Edited By Ekta, Updated: 04 Jun, 2019 10:24 AM
लोकसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजों को लेकर फजीहत के बाद अब कांग्रेस में बड़े फेरबदल होने के संकेत दिए जा रहे हैं लेकिन जिस तरह के हालातों से कांग्रेस जूझ रही है, उसमें बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक कर पुनर्गठन की जरूरत महसूस होने लगी है। ऐसा अब...
हमीरपुर (पुनीत शर्मा): लोकसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजों को लेकर फजीहत के बाद अब कांग्रेस में बड़े फेरबदल होने के संकेत दिए जा रहे हैं लेकिन जिस तरह के हालातों से कांग्रेस जूझ रही है, उसमें बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक कर पुनर्गठन की जरूरत महसूस होने लगी है। ऐसा अब पक्ष व विपक्ष के नेता भी कहने लगे हैं। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष होना बेहद जरूरी समझा गया है लेकिन प्रदेश की कांग्रेस के हालात अलग हैं। यहां अपनी डफली अपना राग अलापने वालों की जमात बढ़ गई है। कार्यकर्ता रहे नहीं और नेता ही नेता दिख रहे हैं। चुनाव के समय फसली बटेरों की तरह सामने आने वाले ऐसे बड़े नेता भी ज्यादा हो गए हैं जोकि चुनाव के दौरान ही महज खानापूर्ति के लिए दिखते हैं। ऐसे बड़े नेताओं की निष्क्रियता पर कड़ा एक्शन लेने की जरूरत भी महसूस हो रही है जोकि सरकार पर हमला करने से बचते रहे हैं और सरकार पर आक्रामकता ही नहीं दिखा पा रहे हैं।
ऐसे नेताओं के टिकट बदलकर अब वहां पर तेजधार वाले दूसरी पंक्ति के नेताओं की जमात को उभारने का विकल्प भी पार्टी के भीतर सोचा जाने लगा है। बता दें कि लोकसभा चुनाव के दौरान और उससे पहले भी स्वयं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप राठौर, नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री व विधायक राजेंद्र राणा सरीखे नेता ही जनहित से लेकर अन्य मुद्दों को लेकर आक्रामक मुद्रा में रहे लेकिन मंडी, कांगड़ा, सिरमौर व चम्बा आदि जिलों के बड़े नेताओं (1-2 को छोड़कर) ने खामोशी अपनाए रखी। सूत्र बताते हैं कि यही खामोशी अब चुनाव के दौरान आए पर्यवेक्षकों को भी अखरी है जिन्होंने पूरी रिपोर्ट बनाकर हाईकमान को भेजी है।
वाजपेयी अकेले ही विपक्ष से बनते थे लोगों की आवाज
एक बेहतर विपक्ष के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा याद किए जाएंगे जोकि अकेले ही विपक्ष में लोगों की आवाज हुआ करते थे। उनकी बातों को सत्ता पक्ष के नेता भी पूरी तवज्जो देते थे।
इन कारणों से भी खिसक रहा जनाधार
संगठन में पदाधिकारियों की बड़ी फौज, नतीजा शून्य
प्रदेश कांग्रेस में दर्जन भर प्रवक्ताओं की फौज के अलावा अन्य पदों पर भी दर्जनों पदाधिकारियों को तो बिठाया गया है लेकिन इनमें से चुनिंदा चेहरे ही विपक्ष की भूमिका में नजर आते हैं। शेष ऐसे चेहरे हैं जो फील्ड में कहीं नहीं दिखते। यही हाल जिला स्तर पर संगठनों का हो गया है, जहां वर्षों से किसी एक गुट विशेष के नेताओं का दबदबा तो बरकरार है लेकिन धरातल पर कांग्रेस साफ हो गई है। ऐसे नेताओं व पदाधिकारियों की निष्क्रियता के चलते गांव-गांव में पार्टी का झंडा उठाने वाले कार्यकर्ता गायब हो गए हैं।
टिकट आबंटन में दखलंदाजी, फिर वनवास
लोकसभा चुनाव में कहीं न कहीं ऐसे निष्क्रिय नेताओं की दखलंदाजी भी भारी पड़ी है जोकि टिकट आबंटन में तो सक्रिय रहे लेकिन उसके बाद चुनावी परिदृश्य से ही वनवास में चले गए। इसका खामियाजा उन नेताओं को भुगतना पड़ा जोकि पिछले काफी समय से फील्ड में लोगों से मिलकर अपनी व पार्टी की सियासी जमीन पक्की करते रहे लेकिन टिकट ऐसे लोगों को मिले जोकि चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते थे या फिर चुनाव के लिए तैयार ही नहीं थे।
नागवार गुजर रहा हवाई नेताओंं को तरजीह देना
प्रदेश में अब अपने प्रादेशिक बड़े नेताओं को दरकिनार कर पंच तक का चुनाव न लड़ने वाले हवाई नेताओं को तरजीह दिया जाना भी अखरने लगा है जोकि चुनाव के समय हिमाचल की सियासत में डेरा डालकर फसल काटने तो आ जाते हैं तथा फसल बीजने वालों को हाशिये पर धकेल दिया जाता है।