देश को गृहयुद्ध की ओर न धकेले सरकारः राणा

Edited By prashant sharma, Updated: 09 Jan, 2021 04:36 PM

government should not push the country towards civil war rana

भारत के किसानों की गिनती उदारवादी देशों में होती है। यहां भावनाओं की कदर ईमानदारी से की जाती रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में हठधार्मिता के लिए कोई स्थान नहीं है

हमीरपुर : भारत के किसानों की गिनती उदारवादी देशों में होती है। यहां भावनाओं की कदर ईमानदारी से की जाती रही है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में हठधार्मिता के लिए कोई स्थान नहीं है लेकिन हठधार्मिकता से सरकार को चला रही सरकार किसानों के संघर्ष को नजरअंदाज करके देश में गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा करना चाह रही है। यह बात हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष एवं सुजानपुर विधायक राजेंद्र राणा ने कही है। उन्होंने कहा कि बीजेपी को प्रचंड जनादेश देने के गुनाह की इतनी बड़ी सजा सरकार न दे। किसानों को नजरअंदाज करके देश को गृहयुद्ध जैसे हालातों में न धकेले। उन्होंने कहा कि समूची केंद्रीय सरकार के साथ भाजपा शासक राज्यों की सरकारें वकालत कर रही हैं कि वह देश के किसानों के हितों की पैरवी उनको लाभ देने के लिए कर रहे हैं और इसी मंशा से कृषि कानून बनाए गए हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसे कृषि कानून व बदलाव किस काम के हैं जिन्हें किसान सिरे से नक्कारते हुए सड़कों पर संघर्ष करने के लिए मजबूर हैं। अगर कृषि कानून बनाते समय सरकार किसानों को विश्वास में लेती तो शायद आज यह नौबत नहीं आती। 

उन्होंने कहा कि बेशक अताताई हो चुकी सरकार को सत्ता मद्द में किसानों को दर्द समझ नहीं आ रहा है लेकिन हकीकत यह है कि बीते सप्ताह पड़ी कड़ाके की सर्दी व मूसलाधार बारिश के बावजूद सड़कों पर ठिठुर रहे किसानों की हालत से देश का बच्चा-बच्चा पसीज उठा है। किसानों के आंदोलन में अब तक 53 किसानों की मौत सड़कों पर ठंड के कारण हो चुकी है। सैंकडों किसान ठंड के कारण बीमार पड़ चुके हैं। बावजूद इसके किसान टस से मस होने को राजी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जिन किसानों को मौत भी खौफजदा नहीं कर पा रही है अब वह बेदर्द सरकार का कोई भी सितम व जुल्म सहने को मानसिक तौर पर तैयार हैं जिस हिसाब से सड़कों पर किसान मर रहे हैं और जिस जिद्द पर सरकार अड़ी हुई है, उससे स्पष्ट है कि अभी तक न जाने कितने किसानों की बलि यह मूवमेंट लेगा। सरकार को समझना होगा कि उसकी ज्यादतीयों व सत्ता के आतंक से किसान पूरी तरह बेखौफ होकर दिनों-दिन आक्रोशित होते जा रहे हैं ऐसे में बेखौफ किसानों का आक्रोशित होना देश को गृहयुद्ध की ओर धकेल सकता है। 

उन्होंने कहा कि समझ में यह नहीं आ रहा है कि सरकार जनता के लिए है या जनता सरकार के लिए है। इतनी बेदर्द हकुमत अभी तक देश के लोकतंत्र के इतिहास में कभी नहीं देखी गई है। सरकार ने किसानों को कुचलने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी है। अर्धसैनिक बलों की हजारों टुकडिय़ों, सीआरपीएफ के हजारों जवान, लोकल पुलिस की पूरी मशीनरी किसानों के सामने संघर्ष को कुचलने के लिए खड़ी कर रखी है लेकिन लगता है कि किसान अब सरकार का हर जुल्म व सित्तम सहने को तैयार हैं। किसानों के इस आंदोलन ने उस कहावत को पूरी तरह साबित कर दिया है जिसमें कहा जाता है कि जमीन किसान की मां होती है और मां को बचाने के लिए अब किसान मरने से भी नहीं डर रहा है लेकिन सरकार यह न भूले कि सड़कों पर हो रहे किसान आंदोलन में हो रही इन मौतों का हिसाब देश की जनता सरकार से जरूर लेगी।
 

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