जलती लकड़ी की मशाल पर बिठाया देवलू, निभाई अनूठी परंपरा

Edited By Ekta, Updated: 19 Aug, 2018 05:00 PM

burning wood of flambeau on devalu

देवभूमि कुल्लू में देवलू सदियों पुरानी अनूठी देव परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं। यही नहीं जिला के कई इलाकों में देवलू जान जोखिम में डालकर भी देव परंपरा को निभा रहे हैं। देव आस्था पर विश्वास करने वाले लोग देव आदेश मिलने के बाद ही देव परंपरा को...

कुल्लू (धनी राम): देवभूमि कुल्लू में देवलू सदियों पुरानी अनूठी देव परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं। यही नहीं जिला के कई इलाकों में देवलू जान जोखिम में डालकर भी देव परंपरा को निभा रहे हैं। देव आस्था पर विश्वास करने वाले लोग देव आदेश मिलने के बाद ही देव परंपरा को निभाते हैं। जिला की सैंज घाटी के तहत आने वाले सुचैहण गांव में शुक्रवार रात अनूठी परंपरा निभाई गई। इलाके के आराध्य देवता श्रीनाग के सम्मान में हूम पर्व मनाया गया। हूम पर्व आरंभ होने से पहले देवता श्रीनाग का देव रथ गांव नरवाली मंदिर से ढोल-नगाड़ों की धुन पर देवालय से बाहर निकला। वहीं मंदिर प्रांगण से देव यात्रा शुरू हुई। 

इस दौरान देव परंपरा अनुसार गूर के माध्यम से महिला-पुरुषों को खिलाया-पिलाया, भूत प्रेत व आसुरी शक्तियों का निवारण किया। इस परंपरा को निभाने के बाद देव आज्ञा के अनुसार अनूठी देव परंपरा निभाने की प्रक्रिया शुरू हुई। देवता के कारकूनों द्वारा मेला मैदान में करीब 50 क्टिंटल लकड़ी की विशाल मशाल लाई गई। देव परंपरा के मुताबिक देवता के मुख्य कारकून को लकड़ी की जलती मशाल पर बिठाया गया। इसके बाद जलती मशाल को देवलुओं ने कंधोंं पर उठाकर देव स्थल तक पहुंचाया। इस दौरान देवलुओं में भारी जोश होता है। हूम पर्व के दौरान बनोगी के आराध्य देवता पुंडरिक ऋषि ने भी भाग लिया। देवता श्रीनाग के कारदार मेहर चंद ने कहा कि यह देव परंपरा सदियों से निभाई जा रही है। उन्होंने कहा कि हूम पर्व में गूर के माध्यम से भूत प्रेत व अन्य दैवीय प्रकोप का निवारण किया जाता है। 

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