Edited By Updated: 24 Jul, 2016 09:23 AM
विधानसभा परिसर में माननीयों के लिए बने आवासों में यदि कोई रिपेयर करनी हो तो लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों को...
शिमला: विधानसभा परिसर में माननीयों के लिए बने आवासों में यदि कोई रिपेयर करनी हो तो लोक निर्माण विभाग के कर्मचारियों को अपनी जान हथेली पर रखकर करनी पड़ती है।
भवनों को जिस समय बनाया गया उस समय शायद यह नहीं सोचा गया कि इन भवनों को मुरम्मत की जरूरत पड़े तो उस समय किस तकनीक का इस्तेमाल कर भवन में टूटे शीशे या अन्य किसी टूटी हुई खिड़की या छत की मुरम्मत करनी पड़े तो कैसे की जाए। शायद लोक निर्माण विभाग ने भवन निर्माण करती बार यह सोचा ही नहीं कि इन भवनों में कभी मुरम्मत की आवश्यकता भी पड़ सकती है। यदि किसी तीसरी, चौथी मंजिल की खिड़की का शीशा टूट जाए तो उसे लगाने के लिए न तो विभाग के पास कोई प्रबंध है और न ही कोई व्यवस्था।
कर्मचारियों को जान हथेली पर रख कर मुरम्मत कार्य करना पड़ता है। लोक निर्माण विभाग के कर्मचारी को खड़े होने के लिए भी जगह तक नहीं है जबकि आम भवनों में भी स्थिति को देखते हुए जगह की व्यवस्था की जाती है। आज के आधुनिक युग में तो कई तरह की मशीनें हैं जिस का इस्तेमाल कर भवन के किसी भी हिस्से में पहुंच कर मुरम्मत की जा सकती है। भवनों में आग लगने की संभावना को देखते हुए भी पहले ही उचित व्यवस्था की जाती है लेकिन इन भवनों के निर्माण शैली को देखकर तो लगता है यदि चौथी मंजिल में कहीं आग जैसी अनहोनी घटना घट जाए तो वहां तक फायर ब्रिगेड कर्मियों को भी खासी मशक्कत करनी पड़ सकती है। ऐसे में यह भवन लोक निर्माण विभाग की खामियों की पोल खोलता है, जब माननीयों के भवनों का ही यह हाल है तो विभाग आम कर्मचारियों के बने भवनों में क्या सहूलियतें प्रदान करता होगा। इसका सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।