हौसलों ने कर दी 'जिंदगी जिंदाबाद', 12 साल से बैड पर है लेकिन देखिए 'कलाकारी का कमाल' (Video)

Edited By Simpy Khanna, Updated: 16 Nov, 2019 10:21 PM

खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं, धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं, हमें क्या रोकेंगे ये जमाने वाले, हम पैरों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं। यूं तो यह शायरी है लेकिन लालसिंगी गांव के 52 वर्षीय दिव्यांग बिशन दास ने इसे हकीकत कर दिखाया है। बिशन...

ऊना (सुरेन्द्र शर्मा): खुशबू बनकर गुलों से उड़ा करते हैं, धुआं बनकर पर्वतों से उड़ा करते हैं, हमें क्या रोकेंगे ये जमाने वाले, हम पैरों से नहीं हौसलों से उड़ा करते हैं। यूं तो यह शायरी है लेकिन लालसिंगी गांव के 52 वर्षीय दिव्यांग बिशन दास ने इसे हकीकत कर दिखाया है। बिशन दास उन लोगों के लिए मिसाल हैं जो शारीरिक रूप से सक्षम होते हुए भी हिम्मत हार जाते हैं। 
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पिछले 15 वर्षों से बिस्तर पर लेटे बिशन दास न केवल अपना बल्कि अपने परिवार का भी पालन-पोषण मेहनत से कर रहे हैं। कोई भी देखकर यह कल्पना नहीं कर सकता कि शारीरिक रूप से पूरी तरह से अक्षम हो चुके एक व्यक्ति ने किस तरह से अपने जीवन की राह बदली। खुद के लिए ही नहीं बल्कि दूसरों के लिए भी वह मिसाल बने हैं। यह वर्ष 2004 की बात है जब बिशन दास के जीवन में एक ऐसी दुखद घटना हुई जिसकी किसी को सपने में भी कल्पना नहीं थी। 
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दिल्ली और गाजियाबाद में वैल्डिंग के कुशल कारीगर के रूप में काम कर रहे लालसिंगी के बिशन दास को उन्हीं के ही बिहार के एक कामगार ने गोली मारकर हमेशा के लिए अपाहिज कर दिया। बिशन दास का कसूर इतना था कि उन्होंने अपने पास रखे एक बिहार के व्यक्ति को न केवल काम सिखाया बल्कि उसके हवाले अपने कारोबार को सौंपकर दूसरी जगह एक नया कारोबार शुरू कर दिया। जब इस कामगार से हिसाब मांगा तो उसने बजाय एहसान मानने के अपने एक साथी के साथ बिशन दास को रिवॉल्वर से गोली मार दी। गोली शरीर से आर-पार हो गई और बिशन दास जो कुशल कारीगर थे वह शरीर के एक पूरे हिस्से से हमेशा के लिए अपाहिज हो गए। 
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2007 में घर में शुरू किया था वैल्डिंग का कार्य

घटना के बाद अपने गांव लालसिंगी लौटे बिशन दास 2 वर्ष तक इसी ङ्क्षचता में रहे कि आखिर परिवार का पालन-पोषण कैसे हो। पत्नी सहित 2 बेटियों व एक बेटे की जिम्मेदारी का बोझ उनके कंधों पर था। वह बिस्तर पर ज्यादा बोझिल नहीं होना चाहते थे। बिस्तर पर लेटे-लेटे उन्होंने परिवार के सदस्यों से घर के बरामदे में वैल्डिंग की मशीनरी सैट करवाई और यहीं से उनका सफर शुरू हो गया। वर्ष 2007 से बिशन दास ने बिस्तर पर लेटे-लेटे ही वैल्डिंग का कार्य शुरू किया और एक के बाद एक डिजाइन तैयार करते गए। इस कार्य में उनकी पत्नी सुरजीत कौर तथा बच्चों ने भी साथ दिया। सड़क से लोहे के सामान को कंधों पर उठाकर घर लाते और बिस्तर पर लेटे रॉ मैटीरियल को जब बिशन दास के हवाले किया जाता तो यह एक ऐसे नमूने का रूप लेता कि हर कोई सराहना किए बिना नहीं रहता। 
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पत्नी सुरजीत कौर बंटाती है हाथ

