Edited By Updated: 16 Oct, 2016 03:59 PM
समय के साथ-साथ हाथ से तैयार होने वाली वस्तुओं से जुड़े कारोबारी अपनी आजीविका चलाने के लिए मारे-मारे फिरने पर मजबूर हो गए हैं।
कुल्लू: समय के साथ-साथ हाथ से तैयार होने वाली वस्तुओं से जुड़े कारोबारी अपनी आजीविका चलाने के लिए मारे-मारे फिरने पर मजबूर हो गए हैं। दरअसल मशीनी युग के आगे परंपरागत कृषि औजार व उपकरण मात्र शोपीस बन कर रह गए हैं। कुल्लू दशहरे में सजी ये दुकानें एक भंडार बन कर रह गई हैं। बताया जा रहा है कि बांस से बनने वाली किलटे टोकरियां के स्थान पर प्लास्टिक की वस्तुआें ने एकाधिकार जमा लिया है। यही कारण है कि जिन वस्तुओं को खरीदने के लिए होड़ लगी रहती थी अब वे नदारद हो गई हैं। इस कारोबार में कारीगरों को अपने परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो गया है।
पिछले दो दशक से जिस तरह से इस हस्तशिल्प उद्योग के लोगों को मशीनों की मार पड़ी है, उससे वे इस धंधे को बदलने की तैयारी में लग गए हैं। कुल्लू दशहरे के तीनों पक्ष धार्मिक, व्यापारिक व सांस्कृतिक पहले अपनी गरिमा के लिए जाने जाते रहे हैं, मगर जैसे-जैसे लोगों के विचार व रहन-सहन में बदलाव आया तो परंपरागत वस्तुओं का प्रचलन भी कम होता गया। यही नहीं पहले जिस मिट्टी के घड़े में गर्मियों में ठंडा पानी पीने को मिलता रहा है आज उसकी जगह प्लास्टिक के घड़ों ने ले ली है। पर्यावरण प्रिय चीजें लुप्त होने की कगार पर हैं और पर्यावरण को दूषित करने वाली वस्तुओं का प्रचलन बढ़ने लगा है।