समाज के लिए मिसाल बना यह परिवार, मुस्लिम होने के बावजूद गौवंश से बेपनाह प्यार

Edited By Updated: 26 Feb, 2017 06:27 PM

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एक तरफ जहां हमारे समाज में गऊ पालन को धर्म से जोड़कर देखा जाता रहा है और एक धर्म विशेष पर लगातार गौवंश की हत्या के आरोप लगे हैं तो वहीं दूसरी ओर जिला सिरमौर के मोगीनंद बांकाबाड़ा गांव के एक मुस्लिम परिवार द्वारा दशकों से गऊ पालन कर समाज के लिए मिसाल...

नाहन: एक तरफ जहां हमारे समाज में गऊ पालन को धर्म से जोड़कर देखा जाता रहा है और एक धर्म विशेष पर लगातार गौवंश की हत्या के आरोप लगे हैं तो वहीं दूसरी ओर जिला सिरमौर के मोगीनंद बांकाबाड़ा गांव के एक मुस्लिम परिवार द्वारा दशकों से गऊ पालन कर समाज के लिए मिसाल पेश की जा रही है। इस परिवार के सदस्यों दिलशाद मौहम्मद, समीम बेगम व जुलेखा की सुबह जहां गऊओं के बीच शुरू होती है, दिन गऊओं संग बितता है और शाम भी गऊओं के बीच ही ढलती है। हालांकि शायद ही किसी ने आज तक इस परिवार पर ध्यान दिया हो। 
 

धर्म की बात करने वालों को लेनी चाहिए प्रेरणा
परिवार के सदस्य जितना भी समय हो सके गौ सेवा में व्यतीत करते हैं, ऐसे में समाज के उस वर्ग को इस परिवार से जरूर प्रेरणा लेनी चाहिए जो धर्म की बात करते हैं। उधर, दूसरी ओर देखने को मिल रहा है कि पशुपालन से अब लोग मुंह मोड़ते जा रहे हैं क्योंकि पशुपालन अब अधिक खर्चीला साबित होता जा रहा है। कम बारिश वाले क्षेत्रों में लगातार कम चारा मिलने के कारण समस्या अधिक रहती है तो वहीं इस परिवार द्वारा विभिन्न समस्याओं को झेलते हुए गौ पालन किया जा रहा है।

40 से अधिक गऊओं का किया जा रहा पालन
वर्तमान में जहां एक गाय का पालन करना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है तो वहीं इस परिवार द्वारा मिलकर पिछले करीब 30 सालों से 40 से अधिक गऊओं का पालन किया जा रहा है, जिनकी संख्या अक्सर घटती-बढ़ती रहती है। इतनी अधिक संख्या में गऊओं को पालने में अक्सर समस्याएं सामने आती हैं। परिवार की मानें तो गऊ पालन से उन्हें अधिक मुनाफा नहीं हो रहा है लेकिन उनका गुजारा चल रहा है। 

औद्योगिक क्षेत्र घोषित होने के बावजूद नहीं छोड़ा पशुपालन 
हालांकि पिछले एक दशक से उक्त क्षेत्र औद्योगिक क्षेत्र में शामिल हो चुका है, ऐसे में वो चाहते तो जमीन का प्रयोग औद्योगिक इकाईयों के मकसद से कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और औद्योगिक क्षेत्र होने के बाद भी समस्याओं को झेलते हुए पशु पालन जारी रखा। परिवार के मुखिया दिलशाद ने बताया कि औद्योगिक क्षेत्र होने के बाद उनकी समस्या कई बार बढ़ी भी क्योंकि गंदा पानी पीने के बाद पशुओं में बीमारियां बढ़ीं लेकिन फिर भी गऊ पे्रम उन्हें गऊओं को बेचने नहीं देता। 

जंगलों में चरा कर भरते हैं गऊओं का पेट 
परिवार के मुखिया दिलशाद मौहम्मद के अनुसार गऊओं की अधिक संख्या होने के चलते घर पर चारे की व्यवस्था करना मुश्किल है। गाय के दूध बेचने के बाद जितनी राशि मिलती है उससे सूखा चारा खरीदा जाता है। जो बरसात आदि के दिनों में चलाया जाता है। गऊओं का अधिकतर पेट जंगलों व नदियों के किनारे चरा कर भरा जाता है। दिलशाद स्वयं गऊओं को सुबह लेकर निकलते हैं और शाम को वापस लौटते हैं। 

गौ हत्या का करते हैं विरोध
दिलशाद ने बताया कि वह गौ हत्या का घोर विरोध करते हैं। वह कहते हैं जिस गाय का दूध पीकर हम पले-बड़े हैं, उसकी हत्या कैसे कर सकते हैं। उनका कहना है कि उनकी गाय अक्सर बीमारी व वृद्धावस्था में घर में दम तोड़ देती है लेकिन कभी भी वह गौ हत्यारों को चंद रुपए के लालच में गाय नहीं बेचते। पशुपालक के ऐसे विचार सच में समाज के लिए प्रेरणा है। 

देसी नस्ल को बढ़ावा देने में निभा रहा अहम भूमिका 
देश में एक ओर जहां देसी नस्ल की गऊओं की संख्या में कमी देखने को मिल रही है और अधिकतर लोगों का रूझान विलायती व हाई नस्ल की गऊओं की ओर बढ़ रहा है तो वहीं यह परिवार देसी नस्ल की गऊओं को बढ़ावा देने में भी अपनी अहम भूमिका निभा रहा है। परिवार के पास अधिकतर संख्या में देसी नस्ल की ही गऊएं हैं। उधर, प्रदेश के महामहीम राज्यपाल आचार्य देवव्रत गौभक्त हैं और समय-समय पर अपने आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में देसी नस्ल की गऊओं के संरक्षण की अपील विभिन्न मंचों में करते रहे हैं, ऐसे में यह परिवार महामहीम की उम्मीदों पर खरा उतरता है। 

लोग छोड़ जाते हैं गाय 
दिलशाद मौहम्मद बताते हैं कि वर्तमान में लोग गऊ पालन से दूर होते जा रहे हैं, लोगों को घर में गाय पालकर दूध प्राप्त करने से खरीद कर दूध लेना अधिक आसान लगता है, जिसके चलते गऊ पालन में असमर्थ लोग अक्सर उनके पास गाय छोड़कर जाते हैं, जिसं वह अपनी गऊओं में शामिल कर लेते हैं और पालन करते हैं। 

सरकार सहयोग करे तो गऊशाला चला सकता है परिवार 
प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में गौवंश को बढ़ावा देने व आवारा पशुओं से निपटने के लिए गऊशालाओं का निर्माण युद्धस्तर पर करवाया जा रहा है। यदि इस परिवार पर सरकार इनायत हो तो यह परिवार भी गऊशाला संभाल सकता है क्योंकि परिवार बिना किसी सहायता से 40 से अधिक गऊओं को संरक्षण दे रहा है, जिनमें ऐसी गऊएं भी शामिल होती हैं जो लोग उनके पास छोड़ जाते हैं। 

गऊ पालन से दूर भागती हैं कई बीमारियां 
विशेषज्ञों के अनुसार यदि घर में गऊ पालन किया जाता है तो विभिन्न बीमारियां दूर भागती हैं। गऊ पालन से परिवार जहां व्यस्त रहता है तो वहीं गाय के गर्दन पर लगे कंबल पर सुबह हाथ फेरने से ब्लड प्रैशर जैसे रोग कम होते हैं। इसके अलावा गौमूत्र विभिन्न रोगों की दवाओं में प्रयोग किया जाता है। 

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