आखिर सरकारी, गैर-सरकारी स्कूलों के संचालकों से चाहती क्या है सरकार स्पष्ट हो : अभिषेक

Edited By prashant sharma, Updated: 26 May, 2020 04:52 PM

what the government wants from the operators of schools  abhishek

बीजेपी सरकार बनने के शुरुआती दौर में ही चरमराने लगे शिक्षा के ढांचे का अब लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह भट्ठा बैठ गया है। यह बात प्रदेश कांग्रेस सोशल मीडिया के चेयरमैन अभिषेक राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कही है।

हमीरपुर : बीजेपी सरकार बनने के शुरुआती दौर में ही चरमराने लगे शिक्षा के ढांचे का अब लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह भट्ठा बैठ गया है। यह बात प्रदेश कांग्रेस सोशल मीडिया के चेयरमैन अभिषेक राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कही है। उन्होंने कहा कि एजुकेशन एक्ट लागू करने की दलीलें देने वाली बीजेपी सरकार ने समूची शिक्षा प्रणाली को अस्त-व्यस्त करके रख दिया है। जो सरकार सत्ता में आने के बाद शिक्षा नीति बनाने के संवाद व बातें करती थी अब उसी सरकार के राज में सारी शिक्षा प्रणाली डगमगा कर रह गई है। कन्फयूज सरकार के कन्फयूज शिक्षा मंत्री आज कुछ कहते हैं तो कल कुछ कहते हैं? आज गैर-सरकारी स्कूलों की वकालत करते हैं, तो कल निजी स्कूलों को अपने कन्फयूज फरमान जारी कर असमंजस की स्थिति में धकेल देते हैं? आलम यह है कि सरकारी स्कूलों में जनता अपने बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहती है और गैर सरकारी स्कूलों को नित नए फरमान जारी करके खुद सरकार ने इस स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया है कि अब वह यह फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि इस सरकार के राज में स्कूलों को संचालित भी कर पाएंगे या नहीं कर पाएंगे। 

कभी सरकार चाहती है कि निजी स्कूलों को एनुअल फीस मिलना जरूरी है, तो कभी सरकार कहती है कि निजी स्कूल फीस नहीं ले सकते हैं। ऐसे में अब सरकार को ही स्पष्ट करना होगा कि सरकार निजी स्कूलों के संचालकों से आखिर चाहती क्या है? हिमाचल को देश के सबसे शिक्षित राज्यों में शुमार कराने वाली कांग्रेस जब अपने कार्यकाल में हर दूरदराज के क्षेत्रों में शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए स्कूल और कॉलेज खोलती थी, तो विपक्ष में बैठी बीजेपी इसका विरोध करते हुए सत्ता में आने पर शिक्षा नीति बनाने की वकालतें करते नहीं थकती थी, लेकिन अब जब बीजेपी सत्ता में बैठी है तो न इनसे कोई नीति बन पा रही है, न ही कोई रीति बन पा रही है। 

उन्होंने कहा कि शिक्षा का बुनियादी ढांचा सुदृढ़ होने की बजाय निरंतर उलझ कर रह गया है। जिस कारण से जहां सरकारी अध्यापक व अधिकारी पीड़ित हो रहे हैं, वहीं गैर-सरकारी संचालक भी लगातार प्रताड़ित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि सरकार इस बात को समझे कि हर फैसला केंद्र के इशारे पर नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि केंद्र की समस्याएं व समझ अलग हैं जबकि पहाड़ की अपनी समस्याएं व शिकायतें अलग हैं। जिनको समझ कर जमीनी हकीकत के मुताबिक फैसले लेने होंगे अन्यथा शिक्षा के सिरमौर पर पहुंचा हिमाचल, शिक्षा के क्षेत्र में ही पिछड़ सकता है।
 

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