Edited By Rahul Singh, Updated: 14 Dec, 2025 03:21 PM

हिमाचल में विधानसभा चुनाव भले ही 2027 में होने वाले हैं, लेकिन तैयारियों में नेता अभी से जुट गए हैं। विधानसभा फतेहपुर में पिछले चुनावों में बीजेपी के लिए मैदान में उतरे पूर्व वन मंत्री राकेश पठानिया कांग्रेस के मौजूदा विधायक भवानी पठानिया से हार गए...
फतेहपुर (राहुल राणा) : हिमाचल में विधानसभा चुनाव भले ही 2027 में होने वाले हैं, लेकिन तैयारियों में नेता अभी से जुट गए हैं। विधानसभा फतेहपुर में पिछले चुनावों में बीजेपी के लिए मैदान में उतरे पूर्व वन मंत्री राकेश पठानिया कांग्रेस के मौजूदा विधायक भवानी पठानिया से हार गए थे, लेकिन अब एक बार फिर वह भवानी को टक्कर देने के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रहे हैं। इसी के चलते वह फतेहपुर विधानसभा में लगातार जनता के बीच जा रहे हैं और रविवार रे मंडल में एक भव्य रैली निकालकर शक्ति प्रदर्शन किया। रैली में सैकड़ों लोगों की भीड़ दिखी और राकेश पठानिया के हित में नारे लगते दिखे।
हालांकि, राकेश पठानिया के लिए सिर्फ जीतना ही चुनौतीभरा नहीं है, बल्कि अपनी ही पार्टी के अंदर यहां से चल रही गुटबाजी से निपटना भी जरूरी है। बता दें कि 2012 से लेकर अभी तक हुए चुनावों में यहां से कांग्रेस सीट निकालती नजर आई है। बीजेपी में कार्यकर्ताओं के आपसी टकराव और एक-दूसरे के विरोध ने सीट से दूर ही रखा है। पिछले चुनावों में राकेश पठानिया ने 25000 से अधिक वोट यहां से हासिल किए थे, जोकि 2012 के बाद से बीजेपी के किसी प्रत्याशी द्वारा लिए गए सबसे अधिक वोट रहे। ऐसे में इस बार अटकलें लगाई जा रही हैं कि राकेश पठानिया को एक बार फिर यहां से मैदान पर उतारा जा सकता है।
टिकट की होड़ में यहां से बलदेव ठाकुर, पंकज हैप्पी शर्मा, जगदेव ठाकुर और मदन राणा भी लगे हुए हैं। यह कार्यकर्ता मिलकर विधानसभा में दौरा करने लगे हुए हैं। हालांकि, उनकी कोई ऐसी बड़ी रैली या फिर लोगों का भरपूर समर्थन देखने को नहीं मिल पाया जैसा कि राकेश पठानिया को मिलता दिख रहा है।
क्या कार्यकर्ता ही बन रहे हार का कारण?
फतेहपुर से बीजेपी की हार कारण कहीं न कहीं उनके खुद के कार्यकर्ता भी हैं, जोकि टिकट न मिलने पर उस प्रत्याशी के विरोध में उतर जाते हैं जिसे कि हाईकमान मैदान पर उतारता है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2017 में हुए चुनावों में दिखा। बीजेपी ने मैदान पर कृपाल परमार को उतारा था, जोकि पीएम मोदी के करीबी माने जाते हैं। लेकिन इनके विरोध में ही तब बलदेव ठाकुर मैदान में उतर आए और बीजेपी को ही किनारा कर दिया। साल 2012 में हुए चुनावों में बलदेव ठाकुर को टिकट मिली थी। लेकिन वह 11,445 वोट ही हासिल कर पाए और तब स्वर्गीय सुजान सिंह पठानिया ने 18,662 वोट हासिल कर जीत हासिल की थी।
बलदेव ठाकुर की बड़ी हार देख हाईकमान ने 2017 में कृपाल परमार को टिकट दी। उस समय कृपाल जीत के दावेदार भी थे, लेकिन उनके विरोध में बलदेव ठाकुर आजाद चुनाव लड़कर उतर आए। नतीजा यह रहा कि बीजेपी ने यहां से फिर से करीब आकर सीट गंवा दी। तब सुजान सिंह पठानिया को 18,962, जबकि कृपाल को 17,678 वोट मिले थे। वहीं आजाद में 13,090 वोट बलदेव ठाकुर को मिले। अगर उस समय बलदेव ठाकुर ने पार्टी का साथ दिया होता तो बीजेपी की यहां वापसी संभव थी। वहीं पार्टी ने 2021 में फिर बलदेव को टिकट दी, लेकिन वह फिर हार गए।
अब फिर दिख रहा आपसी विरोध
यहां से अब एक बार फिर आपसी विरोध दिखने को मिल रहा है। एक तरफ यहां से राकेश पठानिया अकेले बड़ी रैलियां निकाल रहे हैं तो दूसरी तरफ जगदेव ठाकुर, बलदेव ठाकुर और पंकज शर्मा अलग चलते हुए राकेश का विरोध कर रहे हैं। इनका यह कहना है कि टिकट बाहरी विधानसभा से आए नेता को नहीं दी जानी चाहिए। हालांकि, हाईकमान किसको टिकट देता है यह आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन सरेआम दिख रहे ये दोनों गुट फिर से साफ तस्वीर कर रहे हैं कि इनकी आपसी कलह का फायदा फिर से यहां कांग्रेस के प्रत्याशी को मिलने वाला है।