हजारों के हकों की जमीन पर ‘फरेब’ का बुल्डोजर

Edited By Punjab Kesari, Updated: 24 Jan, 2018 10:25 AM

thousand of entitlement on the land fareb of bulldozer

आंखों के सामने संशोधित केंद्रीय भू-अधिग्रहण कानून की विस्तृत व्याख्या में दर्ज अधिकारों के संरक्षण के प्रावधानों को नजरअंदाज करके पिछली सरकार ने प्रदेश के हजारों किसानों-बागवानों से जमीन अधिग्रहण के बदले में मिलने वाले मुआवजे, रोजगार और पुनर्वास को...

बिलासपुर: आंखों के सामने संशोधित केंद्रीय भू-अधिग्रहण कानून की विस्तृत व्याख्या में दर्ज अधिकारों के संरक्षण के प्रावधानों को नजरअंदाज करके पिछली सरकार ने प्रदेश के हजारों किसानों-बागवानों से जमीन अधिग्रहण के बदले में मिलने वाले मुआवजे, रोजगार और पुनर्वास को लेकर सीधे-सीधे नाइंसाफी की है। वह भी तब जब किसानों को उनकी पुरखों से चली आ रही जमीन के बदले में केंद्र सरकार ने बाकायदा मुआवजे की राशि देने का प्रावधान कर दिया हो और इसी पैसे में से राज्य को भी प्रशासनिक खर्चों के नाम पर मिलने वाले पैसे का हिस्सा भी तय कर दिया हो। तात्कालिक राज्य सरकार ने न केवल भू-अधिग्रहण के केंद्रीय कानून को नजरअंदाज किया बल्कि देश के उच्चतम न्यायालय से लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट के यहां से दिए गए इस संदर्भ के प्रावधानों पर अमल करने के बजाय इन्हें दरकिनार करके रखा। 


राज्य सरकार की ओर से इस कार्यक्रम को लागू करने के लिए जारी की गई अधिसूचना के असल खोटों को समीक्षा के दायरे में लाने के बजाय कुल्लू, मंडी और कुछ हद तक बिलासपुर जिलों के तात्कालिक प्रशासनिक और राजस्व अफसरों ने इस मामले में तय नीति को निर्धारित नहीं किया और न ही इस पर अमल किया। यही वजह रही कि फोरलेन जैसे बहु उपयोगी मार्गों से प्रदेश की तरक्की और खुशहाली के लिए अपनी जमीन-जायदाद के ‘बलिदान’ के बदले में हजारों किसानों को मुआवजे, पुनर्वास और रोजगार के वाजिब हक नहीं मिल पाए हैं। फोरलेन विस्थापितों का मंडी व कुल्लू जिलों में हो रहे संघर्ष का नेतृत्व कर रहे ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर का कहना है कि उन्होंने इस मामले को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के साथ भी उठाया है। उन्होंने बताया कि इस मामले में राज्य सरकार को मुआवजे व पुनर्वास तय करने की तारीख एक अप्रैल, 2015 ही करनी होगी, तभी कम मुआवजे व पुनर्वास का शिकार हुए विस्थापितों को एरियर के रूप में उन्हें बकाया पैसा मिल सकता है अन्यथा नहीं।


सरकार फैक्टर-टू लागू करे: कांग्रेस
जिला कांग्रेस कमेटी मंडी के प्रधान दीपक शर्मा ने कहा कि कांग्रेस ने इस मामले कोअपने चुनावी घोषणा पत्र में भी डाला था और प्रभावितों व विस्थापितों को फैक्टर-टू के तहत ही केंद्रीय कानून को अपनाते हुए मुआवजे का प्रावधान करने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को इस मामले में असलियत की जानकारी काफी देर बाद लगी थी और इस पर चुनावों से पहले ही फैक्टर-टू का सरकार ने ऐलान करना था लेकिन तब तक आचार संहिता लागू हो गई और यह मामला रह गया। शर्मा ने कहा कि कुल्लू व मंडी जिलों में इस मसले पर कांग्रेस की नजर है और अगर राज्य सरकार ने इसे लागू नहीं किया तो कांग्रेस आने वाले दिनों में आंदोलन का रास्ता अख्तियार कर सकती है।


उच्चतम न्यायालय ने यह दी है व्यवस्था
केंद्रीय भू-अधिग्रहण कानून के तहत ही फोरलेन के विस्थापितों व प्रभावितों को मुआवजा दिए जाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी है कि एक जनवरी, 2015 को इस अधिनियम के फोरलेन नैशनल हाईवे के संदर्भ में लागू हो जाने पर यह मुआवजे व पुनर्वास में उन लोगों पर भी लागू होगा, जिन्हें इस तारीख तक न तो मुआवजा दिया गया है और न ही इन्होंने नैशनल हाईवे अथॉरिटी को कब्जा दिया हुआ है। लेकिन पिछली सरकार ने इस व्यवस्था को भी लागू नहीं किया है जिससे हजारों विस्थापित व प्रभावित लाभान्वित होने से रह गए।


