही। पांडवों की जीत हुई और फिर रत्न यक्ष को उन्होंने अपना अधिष्ठाता माना और मंडी जनपद की एक पहाड़ी पर इनकी स्थापना की और नाम दिया गया कमरूनाग।
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देव कमरूनाग को बारिश का देवता भी माना गया है। दंत कथाओं के अनुसार देव कमरूनाग की स्थापना के बाद इंद्र देवता रूष्ठ हो गए और उन्होंने इस इलाके में बारिश करना बंद कर दिया। ऐसे में देव कमरूनाग इंद्र देवता के पास गए और बादलों को ही चुरा लाए। इसी कारण इन्हें बारिश का देवता भी कहा गया। यदि कभी बारिश न हो और सूखा पड़ जाए तो इलाके के लोग इनके दरबार में जाकर बारिश की गुहार लगाते हैं और देव कमरूनाग बारिश की बौछारें कर देते हैं। देव कमरूनाग का मान-सम्मान और रूतवा इतना है कि जब यह मंडी आते हैं जो जिले के सबसे बड़े अधिकारी यानी जिलाधीश इनका स्वागत करने के लिए खड़े होते हैं। देव कमरूनाग के प्रति न सिर्फ मंडी जिला या प्रदेश बल्कि उत्तरी भारत के लोगों की अटूट आस्था है। जून के महीने में इनके मूल स्थान पर मेला होता है जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु वहां आकर नतमस्तक होते हैं।

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