रेत और पत्थर के लिए खतरे में पहाड़ियों का अस्तित्व, जानिए कैसे (Watch Video)

Edited By Ekta, Updated: 13 Mar, 2019 03:05 PM

रेत और बजरी की खुली होड़ में प्रकृति से जमकर खिलवाड़ हो रहा है। जल, जंगल और जमीन को बुरी तरह से तबाह करने का खुला खेल चल रहा है। नियमों में सब अच्छा है यह दिखाने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। बड़ी-बड़ी पहाड़ियों को काटकर...

ऊना (सुरेन्द्र शर्मा): रेत और बजरी की खुली होड़ में प्रकृति से जमकर खिलवाड़ हो रहा है। जल, जंगल और जमीन को बुरी तरह से तबाह करने का खुला खेल चल रहा है। नियमों में सब अच्छा है यह दिखाने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। बड़ी-बड़ी पहाड़ियों को काटकर उनसे पौधे और वनस्पतियों को खत्म किया जा रहा है। इससे जंगली जीवों को भी संकट में डाला जा रहा है। भले ही नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल प्रकृति को बचाने के लिए लगातार आदेश पारित कर रहा हो लेकिन इसके बावजूद कुछ क्षेत्रों में एन.जी.टी. की गाइडलाइंस को भी दरकिनार किया जा रहा है। सबसे खराब हालत खनन के मामले में बार्डर एरिया में बने हुए हैं।
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यहां निजी जमीनों पर खनन के लिए लीज दी गई है तो अनेकों क्रशर खोलने के लिए परमिशन दी गई है। जब क्रशर चलेंगे तो उसके लिए रॉ मैटीरियल की भी निश्चित तौर पर बडी तादाद में जरूरत पड़ रही है। इन्ही जरूरतों को पूरा करने के लिए पहाडिय़ों का सीना छलनी किया जा रहा है। जो क्षेत्र हरे भरे पेड़ों और वनस्पतियों से भरे रहते थे वह अब धूल और जे.सी.बी. मशीनों की दनदनाहट से गूंज उठे हैं। पंजाब बार्डर के साथ लगता हिमाचल का गौंदपुर जयचंद का क्षेत्र खनन गतिविधियों की वजह से गूंज उठा है। एक तरफ हिमाचल तो दूसरी तरफ पंजाब का एरिया है। यहां पर क्रशरों की तबाही साफ देखने को मिल रही है।
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बड़ी-बड़ी मशीनें दिन रात पहाड़ियों को सफाचट करने में लगी हुई हैं। हालात यह हैं कि कई पेड़ हवा में लटके हुए हैं और कईयों को जड़ों से उखाड़ दिया गया है। क्रशरों के लिए पहाड़ियों से पत्थर निकाल कर उसकी मिट्टी को जिन क्षेत्रों में डाला जा रहा है वहां भी कई वनस्पतियां नीचे दफन की जा रहीं हैं। हरे भरे क्षेत्रों को वीरानगी में तबदील करने का खुला खेल क्षेत्र में चल रहा है। जिला में इस समय 41 स्टोन क्रशरों को विभाग से अनुमति मिली हुई है। इनमें से 35 क्रशर चल रहे हैं। जिला में खनन के लिए 85 क्षेत्रों को लीज प्रदान की गई है। अभी 15 और क्रशर लगाने के लिए लोगों ने आवेदन किए हैं। जिला में स्वां नदी के साथ-साथ इसकी सहायक 73 खड्डे हैं। खनन के हब बन चुके जिला ऊना में पहाड़ियों पर एक बड़ा खतरा मंडराने लगा है क्योंकि हिल स्लोप को भी खनन के लिए लीज पर दिया जाने लगा है।
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यह एक बड़ा पर्यावरण के लिए चिंता का विषय बन गया है। हालांकि निश्चित रूप से इस क्षेत्र में निजी जमीनें हैं और उनमें से खनन के लिए लीज भी दी गई है। कई विभागों पर आधारित समितियों ने अपनी तरफ से एन.ओ.सी. जारी की है। सवाल यहां पर विभागों की अनुमतियों पर भी खड़े हो रहे हैं। क्या रेत और पत्थर के लिए पहाड़ियों का अस्तित्व हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाएगा? क्या वैज्ञानिक तरीके से खनन हो रहा है इसकी जांच के लिए कोई ऑथोरिटी नियमित अवलोकन कर रही है? वस्तुस्थिति कुछ और ही बयां कर रही है। पूरे क्षेत्र में बड़े-बड़े टिप्पर और मशीनें दनदना रहे हैं। क्रम यही रहा तो पूरे क्षेत्र की वनस्पति और पेड़ पौधों सहित जीव जंतू खत्म हो जाएंगे।

बार्डर एरिया पर खनन और क्रशरों से मैटीरियल भरकर असंख्य टिप्परों एवं बड़े-बड़े ट्रकों-ट्रालों के जरिये दूसरे राज्यों को भेजा जा रहा है। सडक़ पर टिप्परों की दनदनाहट थमने का नाम नहीं ले रही हैं। जो क्षेत्र कभी जीव जंतुओं का आश्रय स्थल होता था वह अब समतल और धूल के बवंडरों से भरने लगा है। जिस प्रकार से पहाड़ों का सीना छलनी हो रहा है उससे संबंधित विभागों और अनुमति प्रदान करने के तौर तरीकों पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं। खनन के लिए निजी भूमि को लीज पर लेने वाले और क्रशरों का संचालन कर रहे प्रबंधकों का तर्क है कि उन्होंने सभी मापदंड़ों को पूरा करने के बाद ही खनन गतिविधियां शुरू की हैं। जिस क्षेत्र या पहाड़ में खनन किया जाता है उसे बाद में मिट्टी से भर दिया जाता है।

गौंदपुर जयचंद में वस्तुस्थिति देखी जाएगी। यदि नियमों की अवहेलना का मामला सामने आया तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जिला खनिज अधिकारी परमजीत सिंह का कहना है कि गौंदपुर जयचंद में निजी जमीन पर खनन के लिए अनुमति दी गई है। इसी अनुमति के तहत वहां क्रशर स्थापित हुए हैं और खनन कार्य हो रहे हैं। कुछ हद तक मशीनरी के साथ पत्थर निकाले जा सकते हैं लेकिन शर्त यह है कि जिस एरिए की खुदाई हो उसे मिट्टी से भरकर उसे फिर उसी तरह समतल कर दिया जाए। मौका देखा जाएगा और गलत हुआ तो कार्रवाई होगी। विभाग पैमाइश भी करवाएगा।

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