PICS: इस महिला ने तोड़ी बाबा बालकनाथ मंदिर में चली आ रही 500 साल पुरानी परंपरा

Edited By Updated: 08 May, 2016 03:51 PM

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उत्तर भारत के प्रसिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर में गुफा तक महिलाओं के न जाने की वर्षों पुरानी परंपरा शनिवार को टूट गई।

हमीरपुर (अरविंदर सिंह): उत्तर भारत के प्रसिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर में गुफा तक महिलाओं के न जाने की वर्षों पुरानी परंपरा शनिवार को टूट गई। मंदिर में बाबा की गुफा तक पहली बार किसी महिला ने प्रवेश कर माथा टेक कर सबको हैरानी में डाल दिया। हालांकि, महिलाओं के गुफा तक जाने के लिए न तो मंदिर प्रशासन और न ही जिला प्रशासन की तरफ से आज दिन तक कोई रोक-टोक थी, लेकिन पुरानी परंपरा के अनुसार महिलाएं गुफा में प्रवेश नहीं करती थी। इसी के चलते प्रशासन ने गुफा के सामने महिलाओं के लिए माथा टेकने को चौबारा बना रखा है। शनिवार को इस चौबारे से माथा न टेक कर एक महिला अपनी 2 बेटियों के साथ गुफा तक पहुंच गई। 


महिला हमीरपुर जिला के ही भोटा की निवासी अंजू बाला है। वे अपनी 2 बेटियों सहित शनिवार शाम दियोटसिद्ध मंदिर में पहुंची। जब वह गुफा की ओर बढऩे लगी तो पहले उसे वहां तैनात महिला गृह रक्षक ने रोकने की कोशिश की। अंजू ने रोकने वाली महिला की तरफ ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ गई। इसके बाद उसे कुछ पुजारियों ने पुरानी परंपरा की ओर ध्यान दिलाया, लेकिन अंजू बेबाकी अपनी 2 बेटियों सहित गुफा में जा पहुंची और माथा टेक कर वापस लौट गई। अंजू लदरौर स्कूल में बतौर बायोलाॅजी की प्रवक्ता के रूप में नियुक्त है। उनके ऐसा करने से मंदिर परिसर में ये खबर आग की तरह फैल गई। सब लोग हतप्रभ होकर चर्चा करने लगे।


इस संदर्भ में मंदिर अधिकारी ईश्वर दास ने माना कि एक महिला ने मंदिर की गुफा में जाकर माथा टेका है। इस पर कोई रोक-टोक नहीं थी, बल्कि अब तक महिलाओं के माथा न टेकने की परंपरा चली आ रही थी। बता दें कि बाबा बालकनाथ ने इससे पहले हमीरपुर के ही जिला झनियारी नामक स्थान पर तप कियाए इसके बाद वे शाहतलाई आए और ब्रहमचार्य जीवन यापन करते-करते वे दयोट् नामक राक्षस की गुफा में तप करने जा बैठे। इसी बात को लेकर दानों में युद्ध हुआ और बाबा बालकनाथ विजयी हुए। इसके बाद समझौता यह हुआ कि इस स्थान का नाम दयोटसिद्ध पड़ेगा। चूंकि बाबा बालक नाथ एक सिद्ध थे और राक्षस का नाम दयोट् था, इसलिए इस स्थन को दयोटसिद्ध के नाम से जाना जाता है।


पुजारियों की मानें तो इसी वजह से यहां चढ़ाए जाने वाले बकरे दयोट् के नाम होते हैं और प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाने वाले रोट होते हैं। इसमें कहीं कोई जिक्र नहीं है कि इस गुफा तक महिलाओं का जाना वर्जित है। ऐसा माना जाता है कि बाबा बालकनाथ के ब्रहमचार्य सिद्ध होने के चलते स्वंय ही पुराने वक्त में महिलाओं ने गुफा तक न जाने की परंपरा बना दी। अन्यथा मंदिर में महिलाओं को गुफा तक जाने की न तो कोई रोक-टोक थी और न है। वर्तमान में भी महिलाएं अपनी इच्छा से ही गुफा के सामने बने चौबारे से दर्शन कर रही हैं। इससे पहले भी महिलाएं गुफा के सामने बने चौबारे से ही दर्शन कर लौटती रही हैं। सदियों से चली इस प्रथा को वर्तमान में भी महिलाओं ने अपनी मर्जी से ही कायम रखा है। अब ये प्रथा इतिहास ही रह जाएगी, चूंकि अंजू बाला ने नई रिवायत शुरू कर दी है।

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