इस झील की अनेदखी पर 3 पंचायतों को करना पड़ा था अकाल का सामना

Edited By Vijay, Updated: 05 Jun, 2019 09:57 PM

gadakufar lake

देवभूमि हिमाचल में देवताओं और प्रकृति का गहरा रिश्ता रहा है। देव परम्परा से जुड़े रीति-रिवाज प्रकृति को बचाने और उनका रखरखाव करने से जुड़े होते थे। आज भी हिमाचल के अधिकतर स्थानों पर पेड़ों में देवताओं का वास होता है और लोग उन पेड़ों की आज भी पूजा...

शिमला (सुरेश): देवभूमि हिमाचल में देवताओं और प्रकृति का गहरा रिश्ता रहा है। देव परम्परा से जुड़े रीति-रिवाज प्रकृति को बचाने और उनका रखरखाव करने से जुड़े होते थे। आज भी हिमाचल के अधिकतर स्थानों पर पेड़ों में देवताओं का वास होता है और लोग उन पेड़ों की आज भी पूजा करते हैं लेकिन प्रकृति के साथ हो रहे छेड़छाड़ ओर दैविक रीति-रिवाजों को अनदेखा कर आज मानव जाति को बाढ़, तूफान, पानी की कमी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जूझना पड़ रहा है। आज भी हमारे पास ऐसी धरोहरें हैं, जिनकी देखभाल करना हम सब का दायित्व बन जाता है। ऐसी ही एक प्राकृतिक धरोहर राष्ट्रीय राजमार्ग-5 पर स्थित मतियाना से 11 किलोमीटर दूर गड़ाकुफर में स्थित झील है, जिसका उल्लेख हिमाचल की प्रमुख प्राकृतिक झीलों में आता है।

गड़ाकुफर झील का अपना एक दैविक इतिहास

गड़ाकुफर झील का अपना एक दैविक इतिहास रहा है। प्राचीन समय से इस झील को पवित्र माना जाता रहा है। इस झील का पानी इतना पवित्र है कि दैविक पूजा में इसका उपयोग किया जाता था और इस स्थान पर देवता स्नान करते थे। लोग भी तीर्थ यात्रा से वापस लौट कर इस झील में स्नान कर ही घर में प्रवेश करते थे। इस झील की सुंदरता झील के पानी मे तैरने वाली रंग-बिरंगी मछलियों से भी बनी है। लोग इस झील में मछलियों को आटा देना शुभ मानते थे। यही नहीं, इस झील का जलस्तर लोगों के पीने के पानी का भी अच्छा जलस्त्रोत आज भी बना हुआ है। इस झील के पानी का रिसाव निचले इलाकों में नालों के रूप मे बहता है, जिसे लोग पीने के पानी के साथ सिंचाई के लिए भी उपयोग करते हैं। इस झील का पानी 3 पंचायतों भराना, केलवी और धर्मपुर की जनता का प्रमुख स्रोत है।

कुछ वर्षों पूर्व बिल्कुल सूख गई थी झील

आधुनिकता के दौर में लोग देव परम्पराओं के रीति-रिवाज भूल गए लेकिन इस झील की अनदेखी से लोग इसके प्रकोप से बच नहीं पाए। कुछ वर्षों पूर्व यह झील बिल्कुल सूख गई और पानी के लिए लोगों में हाहाकार मच गया। तीनों पंचायतें सूखे की चपेट में आ गईं। इसके बाद लोगों ने देव परम्पराओं के रीति-रिवाजों का माना और उसके बाद अब यह झील पुन: अपने अस्तित्व में आ रही है। केलवी और भराना के लोगों ने अब इस झील को संवारने का काम शुरू कर दिया है। हालांकि सरकार जी तरफ से अभी तक इस झील को संवारने में कोई खासी मदद नहीं मिल पाई है लेकिन पंचायत स्तर पर इसकी देखभाल के लिए लोगों ने इसका जिम्मा ले लिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस झील के पानी को फिर से साफ करके देव कार्य के लिए प्रयोग किया जाएगा और इसको गंदा करने वालों को दंडित किया जाएगा।

2 महीने तक बर्फ की चादर से ढक जाती है झील

बता दें कि सर्दियों में बर्फ गिरने के बाद इस झील की सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं। पूरी झील 2 महीने तक सफेद चादर से ढक जाती है, जिससे इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। सर्दियों में प्राकृतिक रूप से जमने वाली झील पर स्केटिंग की जा सकती है लेकिन इस झील की तरफ सरकार और पर्यटन विभाग ने कभी कोई ध्यान नहीं दिया जो पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक मुख्य केंद्र बनकर उभर सकती है। इससे स्थनीय युवाओं को रोजगार के भी अच्छे अवसर मिल सकते हैं।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!