हारने के बावजूद धूमल ही बन सकते हैं हिमाचल के CM, जानिए कैसे?

Edited By Punjab Kesari, Updated: 20 Dec, 2017 12:36 PM

losing despite only dhumal become can

राज्य में भाजपा को प्रचंड जीत के बीच प्रेम कुमार धूमल की अप्रत्याशित हार के कारण केंद्रीय हाईकमान के लिए मुख्यमंत्री चेहरे के चयन के लिए बड़ा धर्म संकट खड़ा हो गया है। लेकिन सूत्रों की मानें तो पार्टी प्रेम कुमार धूमल को ही मुख्यमंत्री बनाने पर...

हमीरपुर: राज्य में भाजपा को प्रचंड जीत के बीच प्रेम कुमार धूमल की अप्रत्याशित हार के कारण केंद्रीय हाईकमान के लिए मुख्यमंत्री चेहरे के चयन के लिए बड़ा धर्म संकट खड़ा हो गया है। लेकिन सूत्रों की मानें तो पार्टी प्रेम कुमार धूमल को ही मुख्यमंत्री बनाने पर विचार कर रही है। पार्टी चाहती है कि धूमल छह महीने के अंदर फिर से विधानसभा चुनाव लड़कर सदन पहुंच जाएं। 


धूमल के लिए एक विकल्प यह भी
मुख्यमंत्री पद पर चयन के इन तमाम पहलुओं में यह बात भी राज्य भाजपा के एक पक्ष में तेजी से जोर पकडऩे लगी है कि हिमाचल में पार्टी को ऐतिहासिक बहुमत का तोहफा देने वाले पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को ही क्यों न उनके अनुभव को देखते हुए मौका दिया जाए? इसके लिए पार्टी के भीतर से इस चुनाव में प्रभावशाली रहा एक पक्ष तर्कों की एक लंबी फेहरिस्त भी सामने रख रहा है। यहां तक कि धूमल को मुख्यमंत्री पद पर बिठाने के लिए इस चुनाव में जीत दर्ज करने वाले पार्टी के विधायक भी अपनी सीट छोडऩे के लिए तैयार हो गए हैं। 


हाईकमान के वायदे का क्या होगा?
पार्टी के अंदर से ही एक बड़ा खेमा धूमल की हार के बावजूद इस पद पर उनकी दावेदारी को सशक्त मान रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि पार्टी हाईकमान ने धूमल के नाम की राज्य में साख को जानते हुए यह चुनाव उनके नाम पर लड़ा। उन्हें सी.एम. फेस के रूप में प्रोजैक्ट किया और आज जब पार्टी की झोली में ऐतिहासिक बहुमत है तो फिर धूमल के नाम पर पार्टी को राज्य में वोट देने वाले लाखों लोगों के साथ हाईकमान के वायदे का क्या होगा? इस बात का भी हवाला दिया जा रहा है कि धूमल ने पार्टी अनुशासन का पालन करते हुए अपनी परंपरागत सीट को छोड़कर संगठन के निर्देश पर सुजानपुर से चुनाव लड़ा और हार गए। अगर यही चुनाव वह पार्टी हाईकमान के निर्देश की उल्लंघना करते हुए हमीरपुर से लड़ते तो जीत जाते। कहा यह भी जा रहा है कि जब केंद्रीय सरकार में लोकसभा चुनाव हारने के बावजूद अरुण जेतली व स्मृति ईरानी मंत्री बन सकते हैं तो धूमल विस चुनाव हारने के बाद मुख्यमंत्री क्यों नहीं? इससे भी बड़ी यह बात धूमल को अव्वल नंबरों में ला रही है कि उनके पास राज्य में सरकार चलाने का अनुभव है और भाजपा गुड गवर्नैंस व लोगों को सॢवस डिलीवरी के इस नए युग की अवधारणा में अपने ही यहां मौजूद नेता को दरकिनार करने का जोखिम इस दौर में क्यों ले जबकि 2019 में हिमाचल में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। 


धूमल को सी.एम. देखना चाहते हैं 26 विधायक!
कुटलैहड़ के विधायक वीरेंद्र कंवर के बाद सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र से लगातार जीत की हैट्रिक लगाने वाले भाजपा विधायक कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को लेकर अपनी सीट छोडऩे का ऐलान किया है। नवनिर्वाचित विधायक कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि उन्हें राजनीति में प्रेम कुमार धूमल ही लाए थे। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल चाहें तो सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र से बाकायदा चुनाव लड़ सकते हैं। वह उनके लिए अपनी सीट का त्याग करने के लिए तैयार हैं। इस बीच सूचना यह भी हैै कि पार्टी के 44 विधायकों में से 26 धूमल को ही मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं और इसके लिए वह अपनी सीट तक छोडऩे को तैयार हैं। बताया जाता है कि मंगलवार को धूमल के आवास पर हुई एक बैठक के बाद कई विधायकों ने धूमल को ही सी.एम. बनाने की इच्छा जाहिर की है। सूत्रों का कहना है कि हिमाचल के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त सीतारमण और नरेंद्र सिंह तोमर के साथ बैठक में यह विधायक धूमल का नाम लेने वाले हैं।


इसलिए हारे धूमल
हालांकि हमीरपुर सीट उनके लिए सेफ थी लेकिन पार्टी हाईकमान के आदेश को टालने की बजाय उन्होंने सुजानपुर से लड़ने का जोखिम उठा लिया। एकदम नया चुनाव क्षेत्र होने के कारण व चुनाव से मात्र 15 दिन पहले उनका चुनाव क्षेत्र बदलने से वह ‘सियासी चक्रव्यूह’ में उलझ गए। ऐसे में वह प्रदेश को देखते, अपनों को देखते या फिर अपनी सीट। दूसरी बात यह कि खुद धूमल सुजानपुर की थाह लेने में विफल रहे। राणा के सामाजिक रुतबे को कम आंकना उनकी बड़ी गलती रही। उन्हें मात्र 1919 वोटों से हार का मुंह देखना पड़ गया।

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