Edited By Simpy Khanna, Updated: 23 Aug, 2019 10:29 AM
ऊहल परियोजना की सुरंग का कार्य निपटाने के उपरांत परियोजना से रवाना हो चुकी इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी के दर्जनों पूर्व कर्मचारी वर्षों बाद भी कर्मचारी भविष्य निधि (ई.पी.एफ) के पैसे का इंतजार कर रहे हैं।
जोगिंद्रनगर(अमन): ऊहल परियोजना की सुरंग का कार्य निपटाने के उपरांत परियोजना से रवाना हो चुकी इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी के दर्जनों पूर्व कर्मचारी वर्षों बाद भी कर्मचारी भविष्य निधि (ई.पी.एफ) के पैसे का इंतजार कर रहे हैं। ई.पी.एफ. को लेकर कर्मचारी बार-बार कंपनी प्रबंधन से फोन पर बात कर रहे हैं लेकिन प्रबंधन द्वारा इन बेरोजगार हो चुके कर्मियों को आज-कल करके टरकाया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार कंपनी 2017 में सुरंग का कार्य पूरा कर परियोजना से अपना सब कुछ समेट कर जा चुकी है तथा कंपनी के पास निर्माण के दौरान 100 से अधिक कर्मचारी इलैक्ट्रीशियन, लोडर आप्रेटर व सर्वे हैल्पर सहित विभिन्न पदों पर कार्य करते रहे हैं तथा कार्य पूरा होने पर कई कर्मियों को उनकी भविष्य निधि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के माध्यम से मिल भी गई है लेकिन 20 से अधिक कर्मी अभी 2 साल बाद भी भविष्य निधि के इंतजार में इधर-उधर दौडऩे को मजबूर हैं।
कंपनी का कार्पोरेशन के साथ भी चल रहा विवाद
इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी का विवाद ब्यास वैली पावर कार्पोरेशन के साथ भी चल रहा है। करीब 20 करोड़ रुपए से अधिक के कई मामले आर्बीटेशन में हैं जबकि कंपनी ने भी कार्पोरेशन पर करीब इतने ही भुगतान का दावा कर रखा है।
लाखों रुपए है ई.पी.एफ.
जानकारी के अनुसार करीब 20 कर्मियों के 20 लाख रुपए से अधिक भविष्य निधि के रूप में फंस गए हैं। इन कर्मियों का कहना है कि कंपनी ने या तो उनके केस उचित तरीके से भविष्य निधि संगठन के पास नहीं रखे हैं या फिर कंपनी ने अपने शेयर का पैसा ही भविष्य निधि संगठन (ई.पी.एफ.ओ) में जमा करवाने में ढील बरती है, जिस कारण उनके मामले लटक गए हैं।
कालीदास, कृष्ण चंद, जगदीश राणा, विजय कुमार, कमलेश व भाग सिंह आदि ने बताया कि वे भविष्य निधि के लिए कई बार ब्यास वैली पावर कारपोरेशन के प्रबंधक से भी गुहार लगा चुके हैं लेकिन वहां से भी उन्हें आश्वासन ही मिल रहे हैं। एक तो कार्य समाप्त होने के चलते वे बेरोजगार हो गए हैं और ऊपर से मेहनत का पैसा भी अब उन्हें समय पर नहीं मिल रहा है। बार-बार आश्वासनों से तंग आ चुके कंपनी के पूर्व कर्मचारी अब कानूनी शरण लेने पर भी विचार करने लगे हैं।