खुद को पवित्र साबित करने के लिए की थी आत्महत्या, 6 महीने बाद दफन शव निकाला तो बन गई ‘हत्या देवी’

Edited By Prashar, Updated: 13 Sep, 2019 05:10 PM

hatyadevi temple mandi

मंडी: किस्से-किवदंतियों और रहस्यों के आधार पर खड़े हिमाचल प्रदेश में कई ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में जानने की इच्छा लेकर उस अनंत गहराई में जाना किसी पागलपन से कम नहीं लगता। ना जाने कितने जिद्दी राजा, कितने वैज्ञानिक इन रहस्यमयी बातों से पर्दा उठाने...

मंडी: किस्से-किवदंतियों और रहस्यों के आधार पर खड़े हिमाचल प्रदेश में कई ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में जानने की इच्छा लेकर उस अनंत गहराई में जाना किसी पागलपन से कम नहीं लगता। ना जाने कितने जिद्दी राजा, कितने वैज्ञानिक इन रहस्यमयी बातों से पर्दा उठाने में अपने घुटने टेक चुके हैं। कुछ ऐसा ही रहस्य जुड़ा है मंडी जिला के एक मंदिर से, मंदिर का नाम है 'हत्या देवी’। इस मंदिर में एक गांव के लोग तो देवी की नित पूजा पाठ करते हैं, लेकिन दूसरे गांव के लोग इसकी तरफ गर्दन घुमाने और वहां जाने से थर्र-थर्र कांपते हैं।

‘राजा महाराजाओं के वक्त का है मंदिर’

बात तब की है जब हिमाचल में रियासतें हुआ करतीं थी, और ये किस्सा मंडी की सुकेत रियासत से जुड़ा है। उस वक्त राजा-महाराजाओं का राज हुआ करता था और सुकेत की कमान राजा रामसेन के हाथ थी। ये मंदिर भी राजा रामसेन ने ही बनवाया था। मंदिर के पीछे की कहानी और सारी घटना भी राजा रामसेन के परिवार से जुड़ी है, सबसे बड़ी बात कि, जो हत्या देवी है वो भी राजा रामसेन की ही बेटी थी। जिसकी आज देवी-देवताओं की तरह पूजा होती है।

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‘हत्या देवी’ कैसे पड़ा नाम?
‘हत्या देवी’... बताने के लिए नाम ही काफी है कि ये घटना किसी हत्या से जुड़ी होगी। दरअसल मौत के वक्त राजकुमारी इंद्रावती अपने पिता के घर से दूर पांगणा जगह पर थी। उस वक्त पांगणा सुकेत रियासत की शीतकालीन राजधानी थी। किसी को भनक तक नहीं थी कि राजकुमारी आत्महत्या भी कर सकती है। लेकिन सबकी सोच के परे अपने पिता की नाराजगी और उनके मन में पल रहे एक शक के चलते राजकुमारी ने पांगणा में आत्महत्या कर ली और मरणोपरांत राजकुमारी की इच्छानुसार ही उसका सारा अंतिम संस्कार किया गया...

बेशक आपके ज़हन में ये बात आ रही होगी कि जब राजकुमारी ने किसी को आत्महत्या के बारे में बताया ही नहीं और किसी को इसकी भनक तक नहीं थी तो सब कुछ राजकुमारी की इच्छानुसार कैसे हुआ। दरअसल राजकुमारी ने सारी दास्तां अपने नाराज पिता के सपने में आकर कही थी।

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बड़ी अजीब है राजकुमारी से हत्या देवी बनने की कहानी
दरअसल वो सर्दियों का वक्त था, राजकुमारी अपने राजमहल में अक्सर सखियों के साथ खेला करती थी। उस दिन भी खेल जारी था। अलग सिर्फ इतना था कि उस दिन एक सखी युवक की वेशभूषा में थी, और इसी युवक की वेशभूषा के साथ राजकुमारी के उल्टे दिन शुरू हो गए। दरअसल जब राजकुमारी और उनकी सखियां युवक बनी सखी के साथ खेल रहीं थी तो सामने से राजपंडित गुजरे, राजपंडित को लगा कि राजकुमारी का किसी युवक से प्रेम प्रसंग है और सखियों की आड़ में वो उस युवक के साथ खेल रही है, जबकी ऐसा नहीं था

इसके बाद राजपंडित ने आव देखा ना ताव, मिर्च मसाला लगाकर बिना सच जाने सारी कहानी राजा के सामने तपाक से बयां कर डाली। राजा शर्मिंदा हुए और लोकलाज की चिंता से उन्होंने राजकुमारी चंद्रावती को सुकेत की शीतकालीन राजधानी पांगणा भेज दिया।

