कुल्लू-लाहौल ने ओढ़ी बर्फ की चादर: जरासू जोत में हिमस्खलन से 250 भेड़-बकरियों की मौ/त

Edited By Jyoti M, Updated: 22 Oct, 2025 12:16 PM

himachal 250 sheep and goats died in an avalanche in jarasu holdings

हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों ने ताज़ातरीन बर्फ़बारी के साथ एक बार फिर अपनी सफेद, मनमोहक छटा बिखेर दी है। बुधवार की सुबह मौसम ने जिला कुल्लू और लाहौल-स्पीति के आदिवासी क्षेत्रों में करवट ली। जहां कुल्लू घाटी में झमाझम वर्षा हुई, वहीं जनजातीय...

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों ने ताज़ातरीन बर्फ़बारी के साथ एक बार फिर अपनी सफेद, मनमोहक छटा बिखेर दी है। बुधवार की सुबह मौसम ने जिला कुल्लू और लाहौल-स्पीति के आदिवासी क्षेत्रों में करवट ली। जहां कुल्लू घाटी में झमाझम वर्षा हुई, वहीं जनजातीय ज़िला लाहौल-स्पीति ने इस सर्दी के मौसम की अपनी दूसरी बर्फ़बारी दर्ज की।

चंद्रा घाटी, रोहतांग दर्रा, बारालाचा, शिकुंला दर्रा, कुंजम दर्रा और अटल टनल के आसपास का पूरा इलाका बर्फ की मोटी चादर से ढक गया है। इस अप्रत्याशित बर्फ़बारी ने पर्यटन जगत से जुड़े कारोबारियों के चेहरों पर ख़ुशी ला दी है, जो अब आने वाले सीज़न में पर्यटकों की अच्छी आमद की उम्मीद कर रहे हैं। हालांकि, राजधानी शिमला में इसके विपरीत आज सुबह से धूप खिली हुई है।

भेड़पालकों पर आपदा

जहां एक ओर बर्फ़बारी सुंदरता और व्यवसाय का संदेश लाई है, वहीं दूसरी ओर यह चंबा के ऊंचाई वाले इलाकों में कुछ भेड़पालकों के लिए त्रासदी बन गई है। बड़ा भंगाल से होली होते हुए कांगड़ा की ओर अपने क़रीब 600 भेड़-बकरियों के झुंड के साथ जा रहे भेड़पालक उस वक्त प्रकृति के भयंकर प्रकोप का शिकार हो गए जब चंबा के जरासू जोत में उन पर हिमस्खलन हुआ। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में ठंड और बर्फ़ की मार से लगभग 250 भेड़-बकरियों की दुखद मौत हो गई।

चंबा जिले के न्याग्रां के पंचायत प्रतिनिधियों को इसकी सूचना मिली। कांगड़ा के ग्वालटिक्कर के रहने वाले दो भेड़पालक, कृष्ण कुमार और जोगेंद्र, लंबे समय तक बर्फ़ के संपर्क में रहने के कारण ‘आइस बर्न’ (शीतदंश) का शिकार हो गए।

ग्रामीणों ने जान जोखिम में डालकर चलाया बचाव अभियान

सूचना मिलते ही, पंचायत प्रधान अशोक कुमार ने सुबह ग्रामीणों की एक बचाव दल को तुरंत जरासू जोत की ओर रवाना किया। इस दल को धारड़ी नामक स्थान पर रावी नदी का बढ़ा हुआ जलस्तर पार करना पड़ा। ग्रामीणों ने अपनी जान को जोखिम में डालते हुए, लकड़ी की पुलिया बनाकर किसी तरह नदी पार की और मुश्किलों का सामना करते हुए घायल भेड़पालकों और उनकी बची हुई भेड़-बकरियों को सुरक्षित बाहर निकाला।

दोनों घायल भेड़पालकों को होली अस्पताल में प्राथमिक उपचार दिया गया, जिसके बाद उन्हें 'आइस बर्न' और अन्य चोटों के विशेष उपचार के लिए टांडा मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया है।

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