भव्य इमारतों में बिकता ज्ञान, अभिभावकों की जेब पर स्कूल संचालक का 'डाका'

Edited By Ekta, Updated: 16 Apr, 2019 11:56 AM

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बड़े-बड़े पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों के माता-पिता उन स्कूलों की चमक-दमक से प्रभावित तो हैं लेकिन उनके द्वारा वसूली जा रही भारी-भरकम फीस से दुखी व परेशान भी हैं। हजारों रुपए खर्च करने के बावजूद बच्चे स्कूल के बाद ट्यूशन पढ़ने को...

 

डमटाल/ज्वालामुखी (कालिया/नितेश): बड़े-बड़े पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चों के माता-पिता उन स्कूलों की चमक-दमक से प्रभावित तो हैं लेकिन उनके द्वारा वसूली जा रही भारी-भरकम फीस से दुखी व परेशान भी हैं। हजारों रुपए खर्च करने के बावजूद बच्चे स्कूल के बाद ट्यूशन पढ़ने को विवश हैं। इतना ही नहीं, शैक्षणिक व अशैक्षणिक गतिविधियों के नाम पर भी धन बटोरने में ये तथाकथित स्कूल कोताही बरतने से बाज नहीं आते हैं। बात-बात पर पैसा और न्याय की बात करने पर बच्चों को स्कूल से निकाल देने की धमकी, यही सब कुछ हो रहा है इन धन बटोरने की दुकानों में। दाखिला फीस, वर्दी व पुस्तकों के नाम पर निजी स्कूल संचालक अभिभावकों की जेब पर जमकर डाका डाल रहे हैं।

अभिभावकों के हाथ में संबंधित दुकानों के विजिटिंग कार्ड या पर्ची थमाकर उन्हें विशेष पुस्तक विक्रेता से ही पुस्तक खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। मजबूर अभिभावक शिक्षा विभाग को शिकायत करना चाहें तो सिर्फ कार्रवाई का आश्वासन ही मिलता है। शिक्षा विभाग भी कार्रवाई करने की चेतावनी देने से ज्यादा अब तक किसी स्कूल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। विभाग व प्रशासन निजी स्कूलों के आगे घुटने टेकते हुए नजर आ रहे हैं। शिक्षा विभाग के नियमों के मुताबिक हर कक्षा के छात्रों से एडमिशन फीस नहीं ली जा सकती है लेकिन कई निजी स्कूल संचालक नियमों को ताक पर रखकर हर साल दाखिला फीस लेते हैं।

लिखित में शिकायत नहीं कर पाते हैं अभिभावक

प्राइवेट स्कूलों के खिलाफ अभिभावक लिखित में शिकायत नहीं करते हैं बल्कि फोन के माध्यम से ही संबंधित अधिकारियों को जानकारी दे पाते हैं। अभिभावकों का तर्क है कि कहीं यदि स्कूल के खिलाफ शिकायत की तो स्कूल में पढ़ रहे बच्चों को दिक्कत न हो जाए। इसी के चलते वे लिखित में संबंधित विभाग के अधिकारियों को शिकायत नहीं कर पाते हैं।

सरकारी स्कूलों में मिलें सुविधाएं तो नहीं होगी निजी स्कूलों की लूट

क्या करें साहब। बच्चों का भविष्य का सवाल है। प्राइवेट स्कूल में बच्चों की एडमिशन तो करवानी ही पड़ेगी। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई अच्छी होती तो क्यों बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूलों में इतनी फीस देते। यह स्कूल वाले इतना भी नहीं सोचते कि 300 रुपए की दिहाड़ी लगाने वाला मजदूर कैसे इन प्राइवेट स्कूलों के खर्चे पूरे करेगा। अप्रत्यक्ष रूप से सरकार भी गरीबों के इस शोषण में बराबर की भागीदार नजर आती है। यदि सरकार सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दे तो निश्चित तौर पर प्राइवेट स्कूल की इतनी लूट नहीं होगी।

डायरी व स्कूल बैग भी पैसे हथियाने का जरिया

निजी स्कूल विद्यार्थियों से डायरी व आई कार्ड बनाने के नाम पर भी पैसे वसूल रहे हैं। नोट बुक व बैग पर भी स्कूल का नाम लिखकर अभिभावकों की जेब ढीली की जा रही है। री-एडमिशन, एनुअल चार्ज, बिल्डिंग फंड, एग्जाम चार्ज, उत्सव चार्ज, डांस फीस व लाइब्रेरी फीस आदि के नाम पर पैसे की वसूली हो रही है।

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