राजा से देवता बने हुंगलू नाग के मंदिर का हुआ जीर्णोद्धार

Edited By Ekta, Updated: 08 Dec, 2018 05:36 PM

restoration of hunglu nang temple made by god

राजा से देवता बने हुंगलू नाग के मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण हो गया है। उपमंडल करसोग के ऐतिहासिक व धार्मिक च्वासी क्षेत्र में मौजूद इस प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार में स्थानीय लोगों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र में अनेक दार्शनिक मंदिर...

करसोग (यशपाल): राजा से देवता बने हुंगलू नाग के मंदिर का जीर्णोद्धार कार्य पूर्ण हो गया है। उपमंडल करसोग के ऐतिहासिक व धार्मिक च्वासी क्षेत्र में मौजूद इस प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार में स्थानीय लोगों ने अपनी अहम भूमिका निभाई है। इस क्षेत्र में अनेक दार्शनिक मंदिर काष्ठ कला का उत्कृष्ठ उदाहरण हैं। इन मंदिरों की काष्ठकला आज भी सैकड़ों वर्षों के बाद जीवित है जो प्राचीन काल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का बखूबी बखान कर श्रद्धालुओं व पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर बार-बार इस क्षेत्र के भ्रमण के लिए विवश कर देती है। जहां एक ओर यह काष्ठ कला काल के प्रवाह से लुप्त हो रही है वहीं दूसरी ओर भावी पीढ़ी को इस कला परंपरा को सौंपने के आज भी प्रयास किए जा रहे हैं। 

10 दिसंबर को की जा रही इस मंदिर की प्रतिष्ठा

इसी कड़ी मेंं च्वासी क्षेत्र की पोखी पंचायत के श्री नाग हुंगलू (झाकड़ु नाग) मंदिर के 5 वर्ष तक चले निर्माण कार्य के पूर्ण होने के बाद इस काष्ठ कला को बहुत परिश्रम और लगन से पुनर्जीवित किया गया है। इस मंदिर और कोठी भवन के झरोखों, स्तंभों, द्वारों, दीवारों व छत पर बेल-बूटे, देवी-देवताओं की बारिक चित्रकारी करके उसे जीवित किया गया है। मंदिर समिति के प्रधान फिल्लौर सिंह ठाकुर ने बताया कि इस मंदिर की प्रतिष्ठा 10 दिसंबर को की जा रही है। इस अवसर पर विनणी महादेव, नाग च्वासी महोग, वैणसी महादेव, नाग पोखी, सोमेश्वर महादेव, ममलेश्वर महादेव, कामाक्षा माता के प्रतीक चिन्ह देव समितियों कारदारों वाद्य वृंदों सहित अतिथि के रूप में पधार कर इस दैवीय कार्यक्रम की शोभा बढ़ाएंगे। 

इस स्थान पर मिले चौरासी सिद्ध

समाजसेवी युवा टी.सी.ठाकुर ने बताया कि नाग हुंगलू मन-वचन और कर्म से एक न्यायप्रिय राजा थे। राजपाट त्याग कर मानसिक शांति के लिए डींग गांव पहुंचे। इस स्थान पर उन्हें चौरासी सिद्ध मिले। जिनके प्रभाव से राजा ने दिक्षा प्राप्त कर सन्यास ले लिया और इतना कठिन तप किया कि इनके चारों ओर कंटीली झाड़ियां उग आई। इन्होंने कुचाली प्रवृति की थोई, कमाडू, ढबरैची आदि यक्ष यक्षिणियों को अपने तपबल से हराकर लोगों द्वारा देवता रुप में पूजे जाने लगे। आज श्रद्धालुओं की भीड़ यहां आकर देव चरणों में श्रद्धानवत होकर अलौकिक सुख की अनुभूति प्राप्त करती है।




 

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