रिटायरमेंट के बाद सैनिकों को नहीं मिल रही कहीं और नौकरी, ये है वजह

Edited By Punjab Kesari, Updated: 02 Feb, 2018 11:44 AM

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जवानी में रिटायरमेंट के बाद घर आने वाले पूर्व सैनिकों को दोबारा नौकरियां हासिल करना या फिर स्वरोजगार की तरफ बढ़ना मुश्किल होता जा रहा है। कारण, दिन प्रतिदिन आधुनिकता की तरफ बढ़ते कदम। एक सैनिक जब सेना में भर्ती होता है तो उस समय उसकी क्वालिफिकेशन...

मंडी (नीरज): जवानी में रिटायरमेंट के बाद घर आने वाले पूर्व सैनिकों को दोबारा नौकरियां हासिल करना या फिर स्वरोजगार की तरफ बढ़ना मुश्किल होता जा रहा है। कारण, दिन प्रतिदिन आधुनिकता की तरफ बढ़ते कदम। एक सैनिक जब सेना में भर्ती होता है तो उस समय उसकी क्वालिफिकेशन मैट्रिक या प्लस टू होती है। देश सेवा के लिए एक युवा सेना में भर्ती हो जाता है। सेना को जवान रखने की दृष्टि से इस सैनिक को 35 से 45 वर्ष के बीच रिटायर करके घर भेज दिया जाता है। अनुमान के अनुसार देश की तीनों सेनाओं से हर वर्ष 60 हजार से भी ज्यादा सैनिकों को रिटायर करके घर भेज दिया जाता है। हिमाचल प्रदेश में रिटायर होने वाले पूर्व सैनिकों की संख्या 2 हजार प्रतिवर्ष है। इसके बाद इनके पास करने को कुछ खास नहीं होता। 


सरकारें सिविल सर्विसेज में 15 प्रतिशत का आरक्षण तो इन्हें दे रही है लेकिन आधुनिकता के कारण जो क्वालिफिकेशन मांगी जाती है उसमें यह पूर्व सैनिक खरे नहीं उतर पाते। क्योंकि जमाना आधुनिकता का है और यह पूर्व सैनिक सरहदों की रक्षा करके घर लौटे होते हैं जिनके पास इन नौकरियों को हासिल करने लायक योग्यता नहीं होती। पूर्व सैनिक लीग के अध्यक्ष रिटायर ब्रिगेडियर खुशाल ठाकुर बताते हैं कि आज आधुनिकता के कारण पूर्व सैनिकों को कहीं रोजगार नहीं मिल पा रहा और ऐसे में इनकी रि-स्किलिंग की जरूरत महसूस हो रही है। 


हिमाचल में 1 लाख 25 हजार पूर्व सैनिक हैं जबकि 1 लाख 30 हजार अभी भी सेना में सेवाएं दे रहे हैं। सैनिक विधवाओं की संख्या करीब 11 हजार है। इन सभी के साथ 12 लाख से भी अधिक की आबादी जुड़ी हुई है। पूर्व सैनिक लीग की माने तो मंडी जिला मुख्यालय पर सैनिक कल्याण विभाग की 7 बीघा जमीन बेकार पड़ी है जहां पर सैनिक सदन बनाने की मांग चल रही है। यदि सैनिक सदन के स्थान पर सेल्फ सस्टेनिंग सदन बनाया जाए और वहां पर पूर्व सैनिकों को स्किल करने का कार्य शुरू किया जाए तो इससे पूरे प्रदेश के पूर्व सैनिकों को लाभ मिल सकता है।


केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर इस कार्य को शुरू कर सकती है। क्योंकि इस पर करोड़ों की लागत आनी है। यदि इस प्रकार का कोई संस्थान प्रदेश में शुरू हो जाता है तो इससे पूर्व सैनिकों को लाभ मिलना तय है। हालांकि अब यह सब सरकारों की मंशाओं पर ही निर्भर करेगा कि सेना को जवान रखने के लिए जवानी में रिटायर होकर आ रहे पूर्व सैनिकों के सेकेंड सेटल्मेंट के बारे में क्या निर्णय लेना है।

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