राजकुमारी चंद्रावती पवित्र थी, उन्होंने अपने उपर लगे लांछन से शर्मिंदा होकर और अपनी पवित्रता साबित करने के लिए ‘रती’ नाम का विषैला बीज एक शिला पर पीसकर खा लिया जिससे उसकी मौत हो गई, कहा जाता है की यह शिला आज भी पांगणा में वैसे ही मौजूद है।

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पिता रामसेन के सपने में आई थी देवी चंद्रावती
राजकुमारी के प्राण त्यागने के बाद देवी चद्रावंती उसी रात अपने पिता राजा रामसेन के सपने में आई और उन्हें पूरी कहानी सुनाई। उसी समय देवी चंद्रावती ने अपने पिता से कहा कि मेरे मृत शरीर को महामाया देवी कोट मंदिर पांगणा के परिसर में दबाया जाए। इसे छह माह बाद दोबारा से जमीन से बाहर निकालना। अगर मैं पवित्र हूं तो मेरा शरीर उस समय भी पूरी तरह सुरक्षित रहेगा और अगर पवित्र नहीं हुई तो यह पूरी तरह से गल कर सड़ जाएगा। राजा ने अगली सुबह राज पुरोहित समेत रियासत के ज्योतिषियों को बुलाया और अपने सपने के बारे में बताया। इसके बाद उन्होंने चंद्रावती के कहे अनुसार उनके शरीर को महामाया मंदिर के परिसर में ही दबा दिया।

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 6 महीने बाद जमीन से सुरक्षित निकाला गया था राजकुमारी का शव
मौत ऐसा सच है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता और एक सच ये है कि मौत के बाद शरीर को नष्ट होने में ज्यादा वक्त नहीं लगता। चाहे उसे जलाया जाए चाहे दफनाया जाए। लेकिन यहां ताजुब्ब की बात 6 माह के बाद राजा ने वह जमीन खोदी जहां बेटी को दफनाया था, और जो शव बाहर निकाला वो बिल्कुल सुरक्षित था। इससे सिद्ध हो गया कि चंद्रावती पवित्र थी और पुरोहित की बात गलत थी। इस के बाद राजा ने बेटी की इच्छा के अनुसार उनके शव का पांगणा के पास चंदपुर स्थान पर अंतिम संस्कार किया। इसी स्थान पर शिव पार्वती का मंदिर भी बनाकर शिवलिंग की स्थापना की गई जिसे आज दक्षिणेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है और इसके बाद से राजकुमारी चंद्रावति का नाम 'हत्या देवी' पड़ा।

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चिंता में हो गई राजा की मौत, पुरोहित को मिली कठोर सजा
बेटी की मौत और मौत के पीछे असलियत को जानकर राजा को भारी ठेस पहुंची, चिंता में राजा की तो मौत हो गई। लेकिन उससे पहले उन्होंने पुरोहित को सजा के तौर पर राजधानी से बाहर निकालकर चुराग नामक जगह पर भेज दिया जहां पर पानी समेत हर छोटी-छोटी चीज का आभाव रहता है।

कौन हैं वो लोग जो हत्या देवी के मंदिर जाने से कांपते हैं?
बेटी की मौत हो गई, बाप चिंता में चला गया और पुरोहित को सजा हो गई और बाद में उसके साथ क्या-क्या हुआ ये कोई नहीं जानता। लेकिन पुरोहित के वंशज आज इस क्षेत्र में लठूण कहे जाते हैं। कहते हैं कि आज तक पुरोहित के वंशज माता के कोप के डर से महामाया देवी कोट मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाते। उनका मानना है कि कहीं देवी चंद्रावती उनके पूर्वजों द्वारा किए गए कृत्य की सजा उन्हें न दें

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हत्यादेवी के नाम से होने लगी देवी चंद्रवती की पूजा
पांगणा स्थित महामाया देवी कोट मंदिर परिसर में जिस स्थान पर राजकुमारी का शव गाड़ा गया था, उस स्थान पर उनकी याद में एक कक्ष का निर्माण कराया गया था और तभी से यहां राजकुमारी की पूजा हत्या देवी के रूप में होती है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु हत्यादेवी की पूजा-अर्चना करते हैं। यह मंदिर साल में कुछ विशेष अवसरों पर ही खोला जाता है। सुकेत राजवंश और गांव के लोगों की हत्यादेवी में विशेष आस्था है।

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नोट- आपको यह जानकारी पुरानी मान्यताओं और बुजुर्गों के कहे अनुसार उपलब्ध कराई गई है। इसके जरिए किसी को भी भ्रमित करना या अंधविश्वास फैलाना हमारा मकसद नहीं है।

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