Edited By Updated: 28 Jan, 2016 07:32 PM
पंजाब केसरी’ के नाम से विख्यात भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सिपाही लाला लाजपत राय को जहां वीरवार को पूरे देश ने 150वीं जयंती पर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए.....
शिमला: ‘पंजाब केसरी’ के नाम से विख्यात भारतीय स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सिपाही लाला लाजपत राय को जहां वीरवार को पूरे देश ने 150वीं जयंती पर अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए, वहीं हिमाचल प्रदेश सरकार को इस महत्वपूर्ण अवसर का स्मरण तक नहीं आया। इसका उदाहरण शिमला के स्कैंडल प्वाइंट (रिज मैदान) पर लाहौर से लाकर स्थापित की गई उनकी वह प्रतिमा है, जिस पर पुष्पांजलि अर्पित करने के लिए सरकार का कोई नुमाइंदा वहां मौजूद नहीं था। हैरानी इस बात की है कि उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर सरकार की तरफ से पहले श्रद्धांजलि समारोहों का आयोजन किया जाता रहा है लेकिन इस बार किसी को उनकी याद नहीं आई। इससे पहले उनकी पुण्यतिथि पर सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने जरूर श्रद्धासुमन अर्पित किए थे।
कौन थे लाला लाजपत राय
लाला लाजपत राय देश के स्वाधीनता संग्राम के प्रमुख सिपाही थे। उनका जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के फिरोजपुर जिला के अंतर्गत आने वाले धुडेकी में हुआ था। उन्होंने 1880 में कलकत्ता और पंजाब विश्वविद्यालय प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर 1886 में कानून की उपाधि प्राप्त की थी। लाला लाजपत राय जाने-माने लेखक और भारतीय स्वतंत्रता अभियान के मुख्य नेता के रूप में याद किए जाते हैं। इसी कारण उनको पंजाब केसरी की उपाधि दी गई थी।
स्वाधीनता संग्राम में लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में लाल का मतलब लाला लाजपत राय के नाम से है। वह अपने प्रारंभिक जीवन में पंजाब राष्ट्रीय बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी से भी जुड़े थे। उन्होंने समाज में फैले ऊंच-नीच के भेदभाव जैसी कई कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उनका मानना था कि मनुष्य अपने गुणों से आगे बढ़ता है न कि दूसरो की मेहरबानी से। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के अनेकों आंदोलनों में सक्रियता से भाग लिया और 1927 में ब्रिटिश सरकार की तरफ से नियुक्त साइमन कमीशन का सबसे पहले विरोध किया।
उनका कहना था कि कमीशन में सातों सदस्य अंग्रेज थे जोकि भारत को स्वीकार नहीं था। उन्होंने इसका बहिष्कार करने का निर्णय लिया। साइमन कमीशन 30 अक्तूबर, 1928 को जब पंजाब पहुंचा तो वह इसके विरोध में खड़े हुए। इस दौरान उनके ऊपर निर्दयतापूर्ण तरीके से लाठीचार्ज किया गया, जिस कारण घायल होने से 17 नवम्बर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई।