सरकार की नाक तले बागवानों के साथ खेला जा रहा यह खेल

Edited By Punjab Kesari, Updated: 01 Oct, 2017 02:33 PM

government of nose under gardeners with played going this game

सेब उत्पादकों को उनकी फसल के उचित दाम मुहैया करवाने में सरकार पूरी तरह असफल साबित रही है।

जोगिंद्रनगर: सेब उत्पादकों को उनकी फसल के उचित दाम मुहैया करवाने में सरकार पूरी तरह असफल साबित रही है। इन दिनों जो रायल किस्म का सेब बाजार में 70 से 80 रुपए किलो परचून में बिक रहा है उसका बागवानों के हिस्से में केवल 30 से 40 प्रतिशत ही आ रहा है। गोल्डन किस्म के सेब में तो परचून विक्रेता व बिचौलिए बागवान से लेकर ग्राहक तक को जमकर लूट रहे हैं। हैरानी की बात है कि गोल्डन वैरायटी का सेब जो बागों से 7 से 10 रुपए किलो के हिसाब से उठाया जा रहा है। मंडी जिला के जंजैहली क्षेत्र में बागवानों की हालत सबसे खस्ता है। 


बागवानों के साथ यह सारा खेल सरकार की नाक के नीचे खेला जा रहा
वर्ष भर बागीचों में जीतोड़ मेहनत कर बैंकों से ऋण लेकर सेब पैदावार करने वाले बागवानों के पल्ले बाजार मूल्य का 20 प्रतिशत भी नहीं पड़ रहा है। बागवानों के साथ यह सारा खेल सरकार की नाक के नीचे खेला जा रहा है। व्यापारी से लेकर आढ़ती तक  सब्जीमंडी में किसानों और बागवानों को लूट रहे हैं, लेकिन सरकार व विभाग मूकदर्शक बने हुए हैं। सरकार के पास किसानों को उनकी पैदावार का उचित मूल्य दिलाने की न तो कोई योजना है न ही बाग और बाजार में मूल्यों में आ रहे जमीन आसमान के अंतर पर अधिकारी बागवानों को न्याय दिला पा रहे हैं।


बागवान नहीं भर पा रहे बैंक ऋण
अधिकांश बागवानों ने बैंकों से किसान कार्ड योजना के तहत लाखों के ऋण ले रखे हैं। हर किसान को साल में एक बार यह ऋण चुकता करना होता है जिस पर उसे केवल 4 प्रतिशत ब्याज अदा करना होता है, लेकिन अगर किसान समय पर पूरा ऋण अदा नहीं कर पाए तो उसे आम दर के तहत ब्याज देना होता है। बाजार में फसल के सही मूल्य नहीं मिल पाने के कारण बागवान ऋण समय पर नहीं चुका पा रहे हैं जिस कारण कई-कई बागवानों के बाग ही गिरवी हो गए हैं। 


फेल होकर रह गई है व्यवस्था
उपभोक्ताओं को परचून विक्रेताओं की लूट से बचाने के लिए डी.सी. मंडी की पहल पर करीब 2 वर्ष पहले बाजारों के मुख्य स्थानों पर फलों और सब्जियों के अधिकृत मूल्य लगाने की कवायद शुरू की गई थी जिस पर परचून विक्रेता का अधिकतम लाभ लगाकर रोज मूल्य बोर्ड पर प्रदर्शित किए जाते थे। ऐसी व्यवस्था जोगिंद्रनगर में भी की गई थी, लेकिन बस अड्डे पर लगा बोर्ड पिछले कई माह से गायब है, जिस कारण सारी व्यवस्था ठप्प होकर रह गई है। 

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