हिमाचल की इस बेटी के जज्बे को सलाम

Edited By Updated: 24 Sep, 2015 11:21 AM

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रोशनी गर खुदा को हो मंजूर, चिराग जलते हैं आंधियों में। कुछ ऐसा ही जज्बा रखती है बैजनाथ के मझैरना की अनु।

पालमपुर: रोशनी गर खुदा को हो मंजूर, चिराग जलते हैं आंधियों में। कुछ ऐसा ही जज्बा रखती है बैजनाथ के मझैरना की अनु। दरअसल अनु अंधी है और उसका सपना आईएएस बनने का है तथा इस सपने को पूरा करने के लिए अनु दिन-रात पढ़ाई भी कर रही है। यही नहीं, उसका एक भाई है और वह भी जन्म से ही नेत्रहीन है। उसका हौसला भी अनु की भांति ही बुलंद है तथा वह आजकल चंडीगढ़ में शिक्षा ग्रहण कर रहा है। उसके सपने अनु की तरह बड़े तो नहीं लेकिन वह अपने आप को काबिल बनाना चाहता है।

 

जब उससे पूछा गया कि आप अनु की तरह आईएएस बनना चाहते हो तो वह भी सिर हिला कर हां कहता है। जन्म से ही दृष्टिहीन अनु चौधरी ने कुदरत की इस मार को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया और इसी का परिणाम है कि बैजनाथ के निकट मझैरणा गांव की यह बेटी इस समय पोस्ट ग्रैजुएशन कर रही है। अनु का जन्म मजदूरी करने वाले सुभाष और बीना के घर हुआ। जन्म से अंधे बच्चों के मां-बाप ने उनकी हर ख्वाहिश को पूरा करने में कमी नहीं रखी और नेत्रहीनता को आड़े न लाकर अनु ने भी हर कदम पर सफलता हासिल की।

 

10वीं की परीक्षा में 72 प्रतिशत अंक लेने के बाद अनु ने डीएवी कालेज देहरादून से स्नातक की डिग्री हासिल की और इस समय वह उत्तराखंड विवि के तहत एसजीजीआर संस्थान से इतिहास विषय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रही है। गरीबी में बच्चों का इलाज तो दूर परिवार को खाने के लाले पड़े थे, ऐसे में कुदरत के मारों को सिर्फ ऊपर वाले का ही सहारा था। फिर एक दिन मसीहा बन कर आए मझैरना के ही पूर्व सेना अधिकारी सरदूल चंद कटोच की इस होनहार बच्ची पर नजर पड़ी। बुलंद हौसले के धनी सरदूल चंद कटोच ने इस बच्ची का हौसला और परिवार की हालत देख उसकी सहायता करने की ठानी।

 

ये लोग बने सहायक
अनु की उपलब्ध्यिों को देख पूर्व मंत्री पंडित संत राम ने भी उसकी मदद की थी और अब पूर्व सेना अधिकारी सरदूल चंद कटोच उसकी शिक्षा का खर्च वहन कर रहे थे। अनु अपनी शिक्षा जारी रखने के साथ आईएएस की तैयारी में जुटी थी लेकिन 6 माह पहले सरदूल चंद कटोच के देहांत के बाद अब उसे अपनी पढ़ाई जारी रखना मुश्किल प्रतीत हो रहा है।

 

अब मददगार की तलाश
वहीं अनु अब केवल सरकार से नौकरी की आस लगाए है। उसका मानना है कि जो सपने उसने संजोए थे वे तभी पूरे हो सकते हैं जब कोई मददगार आगे आकर उसकी मदद करे। अनु का कहना है कि कुदरत भी उसके साथ खिलवाड़ कर रही है तथा जो व्यक्ति उसे आगे ले जाना चाहता था आज वह इस संसार में नहीं है।

 

पिता ने बेची जमीन-जेवर
अपने बच्चों की प्रतिभा के आगे मां-बाप का हौसला भी बुलंद हो गया। होनहार बेटी की शिक्षा जारी रहे इसके लिए गरीब पिता ने अपनी जमीन और अपनी पत्नी के जेवर तक बेच दिए लेकिन अब यह पिता लाचार है। उसका कहना है कि मेरी बेटी ने जो कर दिखाया है वह शायद आंखों वाले भी न कर पाएं। उसका कहना है कि वह अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए कुछ करना चाहता है लेकिन मजदूरी में केवल 2 वक्त की रोटी ही नसीब होती है। उसमें सपनों को कोई जगह नहीं होती।

 

नौकरी की आस
अनु कहती है कि सरकार की ओर से कोई नौकरी मिल जाए तो भविष्य सुरक्षित हो जाएगा।  अनु कहती है कि वह स्टैनोग्राफर का काम बखूबी कर सकती है तो अध्यापन का कार्य भी निभा सकती है।

 

स्वयं आप्रेट करती है मोबाइल व कम्प्यूटर
अंग्रेजी और हिंदी स्टैनोग्राफ ी व टाइपिंग में प्रोफैशनल डिप्लोमा हासिल करने के साथ अनु ने एनसीटीवी के तहत एक साल का कम्प्यूटर कोर्स किया है और मोबाइल व कम्प्यूटर को वह स्वयं आप्रेट करती है।

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