जलवायु परिवर्तन का असर, दो महीने पहले ही खिल गया बुरांश

Edited By Kuldeep, Updated: 08 Feb, 2021 11:52 PM

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हिमाचल की शान और पहचान बुरांश अभी से खिलना शुरू हो गया है। आम तौर पर राज्य फूल का दर्जा प्राप्त बुरांश गर्मियों की आहट के साथ चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में खिलता था, लेकिन इस साल माघ महीने में ही यानी दो महीने पहले इसके खिलने का क्रम शुरू हो गया है।

शिमला (देवेंद्र हेटा): हिमाचल की शान और पहचान बुरांश अभी से खिलना शुरू हो गया है। आम तौर पर राज्य फूल का दर्जा प्राप्त बुरांश गर्मियों की आहट के साथ चैत्र माह (मार्च-अप्रैल) में खिलता था, लेकिन इस साल माघ महीने में ही यानी दो महीने पहले इसके खिलने का क्रम शुरू हो गया है। पर्यावरण विशेषज्ञ की मानेंतो ऐसा जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है। वनस्पतियों पर इस तरह से जलवायु परिवर्तन का असर अच्छा संकेत नहीं है।

आम तौर पर बुरांश समुद्र तल से 4800 फुट से 8000 फुट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में देखा जा सकता है। 6500 फुट तक की ऊंचाई वाले सभी क्षेत्रों में यह खिल चुका है, जो सैलानियों सहित स्थानीय लोगों को बरबस अपनी ओर आकॢषत कर रहा है। प्रदेश में इस साल खासकर जनवरी में बहुत कम बारिश-बर्फबारी हुई है और सॢदयों में धूप ने धरती को खूब गर्म रखा है। इससे बुरांश सहित काफल जैसे दूसरे जंगली फलोंं की फ्लावरिंग का चक्र प्रभावित हुआ है।

राज्य फूल का दर्जा प्राप्त बुरांश का धार्मिक महत्व भी बताया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों के लोग बैसाख की साजी के दिन बुरांश के फूलों से मालाएं बनाकर मंदिरों और अपने घरों में लगाते हैं। प्रदेश में मुख्यत: लाल और पिंक रंग का बुरांश पाया जाता है। इनमें पिंक रंग के बुरांश को हिमाचल सरकार ने साल 2007 में स्टेट फ्लावर का दर्जा दे रखा है। इसलिए इस फूल का महत्व और भी बढ़ जाता है। कुछ सालों से मौसम में परिवर्तन के कारण इस वनस्पति फूल की मात्रा में भारी कमी देखी जा रही है। वहीं राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद की वैज्ञानिक अदिति ने बताया कि अब तक बुरांश पर कोई स्टडी नहीं की गई, लेकिन इस पर अनुसंधान किया जा सकता है।

औषधीय गुणों से भरपूर है बुरांश
बुरांश के गुणों की बात की जाए तो इसका प्रयोग स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है। बुरांश से निर्मित जूस और स्क्वैश भी खूब पसंद किया जाता है। बुरांश का जूस ह्दय रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। इसकी एक और खास बात यह है कि बंदर भी इसे नहीं खाते हैं। वन विभाग पी.सी.सी.एफ. डा. सविता कहना है कि इस साल जनवरी महीने में धूप अधिक निकली है। सर्दियों में ही अधिकतम तापमान 20 डिग्री या इससे अधिक गया है। इससे फ्लावरिंग के समय पर असर पड़ा है।

 

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