स्कूली बच्चों के लिए खरीदी जा रही बोतलों के सैंपल फेल

Edited By Ekta, Updated: 21 Feb, 2019 11:07 AM

samples of bottles fail being purchased for school children

सूबे के स्कूली बच्चों के लिए खरीदी जा रही स्टील की बोतलों के सैंपल फेल हो गए हैं। इसे देखते हुए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पी.सी.बी.) ने दोबारा से टैंडर आमंत्रित करने का फैसला लिया है। पी.सी.बी. ने खाद्य आपूर्ति निगम को जल्द स्टील की बोतलों की...

शिमला (देवेंद्र हेटा): सूबे के स्कूली बच्चों के लिए खरीदी जा रही स्टील की बोतलों के सैंपल फेल हो गए हैं। इसे देखते हुए राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पी.सी.बी.) ने दोबारा से टैंडर आमंत्रित करने का फैसला लिया है। पी.सी.बी. ने खाद्य आपूर्ति निगम को जल्द स्टील की बोतलों की खरीद के लिए टैंडर लगाने को कह दिया है, ताकि मार्च 2019 में शुरू हो रहे नए शैक्षणिक सत्र में समय पर बच्चों को बोतलें मिल सकें। सरकार की योजना के मुताबिक प्रथम चरण में 90 हजार बोतलें सरकारी स्कूलों में 9वीं कक्षा में पढऩे वाले विद्यार्थियों को दी जानी हैं। पी.सी.बी. ने इनकी खरीद के लिए एक करोड़ का बजट प्रावधान कर रखा है। 

प्रदेश में बीते साल 5 जून को पर्यावरण दिवस पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने थर्मोकोल से बने उत्पादों पर भी पूर्णत: प्रतिबंध का ऐलान किया था। इसके डेढ़ सप्ताह के बाद ही सरकार ने सभी सरकारी दफ्तरों व प्रतिष्ठानों में प्लास्टिक की बोतलों पर प्रतिबंध का फैसला लिया। इसी के दृष्टिगत सरकार ने स्कूलों में बच्चों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्लास्टिक की बोतलों को बदलने के मकसद से स्टील की बोतलें देनेका जिम्मा पी.सी.बी. को दिया। चरणबद्ध ढंग से सरकार अन्य कक्षाओं को भी स्टील की बोतलें देने के दावे कर रही है। थर्मोकोल से पहले राज्य सरकार 1 जनवरी 1999 को रंगीन पॉलीथीन और 14 जून 2004 को 70 माइक्रोन से कम मोटाई वाले पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगा चुकी है।

क्यों जरूरी है प्लास्टिक पर प्रतिबंध

प्लास्टिक हमारे पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुक्सान पहुंचा रहा है। प्लास्टिक की बोतल व थैले रंग और रंजक, धातुओं तथा अन्य तमाम प्रकार के अकार्बनिक रसायनों को मिलाकर बनाए जाते हैं। इनमें कुछ कैंसर को जन्म देने की संभावना से युक्त हैं तो कुछ खाद्य पदार्थों को विषैला बनाने में सक्षम होते हैं। रंजक पदार्थों में कैडमियम जैसी धातुएं होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरा साबित हो सकती हैं। प्रदेश में लगभग 2 टन प्लास्टिक कचरा रोजाना पैदा होता है। इसमें से केवल 0.02 टन यानि 200 किलो ग्राम प्लास्टिक कचरा ही उचित रूप से निष्पादित होता है। लगभग 300 किलो प्लास्टिक कचरा पुन: चक्रण में जाता है। 250 से 400 किलो सीमैंट उद्योग में ईंधन के रूप में जलाया जाता है।


 

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