हिमाचल प्राकृतिक कृषि राज्य बनने की ओर अग्रसर : राज्यपाल

Edited By Kuldeep, Updated: 02 Jun, 2022 10:08 PM

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राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने कहा कि हिमाचल तेजी से प्राकृतिक कृषि राज्य बनने की ओर अग्रसर है। इसलिए देवभूमि को देश के अन्य राज्यों के लिए ‘प्रेरणा भूमि’ होना चाहिए।

सोलन (ब्यूरो): राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने कहा कि हिमाचल तेजी से प्राकृतिक कृषि राज्य बनने की ओर अग्रसर है। इसलिए देवभूमि को देश के अन्य राज्यों के लिए ‘प्रेरणा भूमि’ होना चाहिए। इसे देशभर के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों के लिए प्राकृतिक कृषि के मामले में प्रमुख केंद्र की भूमिका निभानी चाहिए। राज्यपाल वीरवार को डा. यशवंत सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी में विश्वविद्यालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली के तत्वावधान में आयोजित 2 दिवसीय 12वें द्विवार्षिक राष्ट्रीय कृषि विज्ञान केंद्र सम्मेलन के समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था हमेशा से कृषि पर आधारित रही है, लेकिन दुर्भाग्यवश इस अर्थव्यवस्था की दिशा विदेशी मॉडलों पर बनने लगी। विषय की सोच हममें थी वह बदलने लगी और इस सोच को बदलने की जिम्मेदारी जिन संस्थानों पर थी, उनकी सोच भी पश्चिम देशों से ही प्रभावित रही। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि पिछले कुछ वर्षों से इस सोच मेें परिवर्तन आने लगा है और यही सोच अब कृषि क्षेत्र में भी बदलाव ला रही है।

उन्होंने कहा कि जब से हमने पश्चिमी देशों की सोच को अपनाया है कृषि क्षेत्र में जमीन की उत्पादकता तेजी से घटी है। इसका समाधान हमारी परम्परागत कृषि में है। हम कभी भी प्रकृति के विरुद्ध नहीं रहे हैं। भारतीय जीवन पद्धति प्रकृति से जुड़ी थी और प्रकृति कृषि से जुड़ी थी। हिमाचल में जब से इस कृषि पद्धति को अपनाया है इसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। इसका विस्तार तेजी से हो रहा है। किसानों ने उन्हें अपने अनुभव बताए हैं। इस पद्धति को अपनाने से 27 प्रतिशत लागत कम आती है और लगभग 56 प्रतिशत उत्पादन ज्यादा होता है। इस कृषि पद्धति को वैज्ञानिक सफल बना सकते हैं। इससे प्रधानमंत्री की किसानों की आय दोगुनी करने का संकल्प भी पूरा होगा।

डा. यशवंत सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के कुलपति डा. राजेश्वर सिंह चंदेल ने प्राकृतिक कृषि से संबंधित किए जा रहे विभिन्न प्रयासों की जानकारी दी। आई.सी.ए.आर. के उप महानिदेशक ‘विस्तार शिक्षा’ प्रो. ए.के. सिंह ने राज्यपाल तथा अन्य गण्यमान्य व्यक्तियों का स्वागत किया। आई.सी.ए.आर. के ए.डी.जी. डा. वी.पी. चाहल ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया। विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, आई.सी.आर. के पदाधिकारी, डी.सी. सोलन कृतिका कुल्हारी, एस.पी. वीरेंद्र शर्मा, कृषि विश्वविद्यालयों के विस्तार शिक्षा निदेशक, कृषि विज्ञान केंद्रों के प्रमुख वैज्ञानिक तथा अन्य लोग उपस्थित थे।

तकनीकी विस्तार में कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका अहम : रूपाला
कार्यक्रम को वर्चुअली संबोधित करते हुए केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री पुरुषोतम रूपाला ने कहा कि कृषि क्षेत्र में तकनीकी विस्तार में कृषि विज्ञान केंद्रों की भूमिका अहम है। नैनो टैक्नोलॉजी को किसानों तक पहुंचाने में यह केंद्र सहायक सिद्ध हो सकते हैं। नैनो यूरिया को इन केंद्रों के माध्यम से प्रचारित किया जा सकता है ताकि विदेशों से इसे आयात करने की आवश्यकता न पड़े। ड्रोन तकनीक को भी हम कृषि विस्तार केंद्र के माध्यम से प्रदॢशत कर सकते हैं।

किसानों को रासायनिक खेती से बाहर निकालना है : कैलाश
केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि कृषि को बढ़ावा देने और किसानों की आय को दोगुना करने के लिए सरकार प्रभावी पग उठा रही है। किसान प्राकृतिक कृषि को अपनाने के लिए उत्साहित हैं। यह कृषि पद्धति किसानी छोड़ रहे युवाओं को भी वापस लाने में सहायक सिद्ध हो रही है। वैज्ञानिकों द्वारा ही यह कृषि पद्धति भी सफल होगी। हमें किसानों को रासायनिक खेती से बाहर निकालना है और प्राकृतिक कृषि को देश में प्रचारित करना है।

‘टिकाऊ खेती’ की जानी चाहिए : महापात्रा
आई.सी.आर. के महानिदेशक डा. त्रिलोचन महापात्रा ने कहा कि आई.सी.आर. किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अग्रसर है। कृषि क्षेत्र में आज आयात कम हुआ है और उत्पादकता बढ़ी है।  किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र कार्य कर रहे हैं। तकनीकी के बेहतर उपयोग से हम इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं। भविष्य की सुरक्षा के लिए ‘टिकाऊ खेती’ की जानी चाहिए।

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