IIT Mandi के शोधकर्ताओं ने की खोज, फैटी लिवर वाले लोगों में डायबिटीज के खतरे का लगाया जा सकेगा पता

Edited By Vijay, Updated: 07 Sep, 2022 12:52 AM

risk of diabetes can be detected in people with fatty liver

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने लिवर में फैट जमा होने से जुड़े रोग और टाइप-2 डायबिटीज के बीच जैव रसायन संबंधों की खोज की है। इस खोज से एक नई तकनीक विकसित की जा सकेगी, जिससे गैर-अल्कोहल यानी शराब का सेवन न करने पर भी वसा...

मंडी (रजनीश): भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने लिवर में फैट जमा होने से जुड़े रोग और टाइप-2 डायबिटीज के बीच जैव रसायन संबंधों की खोज की है। इस खोज से एक नई तकनीक विकसित की जा सकेगी, जिससे गैर-अल्कोहल यानी शराब का सेवन न करने पर भी वसा युक्त (फैटी) लिवर वाले लोगों में डायबिटीज के खतरों का पता लगाने और जांच व उपचार की नई तकनीक तैयार की जा सकेगी। शोध के दौरान किए अध्ययन से कई महत्वपूर्ण बिंदु सामने आए हैं। व्यावहारिक रूप एवं चिकित्सकीय जांच के नजरिए से यह बताता है कि रक्त में एस100ए6 का बढ़ा स्तर गैर-अल्कोहल फैटी लीवर वाले मरीजों में टाइप-2 डायबिटीज के खतरों की पहचान कर सकता है। यह शोध स्कूल ऑफ बायो साइंस एवं बायो इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफैसर डाॅ. प्रोसेनजीत मंडल, सुरभि डोगरा, प्रिया रावत, डाॅ. पी. विनीत डैनियल तथा सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ कैमिकल बायोलॉजी कोलकाता के डाॅ. पार्थ चक्रवर्ती तथा आईपीजीएमईआर और एसएसकेएम अस्पताल कोलकाता के डाॅ. देवज्योति दास, सुजय के. मैती, अभिषेक पाल, डाॅ. कौशिक दास और डाॅ. सौविक मित्रा ने मिलकर किया है।
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शराब न पीने वाले 40 प्रतिशत वयस्क फैटी लिवर से प्रभावित
देश में शराब का सेवन न करने पर भी लिवर में फैट बढ़ने का रोग तेजी से बढ़ रहा है। हाल के हुए सर्वेक्षण में पता चला है कि 40 प्रतिशत भारतीय वयस्क इससे प्रभावित हैं। गैर-अल्कोहल वसा युक्त लिवर को अकसर टाइप-2 डायबिटीज से जोड़कर देखा जाता है। करीब 5 करोड़ भारतीय इन दोनों रोगों से पीड़ित हैं।

ऐसे किया गया शोध
शोध टीम ने फैट का सेवन करवाए चूहों और गैर-अल्कोहल वसा युक्त लीवर से पीड़ित मरीजों के रक्त के नमूनों का विश्लेषण किया। दोनों नमूनों में कैल्शियम को बांधे रखने वाले प्रोटीन पाए गए, जिन्हें एस100ए6 बताया गया। यह प्रोटीन वसा युक्त लिवर से निकलता है और लिवर एवं अग्नाशय के बीच संवाद सेतु का काम करता है। एस100ए6 इंसुलिन पैदा करने की बी-कोशिका क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालकर टाइप-2 डायबिटीज को बढ़ाते हैं। जैव रसायन स्तर पर एस100ए6 अग्नाशयिक बीटा कोशिका पर उन्नत ग्लाइकेशन अंतिम उत्पाद (आरएजीई) के रिसैप्टर को सक्रिय कर देते हैं, जिससे इंसुलिन निकलना रुक जाता है।

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