Edited By Jyoti M, Updated: 23 Aug, 2025 04:43 PM

सिरमौर जिले की रेणुका जी विधानसभा क्षेत्र में स्थित छछेती पंचायत का क्यारी गांव, आजकल के बरसात के मौसम में एक डरावने सपने जैसा बन गया है। यहां के निवासियों के लिए बारिश का मौसम केवल परेशानी ही नहीं, बल्कि मौत के साये की तरह महसूस होता है। गांव का...
हिमाचल डेस्क। सिरमौर जिले की रेणुका जी विधानसभा क्षेत्र में स्थित छछेती पंचायत का क्यारी गांव, आजकल के बरसात के मौसम में एक डरावने सपने जैसा बन गया है। यहां के निवासियों के लिए बारिश का मौसम केवल परेशानी ही नहीं, बल्कि मौत के साये की तरह महसूस होता है। गांव का कुड़ला खरक क्षेत्र सबसे ज़्यादा प्रभावित है, जहां के स्कूल जाने वाले बच्चों और शिक्षकों को हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर स्कूल जाना पड़ता है।
यह गांव एक अजीब भौगोलिक स्थिति में फंसा हुआ है। एक तरफ़ से, उफ़नती गिरी नदी बहती है, और दूसरी तरफ़ गहरी छछेती क्यारी खड्ड है। इन दोनों के बीच एक बेहद संकरा और खतरनाक रास्ता है, जो ग्रामीणों को गाँव से जोड़ता है। बरसात के दिनों में यह रास्ता किसी जानलेवा जाल से कम नहीं है। लगातार होने वाले भूस्खलन के कारण सड़क पर मलबा जमा हो जाता है, जिससे यह रास्ता बहुत ज़्यादा फिसलन भरा और खतरनाक बन जाता है।
जान जोखिम में डालकर सफ़र
हर दिन, 10 मासूम बच्चे और 4 शिक्षक इसी खतरनाक रास्ते से स्कूल आने-जाने के लिए मजबूर हैं। जब हालात ज़्यादा बिगड़ जाते हैं, तो उन्हें 5 से 6 किलोमीटर लंबा घने जंगल का रास्ता चुनना पड़ता है। इस रास्ते पर न तो कोई सही पगडंडी है और न ही सुरक्षा की कोई व्यवस्था। ऊपर से, हर वक्त जंगली जानवरों का डर बना रहता है। बच्चे और शिक्षक बताते हैं कि वे रोज़ाना मौत को करीब से महसूस करते हैं।
जानलेवा फिसलन और नदी का ख़तरा
नदी के किनारे का क़रीब 1 किलोमीटर लंबा हिस्सा सबसे ज़्यादा खतरनाक है। बारिश में यहाँ फिसलन और मलबा इतना बढ़ जाता है कि अगर किसी का पैर ज़रा सा भी फिसल जाए, तो वह सीधा 20 मीटर गहरी ढलान से नीचे उफ़नती नदी में गिर सकता है। यह रास्ता केवल बच्चों और शिक्षकों के लिए ही नहीं, बल्कि रोज़ाना काम पर जाने वाले 10 से 12 मज़दूरों के लिए भी ख़तरनाक है, जो फैक्ट्री और सतौन की तरफ़ काम करने जाते हैं। यह साफ़ है कि यह समस्या पूरे गांव के लिए एक बड़ा संकट बन चुकी है।
ग्रामीणों की सरकार से गुहार
ग्रामीणों ने बार-बार सरकार से मदद की गुहार लगाई है। उनका कहना है कि जब तक अच्छोन से डाडुवा तक की सड़क को लोक निर्माण विभाग (PWD) में शामिल करके पक्का नहीं बनाया जाता, तब तक यह जानलेवा स्थिति बनी रहेगी। ग्रामीणों का आरोप है कि हर साल बरसात में उन्हें मौत के साये में जीना पड़ता है, लेकिन सरकार और संबंधित विभाग इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। वे सवाल उठाते हैं कि क्या सरकार तब जागेगी, जब यहां कोई बड़ा हादसा हो जाएगा, या फिर उन्हें इसी तरह अपनी जान जोखिम में डालकर ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ेगी।