राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों के आंकड़े के बराबर आजाद

Edited By prashant sharma, Updated: 26 Mar, 2021 10:34 AM

equal freedom of figures of candidates of political parties

प्रदेश की सत्ता-विपक्ष राजनीतिक पार्टियों के लिए धर्मशाला नगर निगम चुनाव में आजाद प्रत्याशी तथा तीसरे विकल्प के तौर पर चुनावी रण में उतरी आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार चुनौती बने हैं।

धर्मशाला (तनुज सैणी) : प्रदेश की सत्ता-विपक्ष राजनीतिक पार्टियों के लिए धर्मशाला नगर निगम चुनाव में आजाद प्रत्याशी तथा तीसरे विकल्प के तौर पर चुनावी रण में उतरी आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार चुनौती बने हैं। निगम चुनाव में 3 राजनीतिक पार्टियों के उम्मीदवारों के बराबर ही आजाद प्रत्याशियों ने अपना नामांकन दाखिल करते हुए हुंकार भरी है। निगम के 17 वार्डांे में भाजपा व कांग्रेस के 17-17 प्रत्याशियों के अलावा आप के 9 प्रत्याशी मैदान में हैं। इन राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों का कुल आंकड़ा 43 है, वहीं पार्टी से नाराज तथा आजाद तौर चुनाव लडने वाले उम्मीदवारों का आंकड़ा भी इतना ही है। नगर निगम धर्मशाला के चुनावी रण में 86 कुल नामांकन दाखिल हुए हैं। वीरवार को उम्मीदवारों के नामांकन पत्रों की जांच के दौरान सभी दस्तावेज सही पाए गए हैं। ऐसे में अब राजनीतिक दलों द्वारा नामांकन वापस लेने की प्रक्रिया तक पार्टी से ही नाराज चल रहे कार्यकत्र्ताओं को सूत्र में पिराने को लेकर मंत्रणाओं का दौर शुरू कर दिया है।

निगम चुनाव से 2022 विधानसभा पर है फोकस

नगर निगम चुनाव को सत्ता व विपक्ष 2022 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाईनल मानकर मैदान में उतरी है। ऐसे में निगम चुनावों में भीतरघात व पार्टी कार्यकत्र्ताओं की नाराजगी भी राजनीतिक पार्टियां हल्के में नहीं ले रही है। पार्टी से ही बगावत कर निगम चुनाव में पार्टी अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ उतरे उम्मीदवार कितना डेमेज करते हैं, यह आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी के लिए सही संदेश नहीं होगा। ऐसे में 27 मार्च को नामांकन वापस लेने की प्रक्रिया से पहले ऐसे बागी प्रत्याशियों को मनाने के लिए स्थानीय पार्टी नेता-पदाधिकारियों की डयूटी लगाने के साथ ही वरिष्ठ नेतृत्व भी इनसे संपर्क साध रहा है।

स्थानीय नेताओं की अनदेखी न पड़े भारी

नगर निगम चुनाव में स्थानीय वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है। धर्मशाला में राजनीतिक पार्टियों की बागडोर नए नेतृत्व को सौंपी गई है। ऐसे में दलों की बैठकों व कार्यक्रमों में धर्मशाला का नेतृत्व करने वाले पुराने वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी करना अंदरूनी तौर पर राजनीतिक पार्टियों के लिए भारी पड़ सकती है। सार्वजनिक मंचों पर भले ही भाजपा-कांग्रेस द्वारा एकता दिखाई जा रही है, लेकिन पिछले दिनों व उप-चुनाव के दौरान अपने ही नेताओं पर सवाल उठाने व उनकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए टीका-टिप्पणी किए जाने की टीस नेताओं में अभी भी है।
 

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