Kargil Vijay Diwas Special: जब ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर की गोद में कर्नल ने तोड़ा था दम

Edited By Punjab Kesari, Updated: 26 Jul, 2017 01:13 PM

when brigadier khushal thakur adoption of in colonel was broken dum

कारगिल विजय दिवस पर उन वीरों को याद करना जरूरी है, जिनकी बदौलत आज आप और हम चैन और सकून की जिंदगी जी रहे हैं।

मंडी (नीरज शर्मा): कारगिल विजय दिवस पर उन वीरों को याद करना जरूरी है, जिनकी बदौलत आज आप और हम चैन और सकून की जिंदगी जी रहे हैं। कारगिल युद्ध के दौरान जिन्होंने अपनी कुर्बानियां दी, उनके बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता। आइए जानते हैं ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर की जुबां से कारगिल युद्ध के अदम्य साहस और बलिदान की कुछ कहानियां।
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26 जुलाई 1999 को कारगिल चोटी पर भारतीय सेना ने लहराया था अपना तिरंगा

26 जुलाई 1999 को जिस कारगिल चोटी पर भारतीय सेना ने अपना तिरंगा लहराया था। उस चोटी को फतह करने में 527 वीरों ने अपने प्राणों की आहूति दी थी। इस युद्ध में 1367 से ज्यादा वीर घायल हुए थे। मंडी जिला के द्रंग विधानसभा क्षेत्र के तहत आने वाले नगवाईं गांव निवासी ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर को कारगिल युद्ध का 'हीरो' कहा जाता है, क्योंकि इनके नेतृत्व वाली 18 ग्रेनेडियर ने टाइगर हिल और तोलोलिंग पर विजयी पताका फहराया। इसके बाद कारगिल युद्ध की जीत का रास्ता तैयार किया गया। 18 ग्रेनेडियर को ही सबसे ज्यादा 52 वीरता पुरस्कार भी प्राप्त हुए हैं। रिटायर ब्रिगेडियर आज भी इस युद्ध की यादों को भूला नहीं पाए हैं। इस युद्ध के साथ यूं तो कई किस्से जुड़े हुए हैं लेकिन कुछ किस्से ऐसे हैं जो ब्रिगेडियर साहब के जहन में आज भी ताजा हैं।
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खुशाल ठाकुर की गोद में कर्नल ने तोड़ा था दम
घटना जून 1999 की है जब तोलोलिंग पर विजय हासिल करने की लड़ाई चल रही थी और सफलता मिलने के बजाय 25 जवानों की शहादत हो चुकी थी। मेजर राजेश अधिकारी भी इसमें शहीद हो चुके थे। ऐसे में ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर ने खुद मोर्चा संभालने का निर्णय लिया। उनके साथ कर्नल विश्वनाथन ने भी जाने की ठान ली। लेकिन कर्नल विश्वनाथन युद्ध के दौरान बुरी तरह से घायल हो गए और उनका शरीर एकांत स्थान पर रह गया। आसमान से सफेद आफर के रूप में बर्फबारी हो रही थी और जमीन सीना चीर देने वाली गोलियों की बौछारें हो रही थी। खुशाल के अनुसार मैंने जैसे-तैसे कर्नल विश्वनाथन के घायल शरीर को एक पत्थर के नीचे लाया और उनके हाथ-पैरों को खूब सहलाया। साथ ही यह ढांढस बधाया कि सबकुछ ठीक हो जाएगा। मैंने उनका सिर अपनी गोदी में ले रखा था और उनको हौंसला दे रहा था, लेकिन इस दौरान मेरी गोद में ही उन्होंने दम तोड़ दिया और वह शहीद हो गए। वहीं इससे पहले इसी कमान के मेजर राजेश अधिकारी भी शहादत का जाम पी चुके थे।
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पहले दुश्मनों को निपटता हूं, खत सुबह पढ़ लूंगा
मेजर राजेश अधिकारी की एक वर्ष पहले ही शादी हुई थी। शाम के समय युद्ध क्षेत्र के पास मेजर राजेश अधिकारी के घर से आया हुआ खत पहुंचा। मेजर ने खत पढ़ने से यह कहकर मना कर दिया कि पहले दुश्मनों को निपटता हूं, खत सुबह पढ़ लूंगा। रात भर युद्ध में डटे रहने के बाद तोलोलिंग पर मेजर राजेश अधिकारी और उनकी टीम ने कब्जा तो जमा लिया लेकिन खत पढ़ने के लिए वह जीवित न रह सके। उन्होंने बताया कि जब मेजर राजेश अधिकारी के शव को उनके घर भेजा गया तो उसके साथ वह खत भी वैसे ही भेज दिया गया जैसे आया था। ब्रिगेडियर ने जिस 18 ग्रनेडियर का नेतृत्व किया, उसमें 900 जवान थे। इनकी कमान के 34 जवान शहीद हुए और सबसे ज्यादा 52 वीरता पुरस्कार भी इनकी कमान को ही मिले थे। इसमें 1 परमवीर चक्र, 2 महावीर चक्र, 6 वीरचक्र और 18 सेना मेडल सहित अन्य सैन्य सम्मान भी शामिल थे। खुद ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर युद्ध सेवा मेडल जैसे सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।
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