Edited By Ekta, Updated: 16 May, 2019 11:20 AM
हिमाचल प्रदेश की गिनती भारत के सबसे शिक्षित राज्यों में होती है और 2011 की जनगणना के अनुसार इस पहाड़ी प्रदेश की जनसंख्या 68 लाख से ज्यादा रही। यहां साक्षरता दर 81.85 प्रतिशत थी जो अब इससे ऊपर है। हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में अब भी ऐसी प्रथाएं और...
कुल्लू (ब्यूरो): हिमाचल प्रदेश की गिनती भारत के सबसे शिक्षित राज्यों में होती है और 2011 की जनगणना के अनुसार इस पहाड़ी प्रदेश की जनसंख्या 68 लाख से ज्यादा रही। यहां साक्षरता दर 81.85 प्रतिशत थी जो अब इससे ऊपर है। हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में अब भी ऐसी प्रथाएं और परंपराएं हैं जो काफी चौंकाने वाली हैं। इन्हीं में से एक प्रथा देवताओं का डर दिखाकर या देवताओं के प्रति आस्था की दुहाई देते हुए कसम खिलाकर लोगों को किसी काम के लिए मजबूर करना है। सुनने में यह बात भले ही अजीब लगे, मगर हिमाचल प्रदेश के दूर-दराज के पिछड़े हुए पहाड़ी इलाकों में इस तरह की परंपरा अब भी मौजूद है। इसके संकेत कई बार सामने आते भी रहते हैं। इस प्रथा की बात इन दिनों चल रहे लोकसभा चुनाव के दौरान भी उभर कर सामने आई। अप्रैल महीने में कुल्लू के एक नेता पर घाटी के आराध्य देव रघुनाथ की कसम देकर प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांगने के आरोप लगे। हालांकि बाद में उन्होंने इस आरोप को गलत बताते हुए कहा था कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। लाहौल-स्पीति में भी माला फेरकर लोगों को वोट देने की कसम दिलाने की बात पिछले दिनों उछली।
क्या है यह प्रथा
हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में यह प्रथा अलग रूप में मौजूद है। शिमला और सिरमौर के मध्य क्षेत्रों में इस प्रथा के तहत कसम खिलाने के अलग प्रावधान हैं। शिमला से विजयेंद्र शर्मा बताते हैं कि चुनाव के दौरान इन देवी-देवताओं के नाम पर कसम खिलाकर कई लोगों को अपने पक्ष में मतदान के लिए बाध्य करते हैं। कुल्लू के ग्रामीण इलाकों में कसम खिलाने का तरीका अलग है। इसके तहत देवता के मंदिर में एक पवित्र पात्र का जल पिलाया जाता है। उस पात्र को झारी कहते हैं। मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए बावड़ियों से इसी पात्र में जल लाया जाता है। देवता के मंदिर में चावल के कुछ दाने खिलाकर भी कसम खिलाई जाती है। कुल्लू से शिक्षाविद् दयानंद सारस्वत कहते हैं कि पंचायत चुनाव में कसम खिलाए जाने की ज्यादा घटनाएं होती हैं।
ऐसे बढ़ता गया यह चलन
होटल व्यवसायी गिरिराज बिष्ट कहते हैं कि जिस तरह की परंपराएं शिमला और सिरमौर में हैं, वैसी ही मंडी और कुल्लू के अंदरूनी इलाकों में भी बताई जाती हैं। वे कमोबेश वैसी ही हैं, मगर उनका स्वरूप थोड़ा अलग है। ये वे पहाड़ी इलाके हैं, जो सदियों से कटे रहे और इनका बाहरी दुनिया से संपर्क बहुत कम रहा होगा। बिष्ट का कहना है कि उस दौर में समाज गांव तक ही सीमित थे और गांव के लोगों में अपने गांव के देवता और उनके पुजारियों का बड़ा महत्व था। हालांकि मौजूदा दौर में इनमें से बहुत से इलाके सड़कों से जुड़ गए हैं और सुविधाएं भी आई हैं लेकिन परंपराएं अधिक नहीं बदलीं। उन्होंने बताया कि आज भी लोग कोई भी काम करने से पहले, यात्रा आदि पर जाने से पहले देवता के गुर, पुजारी के माध्यम से अपने ग्राम देवता से इजाजत लेना जरूरी समझते हैं। पुराने समय में लोग आपसी विवाद आदि भी इसी प्रकार मंदिरों में ही सुलझाते थे।
