ताकत से नहीं सिर्फ एक उंगली से हिलती है ये विशाल चट्‌टान, देखें हैरान करने वाला वीडियो (Video)

Edited By Ekta, Updated: 09 Nov, 2018 02:17 PM

देवभूमि के लोगों की आस्था को देखकर लगता है कि यहां का देव समाज इन्हीं के बल पर टिका हुआ है। यहां के लोग जल, जंगल, जमीन के अलावा फूल-पत्तियों, पत्थरों, पशु और पक्षियों की भी पूजा करते हैं, जिनसे उनकी आस्थाएं और मान्यताएं जुड़ी हैं। आज हम आपको ऐसी ही...

मंडी (नीरज):  देवभूमि के लोगों की आस्थाओं को देखकर लगता है कि यहां का देव समाज इन्हीं के बल पर टिका हुआ है। यहां के लोग जल, जंगल, जमीन के अलावा फूल-पत्तियों, पत्थरों, पशु और पक्षियों की भी पूजा करते हैं, जिनसे उनकी आस्थाएं और मान्यताएं जुड़ी हैं। आज हम आपको ऐसी ही आस्था के साथ जुड़ी एक विशालकाय चट्टान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके साथ भी कई प्रकार की मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। मंडी जिला मुख्यालय से 82 किलोमीटर दूर सराज घाटी के खूबसूरत स्थल जंजैहली के पास स्थित पांडव शिला लोक आस्थाओं और मान्यताओं का जीता-जागता प्रतीक है। मंडी-जंजैहली मार्ग पर जंजैहली से तीन किलोमीटर पहले बाखली खड्ड के किनारे स्थित इस विशाल चट्टान को ’पांडव शिला’ कहते हैं। 
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ऐसी मान्यता है कि यदि कोई सच्चे मन से इस शिला को एक हाथ से हिलाए तो यह हिल जाती है। यदि जोर-आजमाइश करके भले ही दोनों हाथों से पूरा जोर लगा दे, शिला टस से मस नहीं होती। इस शिला को हाथ की एक उंगली से हिलते हुए देख कर मन रोमांचित हो जाता है और जो लोग इसे श्रद्धा से हिलाते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। जंजैहली घाटी के प्रसिद्ध शक्तिपीठ शिकारी देवी जाने वाले श्रद्धालु यहां जरूर रुकते हैं। अब ऐसी धारणा बन चुकी है कि शिकारी देवी के दर्शनों का लाभ बुढ़ाकेदार और पांडव शिला के दर्शनों के बिना अधूरा रह जाता है। स्थानीय लोगों की इस शिला के प्रति अटूट आस्था है और लोग यहां अक्सर अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए पहुंचते हैं। वहीं, शिला पर दूर से कंकड़ फेंकने की प्रथा भी है। 
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मान्यता है कि यदि फेंका गया कंकड़ शिला पर जाकर टिक जाए तो मनोकामना पूरी हो जाती है। अधिकांश नि:संतान महिलाएं संतान प्राप्ति की इच्छा से शिला पर कंकड़ फेंकती हैं और यदि कंकड़ उपर जाकर टिक जाए तो उन्हें संतान का वरदान मिल जाता है। क्षेत्र में इस तरह के जीवंत उदाहरणों के चलते लोगों की आस्था ज्यादा मजबूत हुई है। इसके अलावा, दूसरी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए भी इलाके के लोग व यहां से गुजरने वाले पर्यटक, घुमक्कड़ और यात्री अपनी किस्मत आजमाने के लिए शिला पर कंकड़ फेंकते हैं। पांडव शिला के बारे में एक रोचक दंत कथा प्रचलित है। दंतकथा के अनुसार जब पांडवों व कौरवों के बीच युद्ध हुआ तो बहुत से कौरव मारे गए। 
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पांडवों को कहा गया कि इन हत्याओं के पाप को धोने के लिए उन्हें वृंदावन जाकर नंदी बैल के दर्शन करने होंगे। पापों से मुक्ति के लिए पांडव वृंदावन के लिए निकल गए और जब वहां पहुंचे तो पता चला कि नंदी बैल तो यहां से चला गया है। ऐसे में, पांडव नंदी बैल का पीछा करते करते हिमाचल प्रदेश के कुंतभयो, रिवालसर, कमरूनाग होते हुए इस क्षेत्र में पहुंच गए। इसी प्रवास के दौरान पांडव यहां पर रुके और जब वह खाना खा रहे थे तो ऊपर पहाड़ी पर बसे एक गांव से एक लाश बाखली खड्ड के किनारे जलाने के लिए लाई गई। पांडवों ने लाश को देखकर खाना छोड़ दिया। उस समय महाबली भीम के हाथों में सत्तू का पेड़ा था। अचानक लाश को देखकर खाना छोड़ने पर वह पेड़ा भी भीम से छूट गया जो बाद में पांडव शिला कहलाया। समय बीतने के साथ साथ यह शिला लोगों की आस्थाओं के साथ जुड़ गई।
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