अब नई सरकार से उम्मीद
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सामने हाल  ही में इन्होंने अपना पक्ष रखते हुए जल्द इस पर कदम उठाने और वायदा निभाने के लिए हल्का दवाब भी बना दिया है। अब इस मामले में न्याय के लिए निर्णायक गेंद मौजूदा भाजपा सरकार के पाले में पड़ी है। लोगों को मुआवजा नहीं मिलने के बावजूद मौके के हालात बता रहे हैं कि पिछली सरकार में हजारों लोगों के अधिकारों की आधी-अधूरी बहाली कर अब तक तात्कालिक सरकार की कथित शह पर अरसे से जमीनों पर  बेखौफ बुल्डोजर चल रहे हैं।


इन लाभों से भी सरकार ने रखा वंचित
नए कानून के दायरे में पुनर्वास और रोजगार के मामले में विस्थापितों और प्रभावितों को तो मुआवजा तय ही था लेकिन अगर किसी जमीन पर किसी के घर या भवन में कोई कराए पर रहता होता या कोई ऐसे भवनों में किराए पर कोई धंधा आदि कर रहा होता तो उसे भी प्रशासन चिह्नित करता और उसे भी कम से कम 5 लाख रुपए के मुआवजे की हक बहाली मिल गई होती। एक्ट के तहत विभिन्न सामाजिक वर्गों के लिए मुआवजे का अलग-अलग प्रावधान के साथ साथ कुछ अतिरिक्त कुल 11 लाभों को भी देना सुनिश्चित किया गया था। इनमें प्रभावित या विस्थापित अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए अलग से लाभ की व्यवस्था थी, जिसे तात्कालिक प्रशासन ने पूरा नहीं किया। लेकिन इस प्रक्रिया को पूरा किए बगैर ही प्रशासन ने कंपनियों को जमीनों पर खुदाई करने और बुल्डोजर चलाने की अनुमति दे दी।


ऐसे होना था मुआवजे का निर्धारण
मंडी से कुल्लू जिले तक हो रहे लोगों के अधिकारों के हनन पर पिछले कुछ वर्षों से आवाज बुलंद कर रहे रिटायर्ड ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर बताते हैं कि असल में 2013 के केंद्रीय कानून को नैशनल हाईवे में विस्थापितों प्रभावितों को मुआवजा,पुनर्वास और रोजगार देने के संदर्भ में 1 जनवरी , 2015 से लागू कर दिया गया। इससे पहले जो भी अधिग्रहण हुआ, उसमें मुआवजे के अलग प्रावधान रहे जिनके तहत दावा किया गया कि लोगों को मुआवजा दिया गया लेकिन आज भी लोग अपने साथ इंसाफ नहीं होने की बात कह रहे हैं क्योंकि सरकार और प्रशासन ने 1 जनवरी , 2015 से पहले के कानून के तहत भी कई प्रावधानों को नजरअंदाज कर दिया। ब्रिगेडियर खुशहाल बताते हैं कि वर्ष 2015 में जब केंद्र ने अधिसूचना जारी कर दी किविस्थापितों और प्रभावितों को नए कानून के तहत मुआवजा मिलेगा तो इसके बाद सरकार ने लोगों के अधिकारों पर अपने हिसाब से कैंची चलानी शुरू कर दी। 1 अप्रैल, 2015 को राज्य सरकार ने अधिसूचना इस संबंध में जारी कर दी कि जहां भी अधिग्रहण होगा, वहां सिर्फ  फैक्टर एक के तहत ही मुआवजा मिलेगा। यानी फैक्टर एक का मतलब है कि संबंधित क्षेत्र में जमीन की मार्कीट वैल्यू का दोगुना जबकि एक्ट में यह प्रावधान है कि गांव में फैक्टर 2, यानी मार्कीट रेट का 4 गुना दिया जाए और शहरों में फैक्टर एक के तहत दोगुना। 


यहां की गलती
प्रशासन और राजस्व विभाग के अधिकारियों ने राज्य सरकार की अधिसूचना के आगे नतमस्तक होते हुए बगैर अधिनियम में दर्ज कानून को ध्यान में रखते हुए अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी और मंडी और बिलासपुर जिले के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर किसानों-बागवानों को फैक्टर एक के तहत ही मुआवजे की राशि तय कर दी। सरकार और इसके अधिकारियों ने लोगों को सॢक ट रेट के हवाले से ही मुआवजा दे दिया।जबकि असल में अफसरों को यह कार्रवाई अधिग्रहण के दायरे में आ रही जमीन और दूसरी सम्पत्ति की मौके पर जाकर वहां के बाजार भाव पता करने के बाद ही दूसरे पक्ष की सुनवाई के बाद ही दाम तय करते हुए ही करनी थी। नए एक्ट की धारा 26 के तहत मार्कीट रेट पर यह मुआवजा और पुनर्वास तय होना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सूत्रों का कहना है कि अधिकारयों ने इंडियन स्टैंप एक्ट के तहत जमीन के रेट तय करने को लेकर दिए गए फार्मूले को भी इग्नोर किया और मंडी-कुल्लू और बिलासपुर के हिस्से में भूमि अधिग्रहण के मामलों में मर्जी से दाम तय करके लोगों को मिलने वाले असल मुआवजे से वंचित कर दिया गया। 

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