प्रजनन के लिए हर साल स्पीति में दस्तक दे रहे हजारों परिंदे

Edited By kirti, Updated: 12 Aug, 2018 02:33 PM

thousands of people knocking in spiti every year for reproduction

प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों से अचानक गायब हुई गोरैया स्पीति के ठंडे पठारों में मिली है। इंसानों के आसपास उनके घरों में रहने वाली नन्ही गोरैया का कुनबा बढऩे से विलुप्त प्राय: इन परिंदों की संख्या हजारों में देखी गई है। देश के आखिरी छोर पर स्थित...

उदयपुर : प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों से अचानक गायब हुई गोरैया स्पीति के ठंडे पठारों में मिली है। इंसानों के आसपास उनके घरों में रहने वाली नन्ही गोरैया का कुनबा बढऩे से विलुप्त प्राय: इन परिंदों की संख्या हजारों में देखी गई है। देश के आखिरी छोर पर स्थित स्पीति में ये परिंदे कई वर्षों से शरणार्थी बनकर दस्तक दे रहे हैं। स्पीति में इन्होंने स्थायी ठिकाने नहीं बनाए हैं।

स्थानीय लोग बताते हैं कि गर्मियों का मौसम आरंभ होते ही ये नन्हे परिंदे कई वर्षों से चीन अधिकृत तिब्बत से आ रहे हैं और प्रजनन के बाद सर्दियों की बर्फबारी से पहले ही यहां से पलायन भी कर रहे हैं। संभावना जताई गई है कि हिमाचल के अनेक जिलों को अलविदा कहने के बाद ये परिंदे शायद तिब्बत चले गए होंगे लेकिन इस देश से जुड़ी इनकी संवेदनाएं प्रजनन के लिए हर बार उन्हें स्पीति की ओर आकॢषत कर रही हैं। प्रदेश भर में सावन के इस महीने में गोरैया को अपने रंगों से रंग-बिरंगी बनाने का उल्लास भी अब खत्म हो गया है क्योंकि प्रदेश के अधिकांश जिलों में न तो गोरैया बची है और न ही उल्लास का वह जुनून कहीं देखा जा रहा है। काजा में दावा लोटे, दोरजे तेंजिन व लोबजंग फुंचोग ने बताया कि तिब्बत से स्पीति में आने और यहां से चले जाने का इनका क्रम 20-22 साल पहले ही शुरू हुआ था। ठंडे पठार में इससे पहले तक गोरैया का कोई अस्तित्व नहीं था। कई सालों से इनकी संख्या निरंतर बढ़ रही है। पौ फटते ही शुरू होने वाली इनकी कर्णप्रिय चहचाहट से स्पीति का प्रत्येक घर गुलजार है। स्पीति में भारत तिब्बत सीमा पर इन्सानों द्वारा खींची गई रेखाएं भी इनके लिए कोई बाधा पैदा नहीं कर सकी हैं।

कंकरीट के जंगलों ने छीने आशियाने
बताया गया है कि प्रदेश में कंकरीट के जंगलों ने इन परिंदों के आशियाने छीने हैं। विकास की आधुनिक दौड़ में जब इनके रहने की जगह नहीं बची तो इन परिंदों ने हिमालयी क्षेत्रों का रुख किया है। प्रदेश भर में तेजी से विलुप्त हो चुकी गोरैया को देश के आखिरी छोर पर पनाह मिलने के बाद घरों में रहने वाले इस परिंदे का अस्तित्व सुरक्षित बच गया है। राज्य सरकार द्वारा गोरैया के संरक्षण के लिए भले ही कई योजनाएं शुरू की जा रही हैं लेकिन शीतमरुस्थल स्पीति में विशुद्ध मिट्टी के पारंपरिक घर अब भी इनके शरणस्थल बने हैं। 
 

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