Edited By Kuldeep, Updated: 16 Jun, 2018 04:05 PM
किन्नौर के कुशल कारीगरों के हाथ करीने से लकड़ी पर कला को उकेर रहे हैं तो शिमला के कुशल कारीगर पत्थरों को तराशने का कार्य कर रहे हैं।
पालमपुर : किन्नौर के कुशल कारीगरों के हाथ करीने से लकड़ी पर कला को उकेर रहे हैं तो शिमला के कुशल कारीगर पत्थरों को तराशने का कार्य कर रहे हैं। आदि हिमानी चामुंडा मंदिर के पुनर्निर्माण को लेकर कार्य आरंभ कर दिया गया है। आधुनिकता तथा परंपरागत कला का मिश्रण लिए यह कांगड़ा जनपद का पहला ऐसा मंदिर होगा। काष्ठकोणी शैली में निर्मित किए जा रहे इस मंदिर के अंदर किन्नौर के मंदिरों की शैली पर नक्काशी की जाएगी। जबकि बाहर की ओर का ढांचा पत्थरों से बना होगा। यह मंदिर पूरी तरह से भूकंपरोधी होगा। मंदिर परिसर में 8 खिड़कियां तथा 2 द्वार बनाए जाने प्रस्तावित हैं। एक द्वार मुख्य प्रवेश के लिए रहेगा जबकि गर्भ गृह पर बनाया जाना प्रस्तावित है।
मंदिर निर्माण के लिए एक करोड़ 4 लाख की धनराशि व्यय की जानी प्रस्तावित है
इस सारे कार्य के लिए देवदार की लकड़ी का उपयोग किया जाएगा। मंदिर की भव्यता का आकलन इस बात से किया जा सकता है कि एक खिड़की के निर्माण में देवदार के 4 जबकि द्वार के निर्माण में 13 स्लीपर का उपयोग किया जाना है। वर्तमान में मंदिर के निर्माण के लिए एक करोड़ 4 लाख की धनराशि व्यय की जानी प्रस्तावित है। पत्थर तराशने तथा लगाने का कार्य उन कारीगरों द्वारा किया जा रहा है जिन्होंने रोहड़ू तथा रामपुर क्षेत्र में अनेक मंदिरों का कार्य किया है। विशेष पत्थर रिवाल्सर से लाए गए हैं।
समान को ऊपर पहुंचाने के लिए कुशल श्रमिकों को बुलाया गया
10000 फुट की ऊंचाई पर स्थित मंदिर में निर्माण कार्य आसान नहीं है, न पानी की उपलब्धता सरल है और न ही निर्माण सामग्री को इतनी ऊंचाई तक पहुंचाना। पानी के लिए वर्षा का आश्रय है जबकि समान को ऊपर पहुंचाने के लिए कुशल श्रमिकों को बुलाया गया है। बरसात के कारण पानी को अलग-अलग जगहों पर स्टोर कर उपयोग में लाया जा रहा है। चंबा जनपद के तीसा से पहुंचे श्रमिक लकड़ी की ढुलाई का कार्य कर रहे हैं। लगभग 400 देवदार के स्लीपर को मंदिर परिसरतक पहुंचाया जाना है, इनमें से अधिकांश को पहुंचाने का कार्य जारी है।
2014 में आदि हिमानी चामुंडा मंदिर में हुई थी यह घटना
वर्ष 2014 में आदि हिमानी चामुंडा मंदिर जलकर राख हो गया था। आग किन कारणों से लगी इसका कोई सटीक प्रमाण नहीं मिला परंतु माना जा रहा है कि आसमानी बिजली गिरने से मंदिर परिसर को आग लगी थी परंतु फोरैंसिक विशेषज्ञ भी उस समय हैरान रह गए थे जब समूचा मंदिर परिसर इस अग्निकांड में जलकर राख हो गया था परंतु मां की प्रतिमा तथा चुनरी पूरी तरह से सुरक्षित थी।