यहां के लोगों को नसीब नहीं पक्की सड़क, मरीजों को चारपाई पर उठा पहुंचाते हैं अस्पताल

Edited By Simpy Khanna, Updated: 23 Sep, 2019 05:12 PM

people here have no luck on the paved road

जहां एक तरफ चांद पर पहुंचने की बातें हो रही हैं वहीं दूसरी तरफ इस आधुनिक युग में लोगों को आज भी चारपाई पर मरीजों को सड़क तक पहुंचाना पड़ रहा है। विकास के बड़े-बड़े दावे सरकारों द्वारा किए जाते हैं लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है। जब भी कोई...

ऊना (सुरेन्द्र शर्मा) : जहां एक तरफ चांद पर पहुंचने की बातें हो रही हैं वहीं दूसरी तरफ इस आधुनिक युग में लोगों को आज भी चारपाई पर मरीजों को सड़क तक पहुंचाना पड़ रहा है। विकास के बड़े-बड़े दावे सरकारों द्वारा किए जाते हैं लेकिन धरातल पर सच्चाई कुछ और ही है। जब भी कोई व्यक्ति बीमार होता है तो चिंता इस बात की कि आखिर उस मरीज को अस्पताल तक कैसे पहुंचाया जाए। यानी गांव से सड़क तक पहुंचाना एक बहुत बड़ी चुनौती होती है। मरीज को लेकर जाने के लिए गांव के 5-6 लोगों का बंदोबस्त करना पड़ता है। यह एक बड़ी चुनौती है। गांव के लोग अब पलायन करने पर मजबूर हो रहे हैं।
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बात किसी दुर्गम क्षेत्र की नहीं बल्कि जालंधर-हमीरपुर नैशनल हाइवे के किनारे बसे चिंतपूर्णी विस की ग्राम पंचायत ज्वार की है। उपमंडल मुख्यालय अम्ब से करीब 12 किलोमीटर दूर ज्वार पंचायत का गांव नारी का संपर्क दुनिया से तब कट जाता है जब थोड़ी सी बारिश होती है। आजादी के बाद भी इस गांव के लोगों को सड़क सुविधा नसीब नहीं है। आज भी आदियुग की तरह गांव के लोगों को गुजर बसर करनी पड़ती है। मुख्य हाइवे से करीब 2 किलोमीटर दूर बसे गांव नारी के लोग बेहद परेशान हैं। ऊना जिला की स्थापना के 47 वर्ष बाद भी इस गांव के लोगों को सड़क सुविधा नहीं मिल पाई है।
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गांव नारी के तिलक राज पिछले कुछ अर्से से गंभीर रूप से बीमार हैं। उनका उपचार टांडा मैडीकल कालेज कांगड़ा में चल रहा है। परिवार के लोगों को आए दिन उन्हें अस्पताल लेकर जाना पड़ता है। चूंकि तिलक राज चलने में असमर्थ हैं। ऐसे में उन्हें करीब 2 किलोमीटर मुख्य सड़क तक पहुंचाने के लिए 6-7 लोगों की व्यवस्था करनी पड़ती है जो चारपाई पर मरीज को उठाकर गाड़ी तक पहुंचाएं। हालत यह है कि दोपहिया वाहन भी इस नारी गांव में नहीं पहुंच सकता है।

नारी गांव में अन्य समुदायों के साथ-साथ अनुसूचित समुदाय की भी काफी आबादी है। लोग मूलभूत सुविधाओं से महरूम हैं। सवाल यह है कि अनुसूचित योजनाओं के तहत आने वाली राशि भी सडक़ पर क्यों नहीं खर्च हो पाती है। इस गांव को सडक़ से जोड़ने के लिए वर्ष 1998 में योजना तो बनी थी लेकिन एक हिस्से के निर्माण के बाद सडक़ का काम वहीं रुक गया जो आज तक पूरा नहीं हो पाया है।

चिंतपूर्णी क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता पूर्ण चंद कहते हैं कि आखिर सरकार और प्रशासन गांववासियों की समस्या का समाधान क्यों नहीं कर रहे हैं। वह कहते हैं कि एस.सी. कम्पोनेंट के तहत आई राशि कहां खर्च हो रही है। क्यों यहां रहने वाले इस वर्ग के लिए सुविधा प्रदान नहीं की जा रही है। मामला न्यायालय तक भी पहुंचाया जाएगा।

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