अब अध्यापक संघर्ष मंच इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने को मजबूर

Edited By kirti, Updated: 18 Jun, 2018 04:09 PM

teacher struggle platform forced to raise voice against this injustice

हिमाचल प्रदेश अनुबन्ध से नियमित अध्यापक संघर्ष मोर्चा ने अनुबंध से नियमित हुए अध्यापकों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज बुलंद की है। क्योंकि इनमें से कुछ ऐसे अध्यापक भी है जिनसे जानबूझ कर उस समय पैसे न होने का हवाला देकर  लगभग साढ़े 6 साल बाद...

पालमपुर: हिमाचल प्रदेश अनुबन्ध से नियमित अध्यापक संघर्ष मोर्चा ने अनुबंध से नियमित हुए अध्यापकों के साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज बुलंद की है। क्योंकि इनमें से कुछ ऐसे अध्यापक भी है जिनसे जानबूझ कर उस समय पैसे न होने का हवाला देकर  लगभग साढ़े 6 साल बाद पक्का किया। इन अध्यापकों को न तो वरिष्ठता लाभ दिया न ही वेतन वृद्धियां दी। जिस कारण असमानता के शिकार हुए यह अध्यापक सोचने को मजबूर हैं कि सिर्फ और सिर्फ कुछ अध्यापको को ही क्यों राजनीति का शिकार बनाया गया। यह राजनीति के शिकार अध्यापक हर मंच से सभी सरकारों से आग्रह कर चुके है कि सभी को एक पालिसी का हिस्सा मानते हुए उन्हें भी तीन साल की अनुबन्ध नीति का लाभ दिया जाए। परन्तु इनकी किसी ने भी आज तक कोई सुध नही ली। जिस कारण मानसिक व आर्थिक रूप से प्रताड़ित यह अध्यापक अब संघर्ष करने के लिए मजबूर है। यह बयान संघर्ष मंच सदस्य प्रवीण कुमार ने प्रैस विज्ञप्ति में दिया।

असमानता का एक जीता जागता उदाहरण
उन्होंने कहा कि उसके बाद इस पालिसी में लगातार संसोधन हुए जिसके लाभ बैक डेट से लागू न कर आगे से लागू किये गए जो कि समाज मे फैल रही असमानता का एक जीता जागता उदाहरण है। क्योंकि यह बताया जाता है कि जब भी किसी पालिसी में संसोधन होते है तो उसके लाभ आगे नियुक्त होने वालों को मिलते है। इस पर संघर्ष मंच सदस्य प्रवीण कुमार ने पूछा कि जब नई रोजगार अनुबन्ध नीति के आर एन्ड पी रूल्स नबम्बर 2009 में राजपत्रित हुए तो फिर इस समय से पहले वालों को अनुबन्ध पर कैसे रख दिया। जबकि यह नबम्बर 2009 के बाद वालो पर लागू होने चाहिए थे। विदित है कि पुराने आर एन्ड पी रुलज होने के वावजूद जिसमे नियुक्ति तिथि से ही नियमित रखने का प्रावधान था। परन्तु 2008 में कमीशन व बैचवाइज नियुक्तियां अनुबन्ध आधार  हुई।

अब यह अन्याय नही तो और क्या है 
अब जबकि अनुबन्ध पालिसी में तीन साल बाद नियमित करने का प्रावधान है तो इसे क्यों नही बैक डेट से लागू किया जाता। जबकि नबम्बर 2009 में राजपत्रित हुई अनुबंध पालसी को तो बैक डेट से लागू किया गया था। अब यह अन्याय नही तो और क्या है और अब अध्यापक संघर्ष मंच इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने को मजबूर है। क्योंंकि आर्थिक लाभ तो दूर ,परन्तु  वरििष्ठता लाभ भी नही दिए जिसके लिए किसी प्रकार के बजट की जरूरत नही थी। अध्यापक संंघर्ष मंच सदस्य अरुण कानूनगो, चरणजीत संधू, शैलेंद्र सूद,दिनेश पठानियां, वन्दना अवस्थी, अंजूबाला,कलपना देवी, सुनीता देवी, यशवीर सिह,संजीव मगोत्रा,मूनीष शर्मा,विनोद   कुमार, अजय अवस्थी व अन्य ने सरकार से न्याय की मांग की है।

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