सिरमौर की जैव विविधता का दर्ज होगा रिकॉर्ड, 17 पंचायतों ने साइन किया MOU

Edited By Vijay, Updated: 20 Jan, 2019 04:32 PM

record of biodiversity of sirmaur

जिला सिरमौर में बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा के संरक्षण, उपयोग तथा समान आबंटन के लिए जिला के चुनिंदा जैव विविधता प्रबंधन समितियों में जन जैव विविधता रजिस्टर प्रक्रिया शुरू करने और त्रिपक्षीय ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के उद्देश्य से जिला परिषद सभागार में...

नाहन: जिला सिरमौर में बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा के संरक्षण, उपयोग तथा समान आबंटन के लिए जिला के चुनिंदा जैव विविधता प्रबंधन समितियों में जन जैव विविधता रजिस्टर प्रक्रिया शुरू करने और त्रिपक्षीय ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के उद्देश्य से जिला परिषद सभागार में राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें जिला सिरमौर की 17 पंचायतों के प्रतिनिधियों ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। कार्यशाला की अध्यक्षता फ ल विज्ञान विभाग नौणी विश्वविद्यालय के प्रो. डा. डी.पी. शर्मा ने की। राज्य विविधता बोर्ड के राज्य समन्वयक डा. एम.एल. ठाकुर ने बताया कि सिरमौर जिला में प्रथम चरण में 20 पंचायतों को इस प्रक्रिया के तहत लाया गया है तथा दूसरे चरण में 17 पंचायतों को लाने के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया है।

प्रत्येक पंचायत को मिलेगी 1 लाख रुपए की राशि

बोर्ड द्वारा प्रत्येक पंचायत को 1-1 लाख रुपए की राशि प्रदान की जाएगी। इसका 50 प्रतिशत हिस्सा वानिकी विश्वविद्यालय नौणी को जैव विविधता के प्रलेखन हेतु दिया जाएगा। सिरमौर जिला की 228 ग्राम पंचायतों में से 216 ग्राम पंचायतों में जैव विविधता प्रबंधन समितियों का गठन किया गया है और इन्हें शत-प्रतिशत किया जाएगा। उन्होंने कहा कि त्रिपक्षीय एम.ओ.यू. हस्ताक्षरित होने के उपरांत चयनित पंचायतों में जीव-जन्तु, जड़ी-बूटियों और पेड़-पौधों की गणना कर उनके रिकार्ड का प्रलेखन किया जाएगा ताकि प्रकृति संपदा का संरक्षण और संवद्र्धन हो सके।

जैव विविधता का कम होना एक विश्वव्यापी समस्या

डा. शर्मा ने बताया कि जैव विविधता का कम होना एक विश्वव्यापी समस्या उत्पन्न होने लगी है। उन्होंने कहा कि कालांतर में अनाज व पेड़-पौधों आदि की अनेक किस्में हुआ करती थीं परन्तु जिस प्रकार वर्तमान में रासायनिक खादों का आवश्यकता से अधिक उपयोग किया जा रहा है, उससे जहां मनुष्य के शरीर में पोषक तत्वों की कमी आने लगी है, वहीं जैव विविधता के मायने भी समाप्त होने की कगार पर आ गए हैं। इसी प्रकार बुजुर्ग लोग जलवायु के आधार पर पेड़-पौधे लगाते थे और वही वन मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करते थे। इस अवसर पर वन मंडलाधिकारी नाहन प्रदीप कुमार और वन मंडलाधिकारी रेणुका श्रेष्ठा नंद और डा. पंकज वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी तथा शुभा बैनर्जी वरिष्ठ वैज्ञानिक अधिकारी ने भी जैव विविधता पर अपने विचार रखे।

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