हिमाचल में रासायनिक और जैविक खेती पर लगा प्रतिबंध

Edited By Vijay, Updated: 26 Dec, 2018 10:58 PM

ban on chemical and organic farming in himachal

हिमाचल में अब शून्य लागत प्राकृतिक खेती की शुरूआत होगी। लिहाजा प्रदेश में रासायनिक और जैविक खेती पर प्रतिबंध लगेगा। शून्य लागत खेती का नाम भी बदल कर अब सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती रख दिया गया है।

मनाली: हिमाचल में अब शून्य लागत प्राकृतिक खेती की शुरूआत होगी। लिहाजा प्रदेश में रासायनिक और जैविक खेती पर प्रतिबंध लगेगा। शून्य लागत खेती का नाम भी बदल कर अब सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती रख दिया गया है। राज्य में कैंसर के बढ़ते मरीजों की तादाद को देखते सरकार ने हिमाचल में रासायनिक और जैविक खेती पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है। लिहाजा रासायनिक और जैविक खेती पर सरकार अब सबसिडी नहीं देगी। कृषि मंत्री डा. राम लाल मारकंडा ने इसकी पुष्टि की है।

मैडीकल शोध में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

मैडीकल शोध में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि इलाज के लिए आई.जी.एम.सी. पहुंचने वाले कुल मरीजों में 25 फीसदी लोग कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं, जबकि कृषि और बागवानी में रासायनिक दवाइयों का प्रयोग प्राकृतिक वातावरण में जहर घोल रहा है, जिसे जल्द नियंत्रित करना बेहद जरूरी हो गया है। बताया जा रहा है कि शून्य लागत खेती में हालांकि शुरूआत के 3 साल तक कृषि उपज में औसतन पैदावार कम रहती है, लेकिन इसके बाद सामान्य पैदावार शुरू हो जाती है, जबकि प्राकृतिक खेती से पैदा की गई कृषि उपज की कीमत भी बढ़ जाती है। कृषि मंत्री ने कहा कि हिमाचल में शून्य लागत प्राकृतिक खेती को अब सुभाष पार्लेकर प्राकृतिक खेती का नाम दिया गया है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए इस साल 25 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है।

क्या है प्राकृतिक खेती

प्राकृतिक खेती में किसी तरह की रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है, जबकि जैविक खेती भी महंगी होने के कारण आम किसानों की पहुंच से बाहर है। प्राकृतिक खेती में देसी गाय के गोबर, मूत्र के अलावा गुड़, बेसन और मेंड़ की मिट्टी से तैयार घोल का स्प्रे किया जाता है। रासायनिक खाद की तर्ज पर यह घोल फसलों की बेहतर पैदावार में मददगार साबित होता है। यह घोल फसलों को बीमारी से बचाने के साथ खुराक का भी काम करेगा। जिला कृषि अधिकारी हेमराज वर्मा का कहना है कि प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए पूरे हिमाचल में डैमोस्ट्रेशन चल रहा है। उन्होंने बताया कि ड्रम में इस घोल को छायादार जगह में तैयार किया जाता है।          

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