सियासत: कांग्रेस के कुलदीप की चुनौतियां

Edited By Ekta, Updated: 11 Jan, 2019 11:45 AM

politics challenges of kuldeep from congress

कुमारसेन से निकल कर शिमला के सर्कुलर रोड स्थित राजीव भवन की पहरेदारी और फिर सरदारी तक पहुंचे कुलदीप राठौर के सामने नए हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कई चुनौतियां हैं। वास्तव में लोकसभा चुनाव के मुहाने पर सौंपा गया यह ताज उनके लिए औहदेदारी कम और...

शिमला (संकुश): कुमारसेन से निकल कर शिमला के सर्कुलर रोड स्थित राजीव भवन की पहरेदारी और फिर सरदारी तक पहुंचे कुलदीप राठौर के सामने नए हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कई चुनौतियां हैं। वास्तव में लोकसभा चुनाव के मुहाने पर सौंपा गया यह ताज उनके लिए औहदेदारी कम और जिम्मेदारी कहीं अधिक लेकर आया है। उनकी ताजपोशी तीन माह पहले ही तय हो गयी थी और उसका ऐलान अब जाकर हुआ है। इस लिहाज़ से कुलदीप के पास अपना सियासी "कुल" तय करने का पूरा समय था और उन्होंने एक मोटी सी टीम तय भी कर ली होगी। अब उसमें उन्हें उन लोगों को ही एडजस्ट करना है जो सिफारिश लेकर आएंगे और यही कुलदीप राठौर की बड़ी चुनौती भी होगी...सबको एडजस्ट करना। कितना कर पाएंगे और किस किस को कर पाएंगे ??? वैसे यह भी समझ लेना जरूरी है कि सुक्खू को नहीं हटाया गया है बल्कि राठौर को बनाया गया है।
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सुक्खू लंबे समय से कुर्सी पर काबिज थे, उधर वीरभद्र सिंह उनको हटाए जाने की मुहिम छेड़े हुए थे। इसलिए हाईकमान ने उनका (सुक्खू) लॉन्ग स्टे तोड़ा है। वैसे भी सुक्खू 2022 तक अध्यक्ष रहते यह संभव नहीं था। हां यह हो सकता है इस कूल ऑफ अवधि में या तो सुक्खू अनुराग के खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतार दिए जाएं या फिर उनको अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में कोई ओहदा देकर संगठन के काम में लगाया जाए। यह सब राहुल गांधी पर निर्भर करता है। असल में राठौर की नियुक्ति से गांधी ने एक तीर से दो शिकार किए हैं। पहला वीरभद्र अब कोई शर्त नहीं रख सकेंगे। सुक्खू को हटवाना चाहते थे, राहुल गांधी ने नया अध्यक्ष बना दिया बात खत्म। अब राहुल गांधी अड़ गए कि मंडी से उनको ही लड़ना है तो लड़ना ही पड़ेगा। वैसे भी तमाम सियासत इस समय लोकसभा चुनाव के लिहाज़ से ही हो रही है। ऐसे में अगर मंडी से वीरभद्र और हमीरपुर से सुक्खू चुनाव लड़ते हैं तो इसका मतलब समझा जा सकता है कि जयराम सरकार के सामने कड़ी चुनौती पेश की जाएगी।
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यही राहुल गांधी की रणनीति भी है कि बिना लड़े मैदान न छोड़ा जाए। सबसे श्रेष्ठ उम्मीदवार उतारा जाए और फिर एक होकर लड़ा जाए। इस लिहाज़ से वीरभद्र की सहमति के बावजूद कुलदीप राठौर सुक्खू/स्टोक्स या फिर आनद शर्मा खेमे से ही हैं और तीनों खेमे वीरभद्र के तो हैं नहीं यह दुनिया जानती है और अगर यह बदलाव हाईकमान के सियासी चक्रव्यूह का हिस्सा है तो फिर तय है कि राठौर एक भी जिला अध्यक्ष तक को छेड़ने से रहे। वे डमी अध्यक्ष ही होंगे। हां अगर वो कुछ क्रांतिकारी कर जाएं तो बात अलग है। ले-दे कर यह बदलाव सिर्फ लोकसभा चुनाव में खेमेबाजी को शांत करने की गरज से ही हुआ है। उसके बाद क्या होता है क्या नहीं यह लोकसभा चुनाव् के बाद ही तय होगा. फिलहाल इतना तय है कि विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले फिर नया कांग्रेस अध्यक्ष आएगा। अब वही पहले वाला वापस आएगा कोई और आएगा यह तो वक्त बताएगा, लेकिन बीते वक्त में हुई घटनाएं अगर कुछ बताती हैं तो वो यह है कि जो चुनाव से पहले अध्यक्ष बनकर आएगा। लगभग वही मुख्यमंत्री का उम्मीदवार होगा। वीरभद्र सिंह से भूपेश बघेल बरास्ता अमरिंदर सिंह, कमलनाथ (कुछ-कुछ सचिन पायलट) यही हुआ है।
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