HPPCL के हाथ से खिसका 538 मैगावाट प्रोजैक्ट, जानिए क्यों

Edited By Updated: 25 Feb, 2017 11:47 PM

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सतलुज नदी पर प्रस्तावित बड़े पावर प्रोजैक्ट से हिमाचल प्रदेश पावर कार्पोरेशन(एच.पी.सी.एल.) हाथ धो बैठा है।

शिमला: सतलुज नदी पर प्रस्तावित बड़े पावर प्रोजैक्ट से हिमाचल प्रदेश पावर कार्पोरेशन(एच.पी.पी.सी.एल.) हाथ धो बैठा है। शह और मात के खेल में आखिर जीत सतलुज जलविद्युत निगम (एस. जे.वी.एन.एल.) की हुई है। 538 मैगावाट का प्रोजैक्ट एच.पी.सी.एल. के हाथ से खिसक गया है। इससे इस निगम की वित्तीय सेहत पर दूरगामी दुष्प्रभाव होंगे। अब इसका निर्माण एस.जे.वी.एन.एल. करेगा। यह केंद्र और हिमाचल सरकार का संयुक्त उपक्रम है लेकिन इसकी बिजली उत्पादन क्षमता पहले से कम हो जाएगी। 

लंबे अर्से से विवादों में लूहरी प्रोजैक्ट 
लंबे अर्से से लूहरी प्रोजैक्ट विवादों में रहा है। शुरू में इसकी प्रस्तावित क्षमता 775 मैगावाट रही। लंबी जद्दोजहद के बाद सरकार ने इसे एस.जे.वी.एन.एल. को आबंटित किया है। इसकी डिटेल प्रोजैक्ट रिपोर्ट तैयार की गई। उसके अनुसार सतलुज नदी पर रामपुर से नीचे निरथ के पास बांध का निर्माण होना था। इसके लिए मंडी जिले में 38 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण प्रस्तावित था। मंडी के लोगों ने इसका कड़ा विरोध किया। पर्यावरण से जुड़े कार्यकर्ताओं ने इतने बड़े दायरे में नदी के सूखने की भी आशंका जताई। बावजूद इसके प्रोजैक्ट प्रबंधन ने क्लीयरैंस की प्रक्रियाएं आरंभ कीं। डी.पी.आर. को केंद्र की कई एजैंसियों के पास मंजूरी के लिए भेजा गया। इसमें उन्होंने उत्पादन क्षमता में कमी लाने के निर्देश दिए। 

एस.जे.वी.एन.एल. को आंबटित किया दूसरा चरण
बाद में तय हुआ कि प्रोजैक्ट एक साथ नहीं बल्कि 3 चरणों में बनाया जाएगा। हालांकि तीनों चरणों में कुल बिजली उत्पादन पहले जितना ही होना था। पहले चरण का निर्माण निरथ के पास 210 मैगावाट, दूसरा टिपू के करीब 150 मैगावाट और तीसरे चरण में मरोला में 400 मैगावाट का उत्पादन होना था। बाद में राज्य सरकार ने एस.जे.वी.एन.एल. को दूसरा चरण और तीसरा चरण एच.पी.सी.एल. को आबंटित किया। इसी मौजूदा सरकार के कार्यकाल में ही यह आबंटन हुआ था।

अब नए सिरे से तैयार होगी डी.पी.आर.
अब एस.जे.वी.एन.एल. नए सिरे से डी.पी.आर. तैयार करेगा। इसके लिए पहले सर्वे होगा, फिर इन्वैस्टीगेशन। बड़े की बजाय छोटे बांध का निर्माण होगा। कोशिश यही रहेगी कि इससे कम से कम लोग उजड़ें। खास बात यह रही कि प्रौजेक्ट के लिए रेणुका बांध की तरह भूमि अधिग्रहण पहले नहीं हुआ, नहीं तो सरकार को काफी नुक्सान उठाना होता। 

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