पौंग बांध विस्थापितों का पुनर्वास करने के लिए बनाएं सचेत नीति

Edited By Ekta, Updated: 11 Dec, 2018 11:11 AM

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प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल व राजस्थान की राज्य सरकार के मुख्य सचिवों को आदेश दिए कि वे पौंग बांध विस्थापितों का हिमाचल में ही पुनर्वास करने हेतु सचेत नीति बनाएं ताकि राजस्थान सरकार के खर्चे पर विस्थापितों के लिए उपयुक्त जमीन खरीदी जा सके। कोर्ट ने...

शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने हिमाचल व राजस्थान की राज्य सरकार के मुख्य सचिवों को आदेश दिए कि वे पौंग बांध विस्थापितों का हिमाचल में ही पुनर्वास करने हेतु सचेत नीति बनाएं ताकि राजस्थान सरकार के खर्चे पर विस्थापितों के लिए उपयुक्त जमीन खरीदी जा सके। कोर्ट ने जरूरत पड़ने पर उच्च स्तरीय बैठक कर नीतिगत फैसला लेने के आदेश भी दिए हैं। इससे पहले कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए थे कि वह प्रदेश में ही जमीन की तलाश करे और पुनर्वास का पूरा खर्च राजस्थान सरकार से लिया जाए। कोर्ट ने दोनों सरकारों को आपस में बैठकर इसका समाधान निकालने के निर्देश दिए थे। 

हिमाचल व राजस्थान की राज्य सरकार के मुख्य सचिवों को आदेश 

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस अजय मोहन गोयल की खंडपीठ को मामले की सुनवाई के दौरान बताया गया कि राजस्थान सरकार के साथ बातचीत चल रही है परंतु अभी तक किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंची है। पिछली सुनवाई को बताया गया था कि पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान के जैसलमेर और बीकानेर के कठिन क्षेत्रों में पुनर्वास के नाम पर जमीन दी जा रही है, जहां रहना आसान नहीं है। ऐसे में प्रदेश सरकार का दायित्व है कि वह विस्थापितों के लिए राज्य में ही जमीन उपलब्ध करवाए जिसका खर्च राजस्थान सरकार से लिया जा सकता है। इसी संदर्भ में कोर्ट ने दोनों राज्यों के मुख्य सचिवों को बैठक कर पौंग बांध विस्थापितों की समस्या का हल निकालने के आदेश दिए व बातचीत संबंधी स्टेटस रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष रखने को कहा। 

हिमाचल में पौंग बांध में हजारों लोगों की भूमि चली गई

उल्लेखनीय है कि हिमाचल में पौंग बांध में हजारों लोगों की भूमि चली गई। 16,352 पौंग बांध विस्थापितों के पुनर्वास के लिए राजस्थान के गंगानगर जिले में 2 लाख 20 हजार एकड़ भूमि आरक्षित की गई थी। अभी भी 5,000 पौंग बांध विस्थापित पुनर्वास के लिए भटक रहे हैं। पौंग डैम बनाने के लिए साल 1971 में भूमि का अधिग्रहण हुआ था। तब से लेकर अब तक विस्थापित पुनर्वास के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। मामले पर सुनवाई 10 जनवरी को होगी।
 

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