शिक्षित प्रदेश में ऐसे हालात क्यों: शिक्षाविद्
हिमाचल प्रदेश की कला, संस्कृति व देवनीति की गहरी समझ रखने वाले शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त चुनी लाल आचार्य कहते हैं कि देव नीति व देव संस्कृति का यहां अहम स्थान है। उन्होंने कहा कि बचपन में हम भी कई बार देखते थे कि पंचायत चुनाव में कोई प्रत्याशी किसी को मंदिर में ले जाकर या उसी के घर में देवता के सामने पवित्र जल पिलाता था और उसी के पक्ष में मतदान का वचन लेता था। आचार्य कहते हैं कि अचंभा तब होता है जब आज भी इस तरह कसमें खिलाए जाने की बातें सामने आती हैं। यह लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।
देव समाज भी मानता है कि यह गलत है
देव कारकूनों में पंचायत समिति सदस्य ओम प्रकाश, उपप्रधान नंद लाल, चौंग पंचायत के उपप्रधान दुनी चंद, पुरुषोत्तम शर्मा, राकेश शर्मा, देवलू जगदीश बिष्ट सहित अन्य का कहना है कि लोग अपने ग्राम या कुल देवताओं में गहरी आस्था रखते हैं। देवता आज भी अपने गुर, पुजारी के माध्यम से उनकी बातें सुनते हैं और भविष्यवाणी तक करते हैं। बहुत से लोगों के लिए इन देवताओं की अहमियत परिवार के मुखिया की तरह है और जिसकी इजाजत के बगैर वे कोई काम नहीं करते। देवी-देवताओं के नाम पर किसी को डराना गलत है।
आचार संहिता का उल्लंघन है यह: चुनाव अधिकारी
अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी दलीप नेगी ने बताया कि मतदाताओं को धार्मिक बंधनों में बांधकर वोट मांगने की एक शिकायत लाहौल-स्पीति जिला से आई थी। जांच में आरोप निराधार पाए गए। उन्होंने बताया कि प्रदेश के अन्य इलाकों से आयोग को इस तरह की कोई ओर शिकायत नहीं मिली है। उन्होंने बताया कि लोक प्रतिनिधत्व एक्ट 1951 की धारा 123(3 क) के तहत लूण-लौटा, स्थानीय देवी-देवता के नाम पर कस्मेें खिलाकर वोट मांगना आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। अतिरिक्त मुख्य चुनाव अधिकारी ने बताया कि एक्ट में अलग-अलग नेचर की शिकायत के हिसाब से कार्रवाई का प्रावधान है। उधर, कृषि मंत्री राम लाल मारकंडा को चुनाव आयोग ने क्लीन चिट दे है। माला फेर कर वोट मांगने के रवि ठाकुर के आरोपोंको जिलाधीश लाहौल-स्पीति की रिपोर्ट में गलत पाया गया है।
ऊपरी क्षेत्रों में नमक और पानी का इस्तेमाल
हिमाचल के ऊपरी इलाकों में देवता के समक्ष कसम खिलाते समय पानी से भरे लोटे और नमक का इस्तेमाल होता है, जिसे लूण-लोटा भी कहा जाता है। कसम खिलाने वालों से कहता है कि जिस प्रकार पानी में घुलकर नमक का नामोनिशान मिट गया, उसी प्रकार कसम तोड़ने पर आपके वंश का भी नामोनिशान मिट जाएगा। किसने यह कसम खाई और किसने खिलाई, इसको लेकर आम चर्चा तो होती है लेकिन किसी तरह की शिकायत नहीं होती।