यहां गूर की परीक्षा लेने का अजीबोगरीब विधान

Edited By Updated: 15 Nov, 2015 06:31 PM

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देवभूमि कुल्लू में वैसे तो देवता के गूर निकालने की अलग-अलग विधियां हैं लेकिन सैंज घाटी के दलोगी कोठी बनोगी में गूर की परीक्षा लेने का अजीबोगरीब विधान है।

कुल्लू: देवभूमि कुल्लू में वैसे तो देवता के गूर निकालने की अलग-अलग विधियां हैं लेकिन सैंज घाटी के दलोगी कोठी बनोगी में गूर की परीक्षा लेने का अजीबोगरीब विधान है। न्यूली गांव से ठीक एक किलोमीटर की दूरी पर दलोगी सौर स्थित है। इस सौर का पानी चलता हुआ प्रतीत होता है लेकिन आगे कब और कैसे रुकता है, इसका आभास नहीं होता है।

 

मान्यता है कि पूजा के निमित्त फैंके गए जौ, चावल तथा फूल आदि कभी-कभी इस स्रोत में बहते दिखाई देते हैं। खास बात यह है कि देवता पुंडरिक ऋषि और देवी दुर्गा के गूर की परीक्षा इसी सौर में होती है। जब नया गूर बनता है तो लोगों को देवी-देवता के हरियानों सहित सौर पर पहुंचना पड़ता है। गूर को धोती पहनाकर हाथ में देवता की घंटी तथा जलता हुआ धड़छ (धूप का पात्र) लेकर इस सौर में डुबकी लगानी होती है। यदि धूप का धड़छ ज्यों का त्यों पानी से बाहर आए तो गूर को परीक्षा में उत्तीर्ण माना जाता है।

 

जनश्रुति के अनुसार पुराने समय में देवता पुंडरिक ने एक गूर बनाना चाहा जो बहुत गरीब था। रीति-रिवाज के अनुसार गूर बनने पर उसे अपने घर में लोगों के लिए धाम का आयोजन करना पड़ता है। वह व्यक्ति देवता से यही प्रार्थना करता रहा कि हे देव मुझ कंगाल को आप क्यों गूर बना रहे हो, घर में फूटी कौड़ी नहीं है और अन्न का दाना तक नहीं है तो ऐसे में धाम कहां से खिला सकूंगा। देवता नहीं माने और आखिर देवता ने उसे गूर बना ही दिया। अब रीति-रिवाज अनुसार गूर को देवता तथा हरियानों सहित दलोगी सौर के पास परीक्षा के लिए ले जाया गया। गूर ने धोती पहनाकर देवता की घंटी व जलता हुआ धड़छ लेकर सौर में डुबकी लगाई। 6 दिन बीत गए देवता का गूर तालाब से बाहर नहीं आया। अंत में लोग उसे मरा हुआ समझकर निराश होकर देवता सहित वापस बनोगी मंदिर पहुंचे। परिजनों ने उसका किरया-करम करना शुरू कर दिया।

 

सारा परिवार शोक में डूब गया और सब विलाप करने लगे। अचानक 7वें दिन एकाएक उजाला हुआ। घर आंगन सज-धज गए और अनाज तथा दालों से कोठरी भर गई। परिजनों ने ऐसा दृश्य देखकर देवता के कारकूनों को तुरंत बुलाया। जब कारकून उनके घर पहुंचे तो वे हैरान रह गए। कारकूनों ने गूर के जिंदा वापस आने की संभावना जताई। अंधेरा होते-होते गोधूलि योग में गूर देवता की घंटी तथा जलता हुआ धड़छ लेकर देवता के मंदिर में पहुंचा। देवता के हरियान तथा परिजन गूर को देखकर हैरान रह गए। वर्तमान में भी इस देवता के गूर के पास अतुल धन संपत्ति अपने आप ही जुट जाती है। गूर को किसी भी वस्तु की कमी नहीं रहती है। 

 

यहां आश्विन व बैशाख मास में होते हैं त्यौहार
इस सौर में देवता के 2 तीर्थ त्यौहार मनाए जाते हैं। एक देवता का हूम जो आश्विन मास में निकलता है, उसे देऊ डुबकी भी कहते हैं। इस दिन निराहार रहकर देवता तथा देवता के कारकून सौर में धोती पहनकर डुबकी लगाते हैं। दूसरा त्यौहार हर साल बैशाख के 19 प्रविष्टे को होता है। देवता हरियानों सहित सौर पर आता है तथा देवता का गूर धोती पहनकर सौर में डुबकी लगाता है। इन दोनों दिनों में पानी से बाहर आकर जो कुछ भी किसी के प्रति गूर कहेगा, वह शत-प्रतिशत सत्य होता है। यही नहीं, यहां सभी की मुरादें पुंडरिक ऋषि पूरी करते हैं। इन दोनों दिनों में हजारों श्रद्धालु यहां मन्नतें मांगते हैं लेकिन इस सौर के पानी को बिना धोती लगाकर कारकून भी नहीं छू सकते और न ही इस पानी को पीते हैं।

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