दो फैसलों ने कर दी सरकार की किरकिरी, चंद घंटों में बदला निर्णय: अग्निहोत्री

Edited By kirti, Updated: 27 Mar, 2020 03:56 PM

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कोराना वायरस को लेकर एक ओर जहां प्रधानमंत्री लोगों से हाथ जोड़कर घरों में रहने की अपील कर रहे हैं, वहीं हिमाचल प्रदेश सरकार पुलिस और प्रशासन के प्रयासों को झटका दे रही हैै। कर्फ्यू के समय में सरकार ने दो फैसले लिए, जिससे सरकार की किरकिरी बन गई और चंद...

शिमला : कोराना वायरस को लेकर एक ओर जहां प्रधानमंत्री लोगों से हाथ जोड़कर घरों में रहने की अपील कर रहे हैं, वहीं हिमाचल प्रदेश सरकार पुलिस और प्रशासन के प्रयासों को झटका दे रही हैै। कर्फ्यू के समय में सरकार ने दो फैसले लिए, जिससे सरकार की किरकिरी बन गई और चंद ही घंटों में सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा है। यह बात विपक्ष नेता मुकेश अग्निहोत्री ने कही है। हालांकि उन्होंने यह बात मीडिया के सामने ने तो नहीं कहीं, परंतु उनकी फैसबुक पर एक पोस्ट इसी ओर इशारा कर रही है। 

उन्होंने कहा कि सरकार के फैसलों पर आम जनता को ही लगा कि सरकार लापरवाही से काम कर रही है। देश के प्रधानमंत्री ने “कहा जान है तो जहान है “ हाथ जोड़ कर अपील की घर पर रहें। मगर जयराम सरकार ने आधा दिन कर्फ्यू में ढील दे दी। साथ ही शराब को आवश्यक चीजों की सूची में डाल दिया। सवाल उठता है की सरकार के सलाहकार कौन हैं? कौन सरकार से ऐसे फैसले करवाता है। प्रदेश में मंदिर बंद, स्कूल बंद, दफ्तर बंद , मगर ठेके खुले रखने की अधिसूचना ने हाहाकार मचा दिया। नतीजन चंद घंटों में ही फैसला रद्द करना पड़ा। खैर शराब के फैसले तो लगातार अटपटे तरीके से आ रहे है। पहले शराब सस्ती बेचने की बात आई, फिर रात दो बजे तक बेचने की बात आई। अब कोरोना में दवा के साथ दारू आवश्यक घोषित करते हुए, सुबह सात बजे ठेके खोलने का तुगलकी एलान जारी हो गया। छलकाए जा ना जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए। यहां शराब को लेकर डीसी कुल्लू ब हमीरपुर की अधिसूचनाएं सलंगित हैं। 

गलत निर्णय जनता ने ही नकार दिए 

उधर कर्फ्यू की समय सीमा घटाने को तो जनता ने ही नाकार दिया, आखिर जीने-मरने का सवाल है। प्रशासन का भी इससे मनोबल गिरा। अगर लॉकडाउन से एक कदम आगे बढ़ के कर्फ्यू लगाया तो उस की मर्यादा भी रखी जाए। कर्फ्यू मजाक नही है , कौन सा कर्फ्यू ऐसा होता है जो सुबह सात से दोपहर एक बजे तक खुला रहता है। पुलिस एवं प्रशासन के प्रयासों को एक झटके में रौंद दिया। बहरहाल आज भी मसला उन लोगों का बना हुआ है जो प्रदेश के भीतर और बाहर नौकरियों को गए थे, मगर फंसे हुए है। कोई पुख्ता रणनीति नहीं बनी है। सरकारें होती ही मुश्किल में मदद के लिए है। 

हम राजनीति नहीं चाहते 

उत्तरप्रदेश की सरकार ने दिल्ली में दफ्तर बनाकर मदद की पेशकश की है। हमारे तो बद्दी-बरोटीवाला से भी घर नही पहुंच पा रहे। पड़ोसी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों से बात कर समस्या का हल निकालना चाहिए। हम राजनीति नहीं चाहते, मगर यह जरूर चाहते हैं कि फैसले विवेक से हों। याद रहे हम 4 मार्च को विधानसभा में कोरोना पर स्थगन प्रस्ताव लाए थे, सरकार ने चर्चा नहीं की, मगर 19 दिन बाद विधानसभा बंद करनी पड़ी। हम तो वेंटिलेटेर, मास्क, सेनिटाएजर के प्रबंधों की ही तो बात कर रहे थे। हमने कहा था कि तिब्तियों पर नजर रखना, पहली मौत वहीं हुई। खैर सरकार ने कर्फ्यू और शराब से जुड़े दोनो फैसलों पर यू टर्न मार दिया है। मगर आपसे आग्रह है घर पर रहें और सुरक्षित रहें।
 

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