शिमला पुस्तक मेले में पहुंची एक ऐसी किताब जो बता देगी आपका भूत, भविष्य और वर्तमान(Video)

Edited By Ekta, Updated: 16 Jun, 2019 11:12 AM

शिमला पुस्तक मेले में एक किताब ऐसी भी है जो आपको आपका भविष्य बता देगी। जी हां, बात थोड़ी हैरानी वाली जरूर है लेकिन यह दावा है पंडित मणिराम का है जो सांचा विद्या के माध्यम से आपको भविष्य ही नहीं बल्कि भूतकाल और वर्तमान की भी सटीक जानकारी देंगे। विश्व...

शिमला (योगराज): शिमला पुस्तक मेले में एक किताब ऐसी भी है जो आपको आपका भविष्य बता देगी। जी हां, बात थोड़ी हैरानी वाली जरूर है लेकिन यह दावा है पंडित मणिराम का है जो सांचा विद्या के माध्यम से आपको भविष्य ही नहीं बल्कि भूतकाल और वर्तमान की भी सटीक जानकारी देंगे। विश्व की विलुप्त होती पाबूची लिपि में शताब्दियों पूर्व रचित चमत्कारी 'सांचा विद्या' सिरमौर जिला में काफी प्रचलित है। सिरमौर जिला के खड़कांह के रहने वाले पण्डित मनीराम पाबुच इन दिनों शिमला के गेयटी थियेटर में लोगों के मन के हर प्रश्न का जवाब सांचा विद्या से दे रहे हैं। इसमें दैविक, भौतिक और पैतृक दोष का पता चलता है। सांचा पर पाशा फेंक कर लोग अपने वर्तमान, भूत, भविष्य की जानकारी ले रहे हैं। 
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पाशे में अंक लिखे गए हैं जिन्हें तीन बार सांचे पर फेंक कर अंक गणना करके किताब में लिखे रहस्यों को जानकर किसी भी व्यक्ति की समस्या का निराकरण उपाय सुझाया जाता है। पण्डित मनीराम ने बताया कि उनके पूर्वज पाबुच पण्डित आज से 924 वर्ष पूर्व सिरमौर आए थे। नाहन के राजा ने जैसलमेर से शादी कर अपने लिए रानी लाई थी रानी के साथ दहेज के रूप में पाबुच पण्डित नीताराम भी सांचा विद्या के साथ सिरमौर आए थे। रानी के साथ आए पाबुच पण्डित को सिरमौर रियासत के राजा ने खड़कांह में बसाया। ताकि यह पण्डित एकांत में रहकर ज्योतिष विद्या का अध्ययन व फलादेश संहिता का निर्माण पहाड़ी भाषा मे कर सके। जिसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यह ज्योतिष के ग्रंथों की रचना करते गए।
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पाबुची लिपि में करीब 400 ज्योतिष व प्रश्नावली संबधित ग्रंथ तैयार किए। जिसमें से 350 अभी भी सुरक्षित है। लगभग 1100 लोग विद्या को अभी भी जानते हैं। हस्त लिखित यह ऐसी किताब है जिसमें रोग दोष, विकृति, विकार, पीड़ा, देव दोष, पितृ दोष, शारीरिक व मानसिक, दैवीय और दैत्य दोष सहित हर प्रकार से मानव को पीड़ित करने वाली समस्याओं का निवारण, उपाय देव शक्ति व्यवहारिक प्रयोग और बौद्धिक शक्तियों का समावेश कर उपलब्ध करवाया गया है। पण्डित मनीराम ने कहा कि पाबुचि लिपि जीवित रखने के लिए स्कूलों में इसे मान्यता मिलनी चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी भी इस विद्या को सीख कर इसे जिंदा रखने का काम करे।

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