दुल्हन की तरह सजा मां हाटकोटी का मंदिर, नवरात्रों में उमड़ रहा भक्तों का हुजूम

Edited By Simpy Khanna, Updated: 30 Sep, 2019 03:23 PM

hatkoti temple decorated like a bride devotees throng in navratri

शिमला से लगभग 84 किलोमीटर दूर, शिमला-रोहड़ू मार्ग पर पब्बर नदी के किनारे पर माता हाटकोटी का प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है। समुद्र तल से लगभग 1370 मीटर की उंचाई पर बसा पब्बर नदी के किनारे हाटकोटी में महिषासुर र्मदिनी का पुरातन मंदिर है। कहते हैं कि यह...

ठियोग (सुरेश) : शिमला से लगभग 84 किलोमीटर दूर, शिमला-रोहड़ू मार्ग पर पब्बर नदी के किनारे पर माता हाटकोटी का प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है।समुद्र तल से लगभग 1370 मीटर की उंचाई पर बसा पब्बर नदी के किनारे हाटकोटी में महिषासुर मर्दिनी का पुरातन मंदिर है। कहते हैं कि यह मंदिर 10वीं शताब्दी के आस-पास बना है। इसमें महिषासुर मर्दिनी की दो मीटर ऊंची प्रतिमा है। इसके साथ ही शिव मंदिर है जहां पत्थर पर बना प्राचीन शिवलिंग है। द्वार को कलात्मक पत्थरों से सुसज्जित किया गया है। छत लकड़ी से र्निमित है, जिस पर देवी देवताओं की अनुकृतियों बनाई गई हैं। मंदिर के गर्भगृह में लक्ष्मी, विष्णु, दुर्गा, गणेश आदि की प्रतिमाएं हैं। इसके अतिरिक्त यहां मंदिर के प्रांगण में देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां हैं।
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बताया जाता है कि इनका निर्माण पांडवों ने करवाया था। ओर जिस स्थान पर पाण्डव बैठते थे वहां पर पांच छोटे पथरों के मंदिर बने हैं। मां महिषासुर मर्दिनी के नाम से प्रख्यात इस माता की प्रसिद्धि देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी प्रख्यात है।और यही कारण है कि यंहा पर हर साल नवरात्रों में 9 दिनों माता के भक्तों की कतारें लगी रहती है। हर कोई अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए मां के सामने शीश झुका कर आशीर्वाद लेता है। नवरात्रों के दौरान मंदिर में श्रद्धालुओं के लिए हर प्रकार की सुविधा मुहैया कराई जाती है। ठहरने के लिए सराय हाल और नौ दिन तक भंडारे का आयोजन किया जाता है।
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मंदिर के रखरखाव के लिए कमेटी हर प्रकार से सचेत रहती है। कमेटी के सदस्य का कहना है की यंहा पर हजारों लोग मंदिर दर्शन करने आते है और उनके लिए हर सुविधा यहां प्रदान की जाती है। सुरक्षा के लिए पुलिस के जवान हर दम मन्दिर के आसपास घूमते रहते है। मन्दिर में सुबह से शाम तक भजन कीर्तन ओर पूजा पाठ का क्रम चला रहता है।यहां दिन भर पंजित और पुजारियों के पास लोगों का जमावड़ा लगा रहता है।
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लोगों का कहना है कि ये मंदिर सदियों पुराना है और इसका लेख कहीं देखने को नहीं मिलता। लेकिन 12 वीं सदी में इस मंदिर में अष्टधातु की मूर्ति बनाई गई जो भारत वर्ष के किसी मंदिर में नहीं बनी है। उन्होंने कहा कि मंदिर के बाहर (चरु )जो खाना बनाने के बर्तन को कहा जाता है, पब्बर नदी में बह कर आया जिसे लोगों ने पकड़ लिया लेकिन इसके साथ जो दूसरा चरु था वो पानी मे बह गया। कहा जाता है कि आज भी बारिश के दौरान ये अपनी जगह से हिलने का प्रयास करता है। जिसके चलते इसे जंजीर से बांध कर रखा गया है।
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बता दें कि हाटकोटी मां का ये मंदिर नवरात्रों के दौरान विशेष रुप से सजाया जाता है।और मां का आशीर्वाद लेने के लिए लोगों इन दिनों अपने नौकरी पेशों से समय निकालकर नवरात्रों में माता का आशीर्वाद लेने दूर-दूर से पहुंचते है। हाटकोटी माता की अनुकम्पा से लोग हर साल यहां पर कई कार्यक्रम भी आयोजित करते हैंऔर सरकार के बड़े अधिकारी से लेकर मंत्री तक माता रानी के दर्शन के लिए यहां विशेष रूप से आते है।नवररात्रि में यहां पर मां की महिमा की धुन और मन्त्रों की आवाज गूंजती रहती है।  

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