बिशन दास की ही मेहनत का नतीजा है कि उनकी 2 बेटियों में से एक बी.ए. व दूसरी बी.एससी. की शिक्षा ग्रहण कर रही है तो बेटा आई.टी.आई. करने के बाद एक निजी कम्पनी में काम कर रहा है। बिशन दास को कोई मलाल नहीं है कि जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जिसने उनकी सारी खुशियां लील लीं। वह अपनी पत्नी सुरजीत कौर को इस हौसले का सबसे अधिक श्रेय देते हैं। कहते हैं कि पत्नी उनकी मददगार न होती तो शायद वह इस मुकाम तक न पहुंच पाते। व्यक्तिगत देखभाल, उनके काम में हाथ बंटाना और बच्चों की परवरिश करने से लेकर खेतीबाड़ी के सारे कार्य सुरजीत कौर करती हैं। बिशन दास का कहना है कि उनके पास काफी ऑर्डर आते हैं। वह बिस्तर पर लेटे-लेटे दिन में 18-18 घंटे काम करते हैं। जब भी कोई ऑर्डर वैल्डिंग या घर में गेट इत्यादि बनाने का मिलता है तो वह उसे पूरा करते हैं।

घर जाने के लिए नहीं है रास्ता

दिक्कतें बिशन दास का पीछा नहीं छोड़ रही हैं और वह हिम्मत नहीं हार रहे हैं। सबसे बड़ी बाधा यह है कि लालसिंगी में जिस जगह पर उन्होंने अपना घर बनाया है उसके लिए कोई रास्ता नहीं है। वर्षों से जिस रास्ते पर आना-जाना होता था वहां निजी जमीन मालिकों ने बाधाएं खड़ी कर दी हैं। इस मामले को लेकर बिशन दास का परिवार जिला प्रशासन से लेकर भू-मालिकों की मिन्नतें भी कर चुका है लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ है। 
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अपंगता पैंशन के अतिरिक्त नहीं मिली सरकारी मदद

बिशन दास कहते हैं कि उनका यही संदेश है कि जीवन में असंभव कुछ भी नहीं है। उठो हिम्मत करो और चुनौती को स्वीकार करो। अपनी पत्नी को सबसे अधिक साथी करार देते हैं जिसकी वजह से वह पिछले करीब 12 वर्षों से बिस्तर पर लेटे-लेटे ही अपना कारोबार चलाकर रोजी-रोटी चला रहे हैं। सरकार की तरफ से केवल अपंगता पैंशन के अतिरिक्त और कोई मदद कभी नहीं मिली है। न तो कभी कोई राजनेता मिलने आया और न ही किसी सामाजिक सरोकार की संस्था ने उनका हालचाल जाना है। वह किसी पर भी निर्भर नहीं रहना चाहते हैं। बिशन दास की बेटियां भी अपने पिता पर गर्व करती हैं और उन्हें अपना असली हीरो मानती हैं। 
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घर पहुंचने के लिए रास्ता देने की लगाई गुहार

बिशन दास की पत्नी सुरजीत कौर कहती हैं कि उनके पति ने कभी न तो हिम्मत हारी और न ही किसी के आगे मदद के लिए हाथ फैलाया। दिल्ली में अच्छा खासा कारोबार था लेकिन एक रंजिश ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। पति दिव्यांग हुए तो परिवार के लिए गुजर-बसर करना मुश्किल हो गया। कुछ समय तक इधर-उधर काम किया लेकिन पति ने बिस्तर पर लेटे-लेटे ही वैल्डिंग के अपने हुनर को दिखाना शुरू कर दिया। इससे उनका गुजारा भी चलने लगा और बच्चों की पढ़ाई भी संभव हो पाई। वह कहती हैं कि कोई इतनी मदद कर दे कि उन्हें घर पहुंचने के लिए अपनी जमीन से आने-जाने दे। 

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