यहां हुआ अशोक सिंघल का अस्थि विसर्जन, यहीं द्रोपदी ने भी त्यागा था शरीर

Edited By Updated: 30 Jun, 2016 04:16 PM

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लाहौल-स्पीति के प्रसिद्ध तांदी संगम पर विश्व हिंदू परिषद के मार्ग दर्शक अशोक सिंघल की अस्थियां विसर्जित करते ही चंद्रभागा संगम पर्व शुरू हो गया।

लाहौल-स्पीति (मनमिंदर अरोड़ा): लाहौल-स्पीति के प्रसिद्ध तांदी संगम पर विश्व हिंदू परिषद के मार्ग दर्शक अशोक सिंघल की अस्थियां विसर्जित करते ही चंद्रभागा संगम पर्व शुरू हो गया। तांदी संगम पर हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों के मंत्रों के उच्चारण और हवन यज्ञ के बाद अशोक सिंघल की अस्थियां चंद्रभागा में विसर्जित की गई। इस पर्व पर मंडी संसदीय क्षेत्र के सांसद रामस्वरूप शर्मा ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। कार्यक्रम में विश्व हिंदू परिषद के प्रदेश संगठन मंत्री मनोज कुमार विशेष रूप से मौजूद थे। साथ ही लाहौल- स्पीति के हजारों लोग भी इस संगम पर्व में शामिल हुए।


इस समारोह में केंद्रीय पर्यटन मंत्री डा. महेश शर्मा, विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय संगठन मंत्री दिनेश चंद्र, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के आने के कार्यक्रम था। लेकिन खराब मौसम के कारण वे समारोह नहीं पहुंच पाए। चंद्र भागा संगम पर्व पर तांदी संगम में अनेक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। इस दौरान संगम पर छा-छा अनुष्ठान का आयोजन किया गया। यह आयोजन यहां पर करीब 100 साल के बाद किया गया। कार्यक्रम में वेणु समागम के नाम से विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस दौरान लाहुल-स्पीति के प्राचीन नृत्य भी प्रस्तुत किए गए। तांदी संगम पर विहिप के प्रदेश संगठन मंत्री मनोज कुमार ने अशोक सिंघल की अस्थियां विसर्जित की। 


मनोज कुमार ने बताया कि अशोक सिंघल की तांदी संगम आने की बड़ी इच्छा थी। लेकिन स्वास्थ कारणों से वे नहीं आ पाए। उनकी इच्छा थी कि ये अस्थियां तांदी संगम में विसर्जित की जाएं। क्योंकि तांदी संगम पर महाऋषि वरिष्ठ और उनके ऋषियों की अस्थियां विसर्जित की गई। शिव पुराण में इस ऐतिहासिक नदी में द्रोपदी की अस्थियों को प्रवाहित करने का जिक्र मिलता है। हिंदू और बौद्ध समुदाय के लोग सदियों से तांदी संगम में अस्थियों को विसर्जित करते आ रहे हैं। यहां विशेष छा- छा पूजा विधि से अस्थि विसर्जन किया जाता है। इसी पौराणिक महत्व के चलते विहिप परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल की अस्थियों का विसर्जन किया गया। 


ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रंथों का हवाला देते हुए एच.पी.यू. में प्रोफेसर डॉ. चंद्र मोहन परशीरा कहते हैं कि इसी नदी के किनारे सोहनी-माहीवाल की अमर प्रेम गाथा का उदय हुआ। रांझा की नाव भी इसी नदी में उतरी थी। डॉ. परशीरा का दावा है कि द्रोपदी ने तांदी संगम में अपने तन को त्यागा था। शिव पुराण के पांचवें अध्याय में चंद्राभागा नदी के किनारे देवी संध्या के तप करने का वृत्तांत है। सांसद राम स्वरूप शर्मा ने बताया कि तांदी में अशोक सिघंल की अस्थियां विसर्जित करना हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए बड़ी बात है।


उन्होंने बताया कि तांदी संगम पर विहिप के मार्ग दर्शक अशोक सिंघल का स्तंभ स्थापित किया जाएगा और तांदी संगम को भी विकसित करने के प्रयास किए। साथ ही अब हर वर्ष ऐसा ही पर्व इसी स्थान पर मनाया जाएगा। तांदी संगम पर पांडवों ने द्रोपदी की अस्थियां विसर्जित की थी और महाऋषि वशिष्ठ समेत कई ऋषियों की अस्थियां यहां विसर्जित की गई। उन्होंने बताया कि यह उत्सव करीब सौ साल पहले मनाया जाता था। अब विहिप के अशोक सिंघल अस्थियों का तांदी संगम में विसर्जन होते ही यहां पर चंद्रभागा संगम पर्व शुरू हो गया है। इस पर्व में करीब सौ साल बाद छा-छा अनुष्ठान का आयोजन किया गया। इस पर्व को लेकर घाटी के लोगों खासा उत्साह है। 

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