Edited By Kuldeep, Updated: 22 Nov, 2024 09:35 PM
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने परवाणू में बहुमूल्य जमीन को बहुत कम कीमत पर आबंटित करने के लिए हिमुडा के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की है।
शिमला (मनोहर): हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने परवाणू में बहुमूल्य जमीन को बहुत कम कीमत पर आबंटित करने के लिए हिमुडा के खिलाफ कड़ी टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि सार्वजनिक संपत्तियों को केवल आवेदन के आधार पर वितरित अथवा बेचा नहीं जा सकता, बल्कि इसे सार्वजनिक नीलामी के माध्यम से बेचा या आबंटित किया जाना चाहिए, ताकि सर्वोत्तम राशि प्राप्त हो सके। हिमुडा ने परवाणू में सैक्टर 1ए के प्लॉट संख्या 46 के निकट 899.97 वर्ग मीटर का अतिरिक्त प्लॉट क्षेत्र मैसर्स एमएम एंड कंपनी को 33 वर्ष के लिए 80,99,730/- रुपए तथा बाद में 99 वर्ष के लिए पट्टे पर आबंटित किया था।
याचिकाकर्त्ता मदन लाल चौधरी ने नियमों और उपनियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए निजी कंपनी के पक्ष में उपरोक्त भूमि के आबंटन के खिलाफ याचिका दायर की। प्रतिवादी हिमुडा की दलील थी कि नीति के अनुसार, अधिशेष भूमि को बिना किसी सार्वजनिक नोटिस जारी किए, केवल इच्छुक व्यक्ति द्वारा दायर आवेदन पर, 'पहले आओ पहले पाओ' के आधार पर, साथ लगते प्लॉट के मालिक को आबंटित किया जा सकता है और ऐसी नीति के तहत, प्लॉट निजी प्रतिवादी को आबंटित किया गया था। कोर्ट ने पाया कि जिस कंपनी को जमीन आबंटित की गई है, उसके पास कोई आसपास की जमीन नहीं है, बल्कि उसका प्लॉट विवादित जमीन/प्लॉट से बहुत दूर है।
कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी राज्य सरकार का एक उपक्रम होने के नाते सार्वजनिक संपत्ति का संरक्षक है और इसे हिमुडा के अधिकारियों की मर्जी से वितरित नहीं किया जा सकता है, बल्कि राष्ट्रीय राजमार्ग के साथ सटी हुई भूमि मूल्यवान हिस्सा है और अगर इसे नीलामी में रखा जाता, तो इससे बहुत अधिक राशि मिलती, जिससे सरकारी खजाने को नुक्सान हुआ है। हालांकि, हिमुडा की दलील थी कि निजी कंपनी को आबंटित भूमि/भूखंड बेकार है, तो कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसी ‘बेकार’ भूमि के लिए लगभग 90 लाख मिल सकते हैं, तो इसे बेकार भूमि नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने निजी कंपनी के पक्ष में किए गए आबंटन को रद्द कर दिया और कंपनी से प्राप्त राशि का भुगतान करने के बाद हिमुडा को भूमि का कब्जा बहाल करने का आदेश दिया।