हाल-ए-हिमाचल : मोदी की नीतियों को पलीता लगाने में जुटे हिमाचल के नए सांसद

Edited By kirti, Updated: 17 Sep, 2019 11:11 AM

pm narendra modi

क्या हिमाचल से चुने गए दो सांसद प्रधानमंत्री मोदी को नहीं मानते ?? क्या वे अपने ही प्रधानमंत्री की नीतियों और नियमों को पलीता लगाने में जुटे हए हैं ?? जवाब है -- जी हां। ये सांसद हैं कांगड़ा से रिकार्ड मतों से जीतकर संसद पहुंचे किशन कपूर और शिमला से...

शिमला (संकुश): क्या हिमाचल से चुने गए दो सांसद प्रधानमंत्री मोदी को नहीं मानते ?? क्या वे अपने ही प्रधानमंत्री की नीतियों और नियमों को पलीता लगाने में जुटे हए हैं ?? जवाब है --- जी हां। ये सांसद हैं कांगड़ा से रिकार्ड मतों से जीतकर संसद पहुंचे किशन कपूर और शिमला से जीते सुरेश कश्यप। दोनों पहले विधायक थे। कपूर धर्मशाला से तो सुरेश कश्यप पच्छाद से। जाहिर है इनकी जीत के बाद अब दोनों जगह उपचुनाव होना है। लेकिन उस उपचुनाव को लेकर दोनों ने बीजेपी में फज़ूल की चौधर डाल दी है। कहां तो होना यह चाहिए था कि ये लोग पार्टी को यह कहते कि आप जिसे भी उपचुनाव में उतारेंगे हम उसके लिए जी जान से मेहनत करेंगे और कहां ये जनाब उलटे संगठन को बांस घड़ रहे हैं। आलम यह है कि इनको यह भी याद नहीं रहा कि उनके प्रधानमंत्री परिवार के सख्त खिलाफ है। बावजूद इसके ये दोनों अपनी खाली की हुई सीटों पर अपने बीवी-बच्चों को टिकट चाह रहे हैं।

कपूर चाहते हैं बेटे को टिकट दिलाना

किशन कपूर ने सारा ध्यान इस बात पर लगा दिया है कि टिकट उनके बेटे को मिले और इसके लिए वे साम, दाम दंड भेद सब फार्मूले अपना रहे हैं। अपरोक्ष रूप से बात ऐसी धमकियों तक पहुंच चुकी है कि अगर उनकी इच्छा के विरुद्ध टिकट दिया गया तो बीजेपी प्रत्याशी को नुकसान होगा। यही नहीं किशन कपूर ने अपने बेटे के साथ टिकट की दौड़ में मौजूद अन्यों के खिलाफ यह कहना शुरू कर दिया है कि वे बाहरी हैं। जबकि यह बात काफी हद तक सही नहीं है। मसलन टिकट के चाहवानों में से एक राजीव भारद्वाज धर्मशाला के ही मूल निवासी हैं। हां यह लग बात है कि पिछले चार दशक से वे नूरपुर में ही सेटल हैं। वहीं क्लीनिक चलाते हैं। लेकिन उनका पुश्तैनी मकान धर्मशाला के डिपो बाजार में है। इसी तरह संजय शर्मा की पैदाइश धर्मशाला की है। गुरुद्वारा रोड पर तत्कालीन आर्यसमाज स्कूल के पास उनका परिवार 1954 से रहता आ रहा है और अब संजय ने हाउसिंग बोर्ड कालोनी में घर बना लिया है।
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संजय शर्मा यहीं न सिर्फ पैदा हुए और पढ़े बल्कि राजीव भारद्वाज के विपरीत उनकी कर्मभूमि भी धर्मशाला ही रही। एक अन्य दावेदार उमेश दत्त हैं. हालाँकि उनका पुश्तैनी गांव चामुंडा के पास पालमपुर हलके में पड़ता है लेकिन वे भी विद्यार्थी परिषद् में धर्मशाला में ही सक्रिय रहे और आगे पूर्णकालिक बनकर निकले। इसी क्रम में राकेश शर्मा और विशाल नैहरिया भी हैं जो धर्मशाला से ही हैं। लेकिन इसके बावजूद कपूर बाकी सबको बाहरी साबित करने में लगे हुए हैं। दिलचस्प ढंग से कपूर न सिर्फ धर्मशाला से मंत्री बनकर हारते रहे हैं बल्कि इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उनको रिकार्ड मतों की लीड के बावजूद धर्मशाला में सबसे कम लीड मिली थी। लेकिन जनाब अड़े हुए हैं कि टिकट उनकी बपौती है। ऐसे में मोदी जी के नियम जाएं भाड़ में।

कश्यप को बीबी-बहनोई की चिंता

उधर शिमला से सांसद बने सुरेश कश्यप तो और भी ज्यादा हवा में हैं। उनको भी अपने हलके में सबसे कम लीड मिली है , इसके बावजूद जनाब का मानना है कि टिकट उनकी जद्दी जायदाद है और उनके परिवार वालों के बाहर किसी को टिकट मांगने का हक़ नहीं है। कश्यप जी अपनी बीवी के लिए टिकट मांग रहे हैं। यदि कसी को आपत्ति हो तो वे फिर वे चाहते हैं कि टिकट उनके जीजा को दिया जाये। यानी जो भी हो पर घर से बाहर न जाए। उनकी बीबी और बहनोई दोनों सरकारी सेवा में हैं। वैसे इस वक्त पच्छाद से भी तीन सशक्त उम्मीदवार लाइन में हैं। आशीष सिकटा बलदेव कश्यप और दयाल प्यारी। इनमे महिला और जिला परिषद् की जीत के आधार पर दयाल प्यारी सबसे अव्वल थीं। लेकिन पिछले दिनों पार्टी की इच्छा के विपरीत एक एपिसोड में उन्होंने पार्टी के ही अन्य नेता के खिलाफ भेदभाव का एक मामला दर्ज करवा दिया था। जिसके चलते अब पार्टी उनसे नाराज़ है।
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आशीष सिकटा छात्र नेता हैं और कांग्रेस काल में नौ माह परिषद कार्य के लिए जेल में भी रह चुके हैं। उनके पक्ष में एक और जो बात जाती है वह है उनका राजगढ़ बेल्ट से होना। अब तक पच्छाद की इस बेल्ट से किसी को टिकट नहीं मिला। जबकि कुल 60 में से तीस पंचायतें इस बेल्ट में आती हैं। लेकिन कांग्रेस और बीजेपी के टिकट सराहां बेल्ट में भी बंटते रहे। ऐसे में सुरेश के सांसद बनने के बाद इस बेल्ट को लगता है कि अबके उनका नंबर है। बलदेव कश्यप भी हालांकि सराहां बेल्ट से हैं लेकिन अनुसूचित जाति मोर्चा के कोटे से टिकट की दावेदारी जता रहे हैं। तीनों के पास अपने अपने आधार हैं। लेकिन सांसद महोदय को सिर्फ सिर्फ परिवार दिख रहा है। कुल मिलाकर जहां मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर उपचुनाव को लेकर डट गए हैं और धर्मशाला , पच्छाद के दो-दो दौरे कर चुके हैं वहीं सांसदों ने संगठन का एहसान जताने के बजाए टिकट बंटवारे में लड़ाई डाल दी है। परिवार वाद का चश्मा इनकी आंखों पर ऐसा चढ़ा है कि इनको मोदी के नियम नहीं दिख रहे सिर्फ बीबी, बेटा और बहनोई ही दिख रहे हैं।
 

 

 

 

 

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