यहां बर्फ से बचने के लिए कारगर हैं विशुद्ध मिट्टी से बने घर

Edited By Updated: 18 Jan, 2017 10:54 PM

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स्पीति में बर्फ से बचने के लिए यहां की हजारों वर्ष पुरानी भवन निर्माण शैली कारगर है।

उदयपुर: स्पीति में बर्फ से बचने के लिए यहां की हजारों वर्ष पुरानी भवन निर्माण शैली कारगर है। यहां पर विशुद्ध मिट्टी से घर बनाए जाते हैं। काजा और ताबो जैसे कस्बों के अलावा कुछ गिने चुने स्थानों में जिन लोगों ने सीमैंट और कंकरीट के महंगे घर बना लिए हैं, भयंकर सर्दियों में वे अब रो रहे हैं। इन सीमैंट के घरों में कड़ाके की ठंड से उनके जोड़ों में दर्दें उठने लग पड़ी हैं, जितनी भी आग जला लो सीमैंट के घर आसानी से गर्म नहीं हो पा रहे हैं लेकिन मिट्टी के घरों के क्या कहने इनमें इतनी ठंड नहीं लगती। घरों को सुरक्षित रखने के लिए बर्फीले रेगिस्तान स्पीति में खैम की उपयोगिता बढ़ गई है। खैम न हो तो बर्फ  के सैलाब से घरों का बचना मुश्किल हो जाए। यह उन अनपढ़ बुजुर्ग इंजीनियरों की बुद्धिमता का कमाल है कि उन्होंने पहले विशुद्ध मिट्टी के घर बनाए और घरों को बर्फ  से बचाने के लिए खैम की तरकीब भी निकाली। भवन निर्माण की इस तकनीक को पीढ़ी दर पीढ़ी के लोग आज भी सहेज कर रखे हुए हैं। 

ताबो बौद्ध मठ जीवंत उदाहरण
जो शैली बुजुर्ग वास्तुकारों ने विकसित की थी, वह आज भी प्रासंगिक है। बर्फीले रेगिस्तान की यह मिट्टी सीमैंट से भी पक्की है। ताबो बौद्ध मठ इसका जीवंत उदाहरण है। विशुद्ध मिट्टी के बने इस बौद्ध मठ के गर्भगृह में 1,020 साल पुरानी धार्मिक विरासत आज भी सुरक्षित है। भले ही यह अब पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। स्पीति में सरखोंग समेत ऐसी अनेक धरोहरें हैं जो मिट्टी की वास्तुकला से परिपूर्ण हैं। मिट्टी की इन धरोहरों सहित ग्रामीण परिवेश के सभी घरों को बचाने में खैम की भूमिका भी अहम रही है। बदलते समय के साथ खैम भी बदला, उसका कायाकल्प हुआ और लकड़ी की जगह प्लास्टिक के खैम ने ले ली लेकिन ग्रामीण परिवेश में भवन निर्माण की शैली नहीं बदली।

बर्फ हटाने के लिए प्रयोग होता है खैम 
खैम एक ऐसा औजार है जो घरों की छतों से बर्फ हटाने के काम आता है। खैम एक नाव के पतवार सरीखा औजार है। फर्क सिर्फ  इतना है कि पतवार पानी में चलते हैं और खैम बर्फ  में चलाया जाता है। इन दिनों स्पीति में बर्फबारी का दौर आरंभ हुआ है तो सभी आयु वर्ग के लोग खैम थाम रहे हैं और सुबह होते ही सबसे पहले घरों की छतों पर चढ़ रहे हैं। उनको पता है कि छतों की बर्फ  अगर पिघल गई तो उनके घरों को नुक्सान पहुंचा सकती है क्योंकि यह मिट्टी पिघलते हुए पानी के साथ ही बहने लगती है। 

गर्मियों में सर्द और सर्दियों में गर्म
स्पीति में आज भी विशुद्ध मिट्टी के घरों को प्राथमिकता दी जा रही है। इन घरों की दीवारें व छतें सब मिट्टी की बनी हैं। गर्मियों में ठंडे और सर्दियों में गर्म रहने वाले मिट्टी के घर स्पीति के पर्यावरण के अनुकूल हैं। स्पीति में इन दिनों न्यूनतम तापमान माइनस 20 डिग्री नीचे चला गया है, ऐसे में जिंदा रहने के लिए मिट्टी के दड़बे से बढिय़ा दूसरा कोई शीशमहल नहीं हो सकता। काजा के नवांग दोरजे, सोनम पलजोर व छेतन अंगरूप सहित कई लोगों ने बताया कि मिट्टी के घर उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं हैं। यही वजह है कि ग्रामीण परिवेश में आज भी 2 और 3 मंजिल ऊंचे मिट्टी के घर बन रहे हैं। उनका कहना है कि सीमैंट का बर्फीले रेगिस्तान की मिट्टी से क्या मुकाबला। 

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